शनिवार, 16 अगस्त 2008

तिरंगे का अपमान !!!!!

सबसे पहले सब हिन्दुस्तानियों को ६१वे स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये !!!! आप सभी को आज़ादी का यह दिन बहुत -बहुत मुबारक हो......


आप लोग यह सोच रहे होंगे की मैं स्वतंत्रता दिवस की मुबारक बाद आज क्योँ दे रहा हूँ वो तो कल था?????


मैं बताता हूँ क्योँ.......... क्यूंकि कल पुरे दिन मैं अपने शहर आगरा के स्कुलो - और सडको के दौरे पर निकला था । और मुझे जिस चीज़ का अंदेशा था उससे भी बुरा मुझे देखने को मिला और वो था हमारे तिरंगे का अपमान !!



सुबह जिस तिरंगे को हम अपने सर पर बिठा रहे थे, सीने से लगा रहे थे, उसे चूम रहे थे.....दोपहर को वही तिरंगा ज़मीन पर पड़ा हुआ था...कहीं पर कीचड में था, कहीं पर पानी में पड़ा था, कही बीच सड़क पर पड़ा था, लेकिन किसी भी शख्स को फुर्सत नही थी की तिरंगे की इस हालत पर गौर करता.....

कल १५ अगस्त को मैंने आगरा की सडको से तक़रीबन ३२ से ३५ तिरंगे समेटे हैं....और इतनी बुरी हालत में थे की मेरी आँखें नम हो गई.......कुछ ज़मीन पर मिटटी में पड़े हुए थे, कुछ कीचड में पड़े हुए थे, कुछ तो सड़क के बीच में पड़े थे और उनके ऊपर से लोग अपनी गाडियाँ लेकर निकल रहे थे लेकिन किसी में इतनी भी फुर्सत नही थी की वो उस तिरंगे को ज़मीन से उठा कर एक तरफ़ ही रख देते....

हम लोग इतने बेहिस हो चुके की जिस तिरंगे को सुबह फिराने के बाद सलामी देते है, सब को लड्डू खिलाते है, फिर हम भूल जाते हैं की यह हमारे देश की इज्ज़त है, उसके ज़मीन पर पड़े होने के बावजूद हम उसके ऊपर से गाड़ी निकाल लेते है, लेकिन उसको ज़मीन से नही उठाते है...

जितने भी तिरंगे ज़मीन पर पड़े थे उसमे से ज्यादातर वो तिरंगे थे जो बच्चे स्कूल ले जाते है, बच्चो का क्या है वो तो बहुत चंचल मन के होते है उनको इस चीज़ का एहसास नही होता है की किस चीज़ की कितनी एहमियत है.....ज़िम्मेदारी तो उन माँ - बाप और टीचरों की बनती है जो बच्चो के हाथ में तिरंगा देते है, उन्हें तिरंगा देने से पहले उन्हें उसकी एहमियत बतानी चाहिए ताकि बच्चे कोई गलती न करे....यह हमारी ज़िम्मेदारी है हम अपने बच्चो को समझाए, उनमे देशभक्ति का जज्बा भरे...

हम कितने बेहिस हो चुके है इसका एक उदाहरण मैं आपको बताता हूँ......

आगरा में st। Johns College से आगे बढ़ने पर मुझे एक तिरंगा सड़क के बीच में पड़ा दिखा, मैंने अपनी गाड़ी साइड से खड़ी की और रोड के बीच में पड़े तिरंगे को उठाने के लिए आगे बड़ा तो ट्रैफिक उस वक्त चालू था इसलिए गाडियाँ भी उस वक्त गुज़र रहीं थी, मैं जब सड़क को पार करता हुआ तिरंगे के पास पंहुचा तो एक कारवाले ने बिल्कुल में पास लाकर गाड़ी रोकी........और गाली बक कर बोला "क्या मरना चाहता है?" मैंने कहा -: "भाई साहब, तिरंगा उठाने आया हूँ. तो वो बोला, -: तू कुछ भी करने आया हो मुझे कोई मतलब नही है, अब रास्ता दे चल.

उस वक्त मुझे इतनी तकलीफ हुई की मैं शब्दों में बयान नही कर सकता हूँ की कितना ज़्यादा हम बेहिस हो चुके है हम। अपने स्कुल और कॉलेज के दिनों में हम तिरंगे को सीने से लगा कर रखते थे, और यहाँ पर लोग उसको अपने जूतों तले कुचल रहे हैं....

मुझे तो इस वक्त एक ही शेर याद आ रहा है जो मेरा मनपसंद है...

अभी भी वक्त है जाग जाओ ऐ हिन्दुस्तान वालो
वरना मीट जाओगे तुम्हारी दास्तां भी न होगी, दास्तानों में।

जय हिंद ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha aapne lekin aap agra main kaun hain?
    hum bhi blogger hain lekin aapka naam pehli baar suna hai please apni id close karein

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  2. बहुत खूब ब्लॉग है जी आपका. अच्छी बातें हैं इस पर. हम आपके साथ हुए. जय हिंद.

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काशिफ आरिफ

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