सोमवार, 11 मई 2009

दूरियां घट सके वो मिलन कीजिये...

दूर के श्यामघन कुछ जतन कीजिये
दूरियां घट सके वो मिलन कीजिये

आह मेरी स्वयं में मिला लीजिये
अश्रु के सिन्धु से जीवनी लीजिये
पीर की बांसुरी पर थिरक जाइये-
पात तृन डालियों को हिला दीजिये

तय इतना तृप्ति आत्मा में मेरी -
शान्ति का सार अभिनव ग्रहण कीजिये



हो गए युग कई तन भिगोते हुए
दौड़ते-दौड़ते कुछ संजोते हुए
तब फुहारों ने मन को छुआ तक नही-
प्यासी बदरी से बादर लजाते हुए

घोर गर्जन का संताप मत दीजिये-
प्रीत परतीत सुंदर सुमन कीजिये

जग समझता सही आप का मर्म है
दान देना सदा आप का कर्म है
बिज़लियो को संभालना सिखा दीजिये-
घोसलों को बचाना बड़ा धर्म है

जग में हर और जीवन सजाते हुए-
विश्व के पाप का कुछ गम कीजिये

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''

1 टिप्पणी:

  1. रचना चिन्तनपरक है
    "घोर गर्जन का संताप मत दीजिये-
    प्रीत परतीत सुंदर सुमन कीजिये॥"
    कुछ विम्ब वाकई अच्छे है.
    - विजय

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काशिफ आरिफ

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