सोमवार, 8 जून 2009

अपना घुट्ना तुडा के बैठे है।

मै काफ़ी दिनो से अपने ब्लोग को एक नया रूप और रंग देने मे व्यस्त था, उसका काम पुरा हुआ तो दूसरा काम शुरु किया वो था टिप्पणी करने का काम। सब कुछ बहुत अच्छी तरह चल रहा था लेकिन क्या करे मेरे साथ हमेशा से यही होता आया है जब सब सही जा रहा होता तभी कोई गडबड हो जाती है इस बार भी हो गयी।

एक दुर्घट्ना हो गयी, मै शुक्रवार को शाम को अपनी फ़ैक्ट्री से लौट रहा था, फ़ैक्ट्री बंद करने के बाद जैसे ही वहा से चला सीढी से पैर फिसल गया सिधे निचे आकर गिरे, दाहिने घुट्ने मे बहुत असहनीय दर्द हो रहा था मैने अपने आप से कहा कि काशिफ़ भाई, तुम्हारा काम हो गया अब, बिस्तर पकड लो घर जाकर एक महिने के लिये। फिर पडोसियो ने घर पर फोन किया पिताजी और भाई साहब आये, अस्पताल गये फिर वही प्रक्रिया जिसको हम बहुत बार झेल चुके है।






सब तरह के टेस्ट करवाने के बाद हम बैठे हुए डाक्टर का चेहरा देख रहे थे की कही ये कोई बुरी खबर ना सुना दें, जब उन्होने मुंह खोला और अपनी जीब से जो बोला उसे सुनकर जान मे जान आ गयी। फ्रैक्चर नही बस "लिगामेंट डिसआडर" हो गया है १० - १५ दिन का आराम और फिर सब बढिया लेकिन एक बात कह कर उन्होने हमारा दिल तोड दिया वो ये कि दो - तीन दिन यही रुकीये अस्पताल मे। अस्पताल मे रुकने से सबसे मेरा सबसे बडा नुक्सान था की मे अपने ब्लोग से दूर हो जाऊगा वही हुआ, अभी - अभी वापसी हुई है घर पर। पैर के हालत ठीक है, घुट्ने पर एक ब्रेस बाधां है उसे ही बाधं कर चलना है।

अस्पताल मे बैठे - बैठे दो चार लाईने लिखीं है अपनी हालत पर, मैं शायर नही हु इसलिये आप से गुज़ारिश है कि पढ्ने के बाद हंसे नही ......अर्ज़ है

करने है बहुत सारे काम,
पर हम आराम से बैठे है।
क्या करे मजबूर है यार,
क्यौंकी हम अस्पताल मे बैठे है।
काट्ता है ये बिस्तर रात भर,
याद आता है हमें हमारा ब्लोग और कंप्यूटर।
दिल करता है भागने को यहां से,
पर बेवजह हम घुट्ना तुडा के बैठे है।

3 टिप्‍पणियां:

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काशिफ आरिफ

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