कल मुह्म्मद उमर कैरनवी जी से एक मेल मिला जो देखने के बाद बहुत खुशी हुई| कुछ दिन पहले मेरी उनसे बात हुई थी तो बातों बातों मे उन्होने मुझे बताया था की मैने आपका एक लेख अखबार मे दिया था तो वहां लोगो को पसन्द आ गया तो उन्होने छाप दिया।
ये पता लगने के बाद मैने उनसे कहा की कुछ भी करिये पर उस लेख की एक कापी आप मुझे ज़रुर भेंजे तो कल उन्होने मुझे भेजा हैं।
६ मार्च २००९ को मेरा लेख साठ साल से मुसलमान हमें कैंसर दे रहे हैं छ्पा था तब पहली बार उमर भाई की टिप्पणी मिली थी तब मैने सोचा भी नही था की ये शख्स इतने अहम साबित होगें मेरे लिये। मेरे ये लेख २४ मई २००९ को "दैनिक अमन के सिपाही" मे प्रकाशित हुआ।
मैं उमर भाई का बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूं जो उन्होने मेरे जैसे तुच्छ लेखक के लेख को इतनी इज़्ज़त दी।
बधाई आप को!
जवाब देंहटाएंgeeat
जवाब देंहटाएंaapka poora lekh pada... achha likhte hain....
जवाब देंहटाएंaapne apne hi lekh main apni bat ka javab bhee
de diya hai...kuch logo k gunah ki saja pori
kom ko nahi di ja sakti.....un bujurg k apne kuch
anubhav honge jis par unhone esa kaha....
mere kai muslman dost hai jinhone meri samay-samay
par meri madad ki.....mere ek muslman parchit hain
vo deewali or eed bade hi dhoom dham se manate hai....
unkee bahne rakhee par ghar aakar rakhee bhee bandhtee
hain....agar kisi bujurg ne aapka dil dukhaya hai
to galat kiya hai.....
ek baat aour aap likhte bahut hi achha hai...
बहुत-बहुत मुबारक हो
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत मुबारक हो.....सच लिखेंगे तो कभी भी नुक्सान नही होगा
जवाब देंहटाएं