शनिवार, 9 मई 2009

ख़ुद को समझो खुदा समझ लोगे



दर्द समझो दवा समझ लोगे।
ज्योति समझो
दीया समझ लोगे ।
व्यर्थ देरी हरम में उलझे हो
-
ख़ुद को समझो खुदा समझ
लोगे

कंगन कभी टूटे ऐसा कोई हाथ नही है
चंदन कभी छूटे ऐसा कोई माथ नही है
चारो और भीड़ अपनों की लेकिन रिश्तो का-
बंधन कभी न टूटे ऐसा कोई साथ नही है ।


प्यार की पहचान लेकर जी रहा हूँ।
दर्द का उनमान लेकर जी रहा हूँ
जाति
भाषा धर्म से आहत हुआ -
अधमरा
इंसान लेकर जी रहा हूँ

ये
अहिंसा मेरा मन्दिर मेरी आजादी है
कर्म से भाग पाये वो मुनादी है

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

3 टिप्‍पणियां:

  1. piar ki pehchan le kar ji raha hoon
    dard kaa unmand le kar ji raha hoon
    jaati bhasha dharm se aahat hua
    adhmara insaan le kar ji raha hoon
    lajvab ehsas hai hai apme bahut badiya

    जवाब देंहटाएं
  2. *SUBHAMASTU SARVA JAGATAM* जात-पात कीसीका अपना Personal matter हो सकता है, क्यों की यह *ईश्वर अंश जीव अविनाशी मनुष्य योनि नश्वर देह और नाशवंत संसार आधार जो अपने चेतन अमल का पूरा उपयोग न जानते हूवे, जहां तहां यहां वहां कहां कहां हो रहा है सदा वर्तमान समय पर नही जान सकते ? जो इस योनि मनुष्य जन्म तन-मन-बुध्धि के सोच-विचार-चित्त-वृत्ति अहंकार और जड शरीर के तल पर है*। पर आपने दु:ख को Priority दे कर बात को पलट दी और आपकी यह पोस्ट पढकर धन्य हो गया। *जीनके प्राणो गति इन्द्रीयां, मन-बुद्धि सोच-विचार चित्त-वृत्ति और मोह-मद अर्थात अहंकार यां अभिमान के कारण बहारकी ओर हो गई होगी.....* तो भूल जाएं के उनके जीवन में कोई भी बदलाव कभी भी आएगा और सावधान हो जाएं। जब के जीनके सांस रुपी प्राण अंदर की ओर सावधानी से वारने(गति करवानी) अपने ध्या अन्न पर सही सही लगने से ही संसार रुप मनुष्य योनि को ईश्वर अंश(अन्न सांस) अविनाशी जीव पार कर के अपने प्राणो पर सवार हो कर आत्म निर्भर हो करके आत्म विश्वास से सबसे पहले अपने ही आत्मा के कल्याण हेतू आत्म अनुभूति कर ईश्वर साक्षात्कर कर लेता है। जीससे जीवन को नयी पहेचान मीलती है जीते जी ही, जीसे ऊर्ध्व गति कहते हैं, ईश्वर समर्पित जीवन साधना जो सीधे मस्तिष्क में मोक्ष द्वार को साधती है। ऐसा ज्ञानी ध्यानी ही शायद आपकी लीखी बात समझ ले सकते है। धन्यवाद एक ही के एक का जो सर्व में एक समान समाया है जीव रुपी जीवनके नाम पर..... शरीरके छूटते ही पता चलता है तबतक न जाने कहां खोया रहता है यह मनुष्य योनि में जीव ? और इसी वजह से लोगो को लगता है हम अनेक है ! वैसे ही हमारे ईश्वर अल्लाह राम God भगवान भी अनेक है। एक योग है अनाशक्ती योग..... जीस योग से ही परमात्मा ने सारी सृष्टी की रचना की है और सारे ब्रह्मांड को अपने इस योग से ही चला रहे है। *अन्न आत्म शक्ती योग*। वे ब्रह्म आत्मा सो ही परमात्मा, ईश्वर सो ही परमेश्वर भगवान है जो मनुष्य को मैं बुलवाने पर मजबुर करती है इसी योग से सारी सृष्टी का निर्माण भी करते हैं और चलाते भी है फीर संहार भी कर दिया करते हैं। *शुभमस्तु सर्व जगताम।*

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काशिफ आरिफ

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