कल मैने एक पोस्ट लिखी थी "हमें नही चाहिये ऐसा राष्ट-धर्म और ऐसी देशभक्ती" उस पर मुझे ब्लोग्गर समुदाय से तीखी प्रतिक्रिया मिली कुल मिलाकर २२ टिप्पणीयां मिली मै उन भाईयों को उनके सवालों का जवाब देना चाह्ता हू।
पहली बात मैने किसी पर कोई तोहमत नही लगाई जो मैने देखा और पढा वही मैने लिखा है जिन टिप्पणीकारों का नाम मैने लिखा उनकी कोई भी टिप्पणी मे वो इन ब्लोग्गर की बात को काटते नही दिखे चाहे उन्होने जो लिखा हो, हमेशा उनका उत्साह ही बढाया है...अरे यार दिल्ली सरकार ने केसरिया बोर्ड हटा दिये तो उसको मुद्दा बना दिया अब सब जगह हर शहर मे बहुत पहले से नोटिस बोर्ड हरे रंग का किया जा चुका है। विदेश मे आप चले जायें वहां भी आपको इसी रंग के बोर्ड मिलेंगे आम-तौर से।
दुसरी बात आप मे किसी ने भी इस पोस्ट को लिखने के असली मतलब को नही समझा सिवाय दो लोगो के एक है बालसुब्रमण्यम जी, और दूसरी है Mired Mirage जी, । मुझे नही पता था की इतने समझदार लोग भी मेरी पोस्ट का मतलब नही समझ पायेगें, मै मानता हु की मै इन सब लोगो से उम्र और तजुर्बे मे छोटा हु लेकिन मुझे अपना देश टुक्डों मे बटंता हुआ बर्दाश्त नही हुआ। हो सकता है की जिन लोगो के नाम मैने लिये वो लोग ऐसे नही हो लेकिन मुझे उनके लेख और टिप्पणी पढ्ने के बाद जो महसुस हुआ वही मैने लिख दिया।
@ विजय वडनेरे जी, मुद्दों को उठाने मे हमेशा आगे रह्ता हू आप मेरे ब्लोग की सारी पोस्ट देख सकते है, हर पोस्ट मे आपको आम लोगो की ज़िन्दगी के आम मुद्दे ही मिलेगें। मै सुरेश जी की बहुत इज़्ज़त करता हू, बहुत बडे पत्रकार है लेकिन मैने अब तक उनके जितने लेख पढे उन सब मे उन्होने सरकार द्वारा उठाये गये हर कदम की आलोचना की। वो अपने आपको काग्रेंस विरोधी कह्ते है, क्या आपको नही लगता की कभी - कभी विरोधी के अच्छे कदम की तारिफ भी कर देनी चाहिये।
@ संजय बेंगाणी जी, मै किसी की बात का बुरा नही मान रहा हू। जो ये लोग कर रहे है वो मुझे गलत लगा तो मै उसको गलत कह रहा हू, और जो सही है वो लोगो को बता रहा हु। बस इस्से ज़्यादा मैने कुछ नही किया। क्या आपको नही लगता इस तरह धर्म और ज़ात के नाम पर अपने देश को बाटं कर हम अपने देश का नुक्सान कर रहे है।
@ ताऊ रामपुरिया जी, मैने किसी को कोई हुक्म नही सुनाया है, ना ही मैने ऐसी कोई बात कही है, मैने ऐसा इसीलिये लिखा क्यौंकी मै काफ़ी दिन से देख रहा था की हिन्दी ब्लोग्गर समुदाय दो हिस्सॊ मे बंटता जा रहा था जो मुझसे बर्दाश्त नही हुआ।
@ सुरेश जी, मै आपकी बहुत इज़्ज़त करता हू, आप बहुत बडे पत्रकार है। मै मानता हू की मैने आपके ज़्यादा लेख नही पढे लेकिन मै एक बात कहना चाहुंगा की अच्छा विरोधी वो होता है जो अपने दुश्मन की खुबियों को भी माने, और उसके द्वारा किये गये सही काम को सराहे और ऐसा मुझे आपके ब्लोग पर देखने को नही मिला। मै उम्मीद करता हू की आगे से ऐसा नही होगा और आपके लेख की यह कमी दूर हो जायेगी।
@ आशीष जी, मै आपकी बात से सहमत हू, मैने ये पोस्ट कोई लडाई करने के लिये नही लिखी। मै भी एकता और भाईचारा चाह्ता हू।
@ चन्दन जी, मैने यह तो नही कहा...आपकी नज़र मे शायद ऐसा होता है की अगर दो चीज़े खाने की सामने रखी हो अगर एक को बुरा कह दिया तो ज़रूरी है की दुसरी की भी तारीफ की जायें। अफ़्ज़ल और कसाब दोनो गुनाह्गार है और उन्हे उनके गुनाह की सज़ा मिलनी चाहिये।
मुझे आपकी बात मे कुछ कमी है :- सिर्फ अपने साम्प्रदाय की बात करना, और दुसरे समुदाय को बुरा कहना ही साम्प्रदायिकता है।
यह सेकुलर वाली परिभाषा लगता है आपकी बनाई हुई है और इसको सिर्फ़ आप ही मानते होगें।
@ अरुण जी, पहली बात मुझे पंगे पसन्द है क्यौंकी जब पंगे होते है तो आपकॊ अपनी खुबियां और कमियौं के बारे मे तो पता चलता ही है साथ मे दुसरे शख्स मे बारे मे भी जानकारी हो जाती है। आपने मुझसे १७ सवाल किये और इन सवालॊ के जवाब के लिये पुरे आलेख की ज़रूरत है, मै बहुत जल्द उन्को लिखुंगा और लिखने के बाद सबसे पहले आप लोगो को बताऊगा।
@ गिरिजेश राव जी, मैने कोई फ़तवागिरी कि कोई क्लास नही ली है, इस्लाम मे सुधार की गुन्जाईश १४३० साल पहले थी, कुरान के नाज़िल होने के बाद इस्लाम मुक्कमल हो गया अब उसमे कुछ कम - ज़्यादा करने की ज़रूरत नही है. जिन सुधार की बात आप कर रहे हैं वो कमियां सिर्फ़ मुस्लमानों मे है इस्लाम मे नही, कौन सा ऐसा मुस्लमान जो कुरान और हदीस की रोशनी मे अपनी पुरी ज़िन्दगी बिताता है? अगर आपको इस्लाम को जानना है तो आप कुरान को समझों और अल्लाह के रसूल नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिंं वसल्लम की ज़िन्दगी को देखे क्यौंकी मुसलमानों मे सबसे अव्वल मुसलमान तो वही थे.
और रही बात मुस्लमानॊ को सुधारने की तो मेरा वो काम भी जारी है मेरे दो ब्लोग चलते है एक हिन्दी मे और अंग्रेज़ी मे जिसमे मै कुरान और इस्लाम से जुडे सवालों के जवाब देने की कोशिश करता हू कुरान और हदीस की रोशनी मे।
@ रजनीश जी, आत्म-मंथन करने के बाद ही इस ब्लोग की पुरी ज़िम्मेदारी उठाई है वरना इस्से पहले मैने ये ब्लोग बनाने के बाद अपने दोस्त को दे दिया था चलाने के लिये।
@ विक्रांत जी, यही तो कमी है हम सब लोगो मे, हमने अपने धर्म का ठेका दुसरे लोगो के हाथ मे दे रखा है. मुस्लमान मौलवियों कि मान रहे है, और हिन्दु पन्डितॊं की मान रहे है। किसी को अपना धर्म ग्रन्थ उठाने की फ़ुरसत नही है, ना ही कोई ये पूछ्ने की हिम्मत करता है की ये सब कहा लिखा है। इसी विषय मेरी पोस्ट आज छ्पने वाली थी लेकिन उस्कॊ रोककर मुझे ये छापनी पड रही है।
@ ab inconvenienti जी, आईये काफ़ी दिनॊं बाद दर्शन दिये, कहा थे छुट्टी पर थे क्या? या फिर मेरी किसी ऐसी पोस्ट का इन्तज़ार कर रहे थे। मै आपके ब्लोग पर भी कई बार गया लेकिन आपके दर्शन नही हुए। आपके सवाल का जवाब मै उपर दे चुका हू।
@ शास्त्री जी, आपने उनके लेखॊ की सतह के नीचे जा कर उन्हे जाना है लेकिन मेरे लेख की सतह के उपर जो था वो आपको नही दिखा ये तो कमाल हो गया है। ये चीज़ गले से नही उतरी मैने तो साफ़ - साफ़ लिख रखा था फिर भी आपको नही दिखा शायद आपने मेरा लेख ठीक से पढा नही, दोबारा से पढियेगा।
@ Mirad Mirange जी, मुझे खुशी है की मैरे ये सब लिखने की जो वजह थी वो आपने देखी और उसकॊ सराहा। रही बात फिरदोस जी, की तो मैने उनकॊ अभी तक नही पढा है, और आपने जो लिंक दिया था उस पर "पेज नही मिला" आ गया है। अपने धर्म की तारिफ करना बुरी बात नही लेकिन किसी दूसरे धर्म या उसके मानने वाले की निन्दा करना बहुत गल्त है और अगर वो ऐसा कर रही है तो बहुत गल्त कर रही है और मै उन्कॊं पढने के बाद बहुत जल्द उस पर भी एक लेख लिखूंगा।
विवादों से दूर रहो और चुपचाप अपना काम करो।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मैं विवाद को गलत नहीं मानता, जब तक कि उसके पीछे दूर्भावना न हो.
जवाब देंहटाएंभारत को साम्प्रदायिकता बाँट देगी यही चिंता मुस्लिम तुष्टिकरण का विरोध करवाती है. याद रखें भारत का विभाजन हिन्दुओं ने नहीं करवाया था. और भारत अगर लोकतंत्र है और धर्मनिरपेक्ष है तो मात्र इसलिए कि यहाँ हिन्दु बहुसंख्यक है. कश्मीर के हालात पर आपको क्या कहना है? वहाँ के हिन्दु और शेष भारत के मुसलमानों की स्थिति देख कर निर्णय करें.
भारत हम सब का है. इसलिए धर्म से पहले देश को रखेंगे तो अच्छा रहेगा. और यह जिम्मेदारी केवल हिन्दुओं की नहीं है. जानकारी के बता दूँ मैं तकनीकी रूप से हिन्दु नहीं हूँ.
बेंगाणी जी से सहमत। इस्लाम की मूल समस्या यह लगती है कि इसमें "सह-अस्तित्व" की भावना नहीं है, उदाहरण के तौर पर लगभग सभी इस्लामिक देशों में वहाँ के अल्पसंख्यकों की हालत पर गौर करें, वहाँ की "लोकतान्त्रिक व्यवस्था" (यदि कोई है) पर गौर करें तो समस्या की असली जड़ पता चल जायेगी। जब कोई पहले से ही यह माने बैठा हो कि "हमारा धर्म ही श्रेष्ठ है", हमारे धर्मग्रन्थ ही सत्य और अन्तिम हैं, हमारे पैगम्बर ही एकमात्र हैं बाकी सब झूठे हैं, तो फ़िर उससे कोई कैसे बहस कर सकता है। इस्लाम के अलावा भी दुनिया में सैकड़ों धर्म हैं और लोगों को अपना-अपना धर्म और धार्मिक क्रियाएं करने की पूरी आज़ादी है, यह बात जब तक इस्लामिक विद्वान और जनता में पैठ रखने वाले आलिम-उलेमा जोर देकर नहीं कहेंगे, तब तक इस्लाम की गतल-सलत व्याख्या करने वाले लोग अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे… और विश्व में समस्याएं खड़ी होती रहेंगी…
जवाब देंहटाएं@ संजय जी, मै आपकी बात से पुरी तरह सहमत हू गलती हमारे धर्म के मानने वालॊं की है, इस्लाम तो हमेशा यही कह्ता आया है की "जीयो और जीने दों"....कुरान मे आयत है :- "तुम्हे अपना दीन मुबारक और हमें अपना दीन मुबारक" रही बात भारत के बंट्वारे की तो कॊई मुसलमान ऐसा नही चाहता था ये सिर्फ़ कुछ लोगॊं की वजह से हुआ है...अभी भी आप किसी आम मुस्लमान से पुछ ले तो वो यही कहेगा जो हुआ गलत हुआ नही होना चाहिये था. मै मानता हू की जहा हिन्दु अल्पसख्यक है वहा उन्को बहुत तक्लीफ़ो का सामना करना पड रहा है जो बहुत गल्त है लेकिन ये तक्लीफ़े उन्को आम आदमी नही दे रहा है ये कुछ लोगो की करतूत है।
जवाब देंहटाएं@ सुरेश जी, इस्लाम की मूल समस्या ये नही है जो आपने बताई इसकी मूल समस्या है मुस्लमान का इस्लाम और कुरान से दूर हो जाना, उसकॊ ये पता ही नही है की मेरे दीन का अस्ली हुक्म क्या है? पहले का मुस्लमान ऐसा होता था की यहूदी जब कभी सफ़र पर जाते थे तो मुस्लमान के पास अपनी अमानत रखवाते थे क्यौंकी उन्हे पता था चाहे जो हो जाये ये अमानत मे ख्यानत नही करेगा।
लेकिन आज का मुस्लमान ऐसा नही है, बस इस बात का अफ़्सोस है
बहुत सोचसमझ कर और आप के लिखे को अच्छी तरह पढ कर ही टिप्पणी की थी दोस्त!! सतह से नीचे देखने की तो मेरी आदत है, आप यकीन रखें.
जवाब देंहटाएंसारथी चिट्ठे पर तो हम हर विषय पर खुली चर्चा करते हैं और जम कर शास्त्रार्थ होता है. इसी नजरिये से आप के आलेख का विश्लेषण दिया था.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
काशिफ़ भाई, आपने लिखा… "…इसकी मूल समस्या है मुस्लमान का इस्लाम और कुरान से दूर हो जाना, उसकॊ ये पता ही नही है की मेरे दीन का अस्ली हुक्म क्या है?…" आपने समस्या को ठीक ढंग से समझ लिया है, लेकिन मुसलमान को इस्लाम, कुरान और दीन के हुक्म का मतलब कौन समझयेगा? जिनकी यह जिम्मेदारी है वे कट्टर तत्वों के आगे दब जाते हैं, तथा आम मुसलमान को बरगलाने वाले अपना मतलब निकाल कर उसे उपयोग कर लेते हैं… आलिम-उलेमाओं द्वारा ही कुरान की ठीक व्याख्या आम मुस्लिम तक पहुँचाई जा सकती है… वैसा उन्हें जोर देकर करना चाहिये और कट्टर तत्वों को सख्ती से दबाना चाहिये…। समस्या का हल समाज के भीतर से ही निकलेगा… "नरम दल और गरम दल" के बीच हमेशा ही हर समाज में द्वन्द्व होता रहा है…। अभी तक सदियों से हिन्दुओं में "नरम दल" का वर्चस्व ही रहा है… और यही सहनशीलता अब धीरे-धीरे नपुंसकता में बदलती जा रही है, जहाँ कि गलत बात का भी विरोध नहीं किया जा रहा, इससे युवाओं में बेचैनी बढ़ रही है।
जवाब देंहटाएंओरो पर तोहमत लगाना तो बहुत आसान है, लेकिन किसी को समझना, अपना बनाना बहुत कठिन भी नही, इस लिये भाई सब से पहले आप सभी के लेख पढो ध्यान से, फ़िर मनन करो, कि यह सब कह क्या रहे है, फ़िर अपने मन की बात कहो, हम सब मै कोई जात पात नही चलती, कोई धर्म नही चलता, कोई राजनिति नही चलती, हम सब देश की बाते करते है,वो देश जितना मेरा है उतना ही आप का, अब क्या कहूं आप ने नादानी मै बहुत से लोगो को नारज कर दिया, जब कि इन सब मै कोई भी आप का बुरा नही चाहता था.
जवाब देंहटाएंअगर मैं 'असली मतलब' समझ रहा हूँ:
जवाब देंहटाएं@ "इस्लाम मे सुधार की गुन्जाईश १४३० साल पहले थी, कुरान के नाज़िल होने के बाद इस्लाम मुक्कमल हो गया "
आप यह कहना चाह रहे हैं कि इस्लाम क़ुरान के पहले से था? अच्छी जानकारी है।
@ " अब उसमे कुछ कम - ज़्यादा करने की ज़रूरत नही है."
ग्रामोफोन की सुई अभी भी अटकी हुई है। लिहाजा सुर वही बार बार निकल रहे हैं।
पढ़े और गुने तो एक बार थे ही। विद्वानों ने नई नई बातें बतानी शुरू कर दी हैं। लिहाजा अभी तो वेद दुहरा रहे हैं - सत्यार्थ प्रकाश और स्वामी दयानंद के प्रकाश में। क़ुरान भी दुहरा लेंगे।
@ सुरेश जी, मै इस बात का ज़िक्र अपने लेख मे कर चुका हु बहुत से लोग इस काम मे लगे हुए है उन लोगो मे से मै एक शख्स का नाम लेना चाहुगां उनका नाम है डां. ज़ाकिर नाइक। इन्हे हर धर्म की किताब याद है और ये मुस्लिम और गैर- मुस्लिमों को उनके सवालॊं का जवाब देते हैं। इनका टी.वी. चैनल भी चलता है "पीस टी. वी." के नाम से।
जवाब देंहटाएं@ आपको शायद जानकारी नही है या फिर आपने रट्टु तोते की तरह कुरान को पढा है या फिर आपने कुरान को सिर्फ़ कमी निकालने के लिहाज़ से पढा है। अल्लाह ने बहुत से पैगम्बर उतारे कुरान मे नाम से पच्चीस का ज़िक्र है। उन पैगम्बरों का बहुत सी किताबें नाज़िल हुई नाम से सिर्फ़ चार का ज़िक्र है। मोह्म्मद से पहले जितने पैगम्बर आये उनहे एक खास समुदाय के लिये उतारा गया था जैसे ईसा अलैहस्सलाम यहुदियों के लिये आये थे और उनके उपर जो किताब नाज़िल हुई उसका नाम था "ईंजील" जिसकी बिगडी हुई शक्ल है "बाईबिल"
अगर आप कुरान को समझना चाहते है तो मेरे ब्लोग के साइड बार मे लगे लिन्क पर क्लिक कर के आप कुरान का हिन्दी अनुवाद डाउनलोड कर सकते है।