शुक्रवार, 26 जून 2009

मुझें कपडों से नही, पहनने के तरीके से शिकायत है।

दो दिन पहले मैनें एक लेख लिखा था ये शालीनता है, अश्लिलता हैं, फ़ैशन हैं, या फ़ुहडपन?

इस मे मैनें महिलाओं के पहनावे की आलोचना की थी तो इस लेख के जवाब मे मुझे काफ़ी कुछ सुनने को मिल गया।

मेरी समझ मे एक बात नही आती की लोग मेरे लेख का गलत मतलब क्यौं निकाल लेतें है? मैं कहना कुछ चाहता हु और वो समझते कुछ और है इससे पहले भी मैनें एक आलेख लिखा था एक विवाद्पस्द मुद्दे पर तब भी यही हुआ। मैं कहता हुं रात है पाठक कहते है की भोर हो गयी है, मैं कहता हुं डोसा है वो कहते है बिरयानी है।





जहां तक मैनें इस बात को समझा है तो इसकी कुछ खास वजह है :-

पहली की हर इंसान की सोच और देखने का नज़रिया अलग होता है।

दुसरी की जब मैं किसी बात या चीज़ की आलोचना करता हुं तो शायद मेरी भाषा थोडी तीखी हो जाती है।

तीसरी की इधर उधर की बातों शायद मेरे लेख का असली मकसद गुम हो जाता है।

ये वजहें तो मुझे दिखी और कोई वजह और हो तो आप लोग मुझे अपने बहुमुल्य सुझाव सआदर आमंत्रित हैं।

अब आते है अपने विषय पर मेरे आलेख को पढकर अंशुमाली रस्तोगी जी ने कहा "बंधु आपने अपने लेख में लड़कियों के पहनावे का उल्लेख तो बेहद गरमा-गरम किया है लेकिन क्या कभी आपने सोचा है जो आप या आप जैसे और पहनते हैं वो कितना शालीन या असभ्य होता है। अगर कोई लड़की अपने कुर्ती, शर्ट या टॉप के नीचे कुछ नहीं भी पहनती है तो आप कौन होते हैं उस पर ऐतराज जताने वाले? यह उसकी मर्जी है।
जो कुछ आप पहने वो सब ठीक मगर अगर लड़की पहन ले तो सब गलत और संस्कृति के खिलाफ। निवेदन है कि आप अपनी बंद सोच को थोड़ा खोलें।"

और रचना जी ने कहा "अंशुमाली थैंक्स आपने कह दिया जो मै कहना
आयी थी . कुछ लोग संस्कारो के बहाने पॉर्न
परोसते हैं और ये आलेख भी वैसा ही लगा . कितना
खूबसूरती से आप ने लड़कियों के बारे मै इतना
विस्तृत लेख लिख दिया . आप के पास
बहुत समय हैं लड़कियों के परिधानों के अंदर
झाकने के लिये , लगे रहे
मौसम बदल रहा हैं ग्लोबल वार्मिंग से सब
परेशान सो ऐसे मै अगर बच्चियां जींस या कोई
भी comfortable परिधान पहनती हैं तो इसमे
गलत क्या हैं . वैसे कभी पुरुषों के बदलते
फैशन पर भी एक धांसू पहासू लेख हो जाये
नंबर , साईज और ब्रांड के साथ"।

तो अंशुमाली जी और रचना जी आप लोग मेरी एक बात का जवाब दीजिये की "जो नज़ारा रोड पर आम होता है वो मैनें सबसें शालीन शब्दों का प्रयोग कर सबके सामने रखा तो उसको आप लोगो ने गर्मा - गर्म और पोर्न कह दिया तो जो लडकियां और औरतें ऐसे कपडें पहन कर सडकं और बाज़ारॊं मे घुमती है उनकों आप लोग क्या कहेंगें? वो लोग क्या परोस रही हैं? "


रचना जी ने मेरे ऊपर एक आरोप लगाया है :-
"कितना खूबसूरती से आप ने लड़कियों के बारे मै इतना विस्तृत लेख लिख दिया . आप के पास
बहुत समय हैं लड़कियों के परिधानों के अंदर झाकने के लिये , लगे रहे"।

मैंने उनके आरोप का ये जवाब दिया है
"आपने उस लडके पर इल्ज़ाम लगाया जो वो काम करता है जिस काम को मेरे साथी पागलपन कहते है

इसके बाद मैनें एक काम शुरु कर दिया कुछ लोगो को ये काम कुछ अटपटा लगता है लेकीन मै इसको करता हुं वो ये की जब भी गाडी पर चलते वक्त कोई लडकी मुझे ऐसी हालत मे मिलती की उसकी जीन्स काफ़ी नीचे हो तो मै उस लडकी को चलती गाडी पर इशारे से कह देता हु की अपनी टी-शर्ट नीचे कर लो। ये मेरी तरफ़ से एक कोशिश है की कोई और लडकी ऐसी हालात मे न पडें"

दुसरी बात की मुझे कपडों से परेशानी नही है, आप लोग मेरे लेख ज़रा ध्यान से पढेंगे तो आपको पता चलेगा मैनें कहीं भी किसी कपडें के बारे में कुछ नही लिखा मैने जो भी लिखा उस कपडें को पहनने वाले के तरीके पर लिखा है। मुझे जीन्स से परेशानी नही है जीन्स तो सबसे आरामदायक परिधान है जिसको पहनने के बाद कुछ भी सम्भालने की ज़रुरत नही रहती है मैं ये बात अपने लेख मे लिख चुका हूं "मुझे जीन्स से परेशानी नही है मुझे परेशानी है चुस्त और नाभि से नीचे खिसकती जीन्स से जिसमें बेल्ट नही बंधी होती है उसमें से झांकते अंत्रवस्त्र और साथ मे नीचे की ओर जाती बैकलाईन जो दो-तीन ईंच से लेकर पांच ईंच तक दिखती है और टी- शर्ट इतनी छोटी होती है की वो कमर और पेट को तो ढंक नही सकती"।

मैनें आलोचना तो सलवार सुट और साडी की भी की है लेकिन इन दोनो के विषय मे भी मैनें इन परिधानों पर कोई उंग्ली नही उठाई। परिधान से आपकी सोच नही झलकती परिधान के पहनने के तरीके से झलकती है। मैं दो मिनट में पुरुषों के सबसे शालीन परिधान कोट- पैन्ट को अश्लील बना सक्ता हुं उसमें कोई बडी बात नही है लेकीन जो परिधान जीस तरीके से पहना जाता है अगर उसे उसी तरीके पहना जाये तो ही उसकी शोभा बरकरार रहती है।

मेरी एक बात का जवाब दीजिये की जब हिन्दुस्तान मे सबसे पहले जीन्स आयी थी तो क्या उसे नाभि से इतना निचे बांधा जाता था? नही वो कमर पर बांधी जाती थी और उसमें बेल्ट लगी होती थी जो आजकल बहुत कम देखने को मिलती है।

ये परिधान साडी और सलवार सुट हमारी सभ्यता और हमारी संस्क्रतीं हैं आप लोगो से मेरी गुज़ारिश है की इनको आप लोग इस सब से, इस फ़ैशन से दुर रखें। और जो परिधान को पहनने का सही और सबसे शालीन तरीका है उसे तरीके से पहने और खुद को और अन्य लोगो को होने वाली शर्मिन्दगी से बचें।

मेरा फ़र्ज़ था वो मैनें कह कर अदा कर दिया आगे आप लोग खुद समझदार है!!!!!

36 टिप्‍पणियां:

  1. मित्रवर, अगर जींस नाभि से नीचे जा रही है या ब्लॉउज का गला डीप हो रहा तो इस खुलेपन में आप काहे को गर्म हुए चले जा रहे हैं। यह भी एक अंदाज है कपड़े को पहनने का। मुझे यह अंदाज पसंद है। कसम से।
    अरे गांधी भी तो दो ही वस्त्रों को धारण किया करते थे। मगर आज तक उनके परिधान पर तो किसी ने आपत्ति जाहिर नहीं की। जो जैसा पहन रहा है पहनने दें आप अपने कपड़ों का ख्याल रखें। यही बेहतर होगा।

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  2. मित्रवर, अगर जींस नाभि से नीचे जा रही है या ब्लॉउज का गला डीप हो रहा तो इस खुलेपन में आप काहे को गर्म हुए चले जा रहे हैं। यह भी एक अंदाज है कपड़े को पहनने का। मुझे यह अंदाज पसंद है। कसम से।
    अरे, गांधी भी तो दो ही वस्त्रों को धारण किया करते थे। मगर आज तक उनके परिधान पर तो किसी ने आपत्ति जाहिर नहीं की! जो जैसा पहन रहा है, पहनने दें, आप अपने कपड़ों का ख्याल रखें। यही बेहतर होगा।

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    1. नंगा होक घूम लो ज्यादा सुविधजनक लगेगा।।।

      हटाएं
  3. याद है आरिफ मैंने उस पोस्ट पर दिए गए कमेन्ट में आपकी उम्र पूछी थी. वो इसलिए कि मैं जानना चाह रहा था.. कि कोई परिपक्व व्यक्ति इस तरह की बात कैसे कर सकता है? आपकी लेखनी में धार है.. आपने लेख तो शालीनता पर लिखा मगर लेखन में शालीनता नहीं रखी यही वजह थी कि लोगो ने आपके डोसे को बिरयानी समझ लिया..

    फिर भी बहुत सारी ऐसी बाते है इस लेख में जो ठीक नहीं है..

    आपने लिखा
    "शर्म जो औरत का गहना कही जाती थी वो गायब सी हो गयी है। तो मैनें क्यौं न इस अच्छे से विचार किया जायें और विचार करने के लिये ब्लोग से अच्छी जगह क्या हो सकती है।"

    आपने शर्म को औरत का गहना बताया है.. क्या ये मर्दों का गहना नहीं है? यदि किसी महिला का अंत वस्त्र दिख भी रहा हो तो उसे देखना क्या बेशर्मी नहीं कहलाएगी?

    आगे आपने ड्रेस कोड की बात की है.. आपने लिखा
    "एक खेमा ऎसा था जो सबसे अलग रहता था और वो लोग थे उच्च वग्रीय परिवारॊं के चश्मोंचिराग। वो या तो कालेज नही आते थे, आते थे तो क्लास मे तो आने का सवाल ही नही होता था बाहर कम्पाउंड मे मुलाकात होती थी तो उनके पास सिर्फ़ अपने पैसे, कपडॊं, और मंहगें सामान के बारे में बात करने के अलावा कोई काम नही था। उनकी इस आदत की वजह से जो गरीब परिवारों के जो लडकें - लडकियां हमारे साथ पढतें थे वो उनसे दुर रहते थे। मेरे पुछने पर मेरा एक दोस्त बोला था कि "यार उनके साथ खडें होने मे अजीब सा लगता है उनके इतने मंहगे कपडें और मेरी ये सादा सी शर्ट"।"

    उच्च वर्गीय परिवारॊं के बच्चो को क्या जीने का हक़ नहीं है ? यदि उनके पास पैसा है तो क्या वे अच्छे कपडे नहीं पहने..? दोस्ती करना, नहीं करना निजी फैसला है.. अपनी हीन भावना को छुपाने के लिए आपने कोलेज में ड्रेस कोड लागू करवाया.. उनको देखकर हीन भावना आपमें पनपी ऑर आपने उन्हें ही दोषी ठहरा दिया.. आप सोचिये यदि वाकई कोई गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है जिसके पास दो ही जोड़ी कपडे है वो ड्रेस कोड के लिए दो जोड़ी और कहा से लाएगा?

    आगे आपने लिखा
    "हम आठ - दस लडको ने एक फ़ैसला लिया जो जो लोग ड्रेस कोड के हक मे थे उन सब से एक पेपर पर साईन कराकर प्रिंसिपल को दे दिया।"

    आप आठ दस लोगो ने पूरी कोलेज का फैसला ले लिया कि वो क्या चाहते है? और ये कौनसी कोलेज थी जिसने आठ दस लड़को के साईन आ जाने से कोलेज में ड्रेस कोड लागू कर दिया? और यदि आपने सबसे साईन लिए तो इसमें वो उच्च परिवारों के बच्चे भी होंगे.. उन्होंने भी साइन कर दिया होगा.. इसका मतलब कि उनके मन में कुछ नहीं था..

    आगे आपने लिखा है
    "साडी को सबसे शालीन परिधानों मे गिना जाता है लेकिन आजकल ये फ़ैशन के फ़ेर मे आकर अपनी शालीनता खोती जा रही है, ये कमर से काफ़ी नीचे बांधी जा रही है नाभि से लगभग ६ इंच नीचे, ब्लाउज़ की आस्तीन गायब हो गयी है और साथ मे आगे से गले का बडा सा हिस्सा और पीछे से पीठ का काफ़ी बडा हिस्सा ले गयी है तो आगे से गला लगभग नौ इंच और पीछे से ग्यारह इंच तक पहुंच गया है। अगर ब्लाउज़ पुरा है जो ज़्यादातर बडी उम्र की औरतें पहनती है तो उसका कपडा इतना महीन और पारदर्शी होता है की आप उसमें से उनके अंत्रवस्त्र का रंग बता सकते है और साथ मे ये भी देख सकते है की कौन से नंबर के हुक मे उसे लगाया हुआ हैं। आप इसे क्या कहेंगे शालीन वस्त्र कहेंगे?"

    आपको अच्छी तरह से पता है की साडी नाभि से कितने इंच नीचे बाँधी जाती है.. ब्लाउज़ की आस्तीन भी आपने देख ली.. और साथ मे आगे से गले का बडा सा हिस्सा भी देख लिया.. और पीछे से पीठ का काफ़ी बडा हिस्सा भी देख लिया.. आगे से गले की लम्बाई भी नाप ली..आपने ब्लाउज़ का महीन कपडा भी देखा ऑर उसमे से आपने उनके अन्त्वस्त्र भी देख लिए और यहाँ तक भी देख लिया कि कौनसे नंबर के हुक में उसे लगाया गया गया है.. क्या आप इसे शालीनता कहेंगे?

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  4. आगे आपने लिखा है...
    कमीज़ के चाक ( दोनो साईड मे जो कट लगा होता है) कमर की हड्डी से काफ़ी उपर आ चुके है इस कारण से साईड से पुरी सलवार और अंत्रवस्त्र आप देख सकते है, सलवार पारदर्शी हो चुकी है तो आप ये तक देख सकते है लडकी ने वैक्सिंग कराई है या नही।

    हम ये क्यों देखे की लड़की ने वैक्सिंग कराई है या नही।क्या इस से देश की कोई बड़ी समस्या का हल मिल जाएगा.. या फिर हम अपने मनुष्य जन्म को धन्य समझेंगे.. हम इस बात से क्यों हलकान हो कि लड़की ने वैक्सिंग कराई है या नही..

    आगे आपने लिखा है...
    मुझे परेशानी है चुस्त और नाभि से नीचे खिसकती जीन्स से जिसमें बेल्ट नही बंधी होती है उसमें से झांकते अंत्रवस्त्र और साथ मे नीचे की ओर जाती बैकलाईन जो दो-तीन ईंच से लेकर पांच ईंच तक दिखती है और टी- शर्ट इतनी छोटी होती है की वो कमर और पेट को तो ढंक नही सकती वो उसकॊ क्या ढंकेगी। मैं ऐसे बहुत सारे वाकयों का गवाह हू जिसमें लडकी को इस पहनावे की वजह से शर्मिंदगीं उठानी पडी है लेकिन फिर भी ये लोग बाज़ नही आती है।


    आपको परेशानी है तो आप मत पहनिए..लेकिन दुसरो को तो पहनने दीजिये.. लो वेस्ट जींस तो लड़के भी पहनते है फिर आपको लड़कियों से ही क्यों परेशानी है.. आप को शर्म आनी चाहिए आप मौका पाकर लड़कियों की बैकलाईन देख रहे है.. वो भी तब जबकि उन्हें पता भी नहीं चल रहा है.. आपने तो उनके इंच भी नाप लिए.. क्या ऐसा करते हुए आपको जरा भी शर्म नहीं आई..

    आगे लिखा है
    इसके बाद मैनें एक काम शुरु कर दिया कुछ लोगो को ये काम कुछ अटपटा लगता है लेकीन मै इसको करता हुं वो ये की जब भी गाडी पर चलते वक्त कोई लडकी मुझे ऐसी हालत मे मिलती की उसकी जीन्स काफ़ी नीचे हो तो मै उस लडकी ये चलती गाडी पर इशारे से कह देता हु की अपनी टी-शर्ट नीचे कर लो।


    आप रास्ते में चलते हुए क्या यही देखते है कि किस लड़की के अन्त्वस्त्र दिख रहे है या नहीं?

    आगे आपने लिखा है...
    औरतें और लडकियौं के ब्लाउज़, कमीज़, और टी-शर्ट का गला इतना बडा होता है वक्षस्थ्ल का काफ़ी हिस्सा दिख रहा होता है लेकिन जब दिखते ज़िस्म को गौर से देखो तो छोटे कपडें को खिचं कर बडा करने की कोशिश करती है ऐसा क्यौं? जब शर्म आती है तो ऐसा कपडा पहनते ही क्यौं हो? क्या घर से निकलते वक्त पता नही था की क्या दिख रहा है और क्या नही? अगर दिखाने का शौक है तो अच्छी तरह दिखाओ ताकि आपको उस पर टिप्पणी या किसी महानुभाव के सदुपदेश मिलें और आपकॊ अपनी कमी और खुबी का पता लगें।

    आप किसी के जिस्म को गौर से क्यों देखना चाहते है ? यदि आपके घर की कोई महिला बाथरूम की खिड़की बंद करना भूल जाए तो क्या लोगो को ये अधिकार होगा कि वो झांक कर देख ले अन्दर.. और यदि आप इस पर उनसे कुछ कहे तो वे आपको ऐसा कहे कि खिड़की खुली रखी ही क्यों थी? तब आप अपना ये लेख किसे पढायेंगे.. शालीनता की बात करने के लिए जो सबसे जरुरी है वो है शालीनता जो आपके इस लेख में कई नज़र नहीं आई इसलिए अंतिम कुछ पंक्तियों में मुझे भी कड़े शब्दों में लिखना पड़ा पर आपके लेख पर यही लिखा जा सकता था..

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  5. वाह कुश, क्या उम्दा उत्तर दिया है। मेरी बधाई लो।

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  6. अब देखिये न फ्रांस के राष्टपति ने घोषणा क्या की .लोग बहस करने बैठ गए है.....एक भाई साहब कुछ ज्यादा खफा थे .मैंने कहा गुस्सा क्यों होते हो .कोमन सेंस से एक बात सोचो....तुम गर्मियों में काला सूट पहनकर निकलते हो ?
    अब देखिये अपने कुछ तजुर्बे आप को सुनाता हूँ....कल सुबह के दस बजे एक १३ साल की लड़की किताब हाथ में लिए चल रही है ...पीछे से एक साइकिल वाला उससे कुछ कहके जाता है..लड़की सहमी ठिठकी वही खड़ी है .साइकिल वाला पीछे मुड़कर उसे देखकर अश्लील हंसी हँसता चला जाता है ....सोचता हूँ उस लड़की के लिए क्या अगला दिन सामान्य होगा...

    दूसरा तजुर्बा ..
    रोडवेज की बस के इंतज़ार में लोग खड़े है .एक महिला भी है ...आता जाता हर आदमी उसे अजीब सी निगाह से घूर रहा है .उसमे १७ साल के किशोर से लेकर ५५ साल के बूढे है ....
    आज का अखबार उठाकर देखेगे तो तीन बच्चियों से बलात्कार हुआ है ...एक का पडोसी ...एक का कजिन .....एक का चौकीदार ....बच्चियों की उम्र क्रमश ९ .११.ओर १३ साल है....

    अब बताये तहजीब की जरुरत किसे है ?

    खैर कुछ कहानियो का जिक्र करता हूँ..कभी मौका मिलिए तो पढियेगा
    सुबुही तारिक की 'अजानों के पहरे '
    गजल पैगाम की "नेक परवीन "
    तरन्नुम रियाज की" बुलबुल "
    बाकी ओर कुछ भी पढने को ...वो भी जिक्र करेगे ......आगे....वैसे

    मुझे कपड़ो से नहीं आदमी की नीयत से शिकायत है...

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  7. वाह कुश, क्या उम्दा उत्तर दिया है। dil khush kar diyaa aapne jeetae rahey

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  8. ्बहुत करारा उत्तर दिया कुश.. बधाई.. और आभार.. ्मजा आया दोस्त..

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  9. हम तो सोचते हैं कि जहाँ भी जो तथाकथित परिवर्तन (उन्नति या अवनति ) हो रहे हैं या भविष्य में होने वाले हैं वे जल्दी हो जाएं ,उनकी स्पीड तेज हो ताकि हम भी देख सकें :)

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  10. भारत परस्पर विरोधाभासी मूल्यों का देश बन गया है -जायदातर लोग कन्फ्यूज्ड रहते हैं ! कोई भी समाज अपनी एक अलिखित नैतिक आचार संहिता बना कर तदनुसार आचरण करता है -करना भी चाहिए !
    कुश इन दिनों फुरसत में लगते हैं विस्तार से अपनी रचनात्मक ऊर्जा का उन्होंने (सद ) उपयोग किया है ! लेकिन जो बात एक दो शब्दों /वाक्यों में कही जा सकती है उसके लिए इतना स्पेस लिया जाना समीचीन नहीं है !
    एक ओर हम पाश्चात्य उन्मुक्तता की भर्त्सना करते नहीं अघाते -मगर फिर भी नक़ल उनकी ही अप संस्कृति का करते हैं -हम ड्रेस कोड की ही बंद गांठों को क्यों खोलने पर उतारू हैं -और भी बहुत कुछ है जो उसी से संपृक्त है -उन्मुक्त यौन सम्बन्ध ,टीन सेक्स ,गर्भनिरोध /गर्भनिवारण ,तलाक दर तलाक ,विवाहेतर सम्बन्ध जो एक अध्ययन के मुताबिक जींस संस्क्रती के शिखर देश में ६० प्रतिशत महिलाओं और ४० प्रतिशत पुरुषों में है -हमें इन्हें भी शौक से हरी झंडी दे देनी चाहिए !
    कितने अधकचरे हैं हम केवल कपडे की साईज लिए बैठे हैं !
    बाटम लाईन: कोई कुछ पहने यह उसकी अपनी स्वतंत्रता है -पर समाज .देश काल और शालीनता का भी ध्यान रखना चाहिए !

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  11. आप सब लोग मेरे ब्लोग पर पधारे और अपने बहुमुल्य विचार रखें उसका बहुत - बहुत शुक्रिया। ऎसे ही आते रहें और मेरे लेखन में मौजुद कमियों और खुबियों को बताते रहें ताकि आगे मे उन कमियों को दुर कर सकुं।

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  12. कुश जी, आपने अपने विचार रखें उसका बहुत बहुत शुक्रिया। मैं मानता हूं की मेरे लेख मे शालीनता की कमी रही है लेकिन मैने जीस विषय पर ये लेख लिखा है उस पर इससे ज़्यादा शालीन शब्दों का इस्तेमाल नही हो सकता।

    अगर हो सकता है तो आप मुझे एक उदाहरण ई मेल कर दीजिये मैं आगे से उन्ही शब्दों का इस्तेमाल करूगां।

    और रही बात शर्म की तो यहां पर बात सिर्फ़ औरत और महिलाओं के परिधान के ऊपर हो रही है। मैं मर्दों के लो-वेस्ट जीन्स पहनने के भी खिलाफ़ हूं और मैं खुद कभी ऐसी जीन्स नही पहनता हुं

    जिस जीन्स को लडकियां बहुत Comfortable कहती है वो जीन्स Comfortable तभी रहती है जब थोडी सी ढीली हो.....जिस्म से चिपकी हुई जीन्स Comfortable नहीं होती है।

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  13. आगे आपने लिखा

    उच्च वर्गीय परिवारॊं के बच्चो को क्या जीने का हक़ नहीं है ? यदि उनके पास पैसा है तो क्या वे अच्छे कपडे नहीं पहने..? दोस्ती करना, नहीं करना निजी फैसला है.. अपनी हीन भावना को छुपाने के लिए आपने कोलेज में ड्रेस कोड लागू करवाया.. उनको देखकर हीन भावना आपमें पनपी ऑर आपने उन्हें ही दोषी ठहरा दिया.. आप सोचिये यदि वाकई कोई गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है जिसके पास दो ही जोड़ी कपडे है वो ड्रेस कोड के लिए दो जोड़ी और कहा से लाएगा?

    हम लोगो ने जो फ़ैसला लिया था वो हमारा निजी फ़ैसला था। हमने जब इस विषय मे अपने प्रिसीपल से बात की तो उन्होने कहा अगर कालेज के ६० प्रतिशत बच्चे साईन करके दें तो हम ड्रेस कॊड के बारे मे विचार करेंगें।

    तब हमने साईन कराने के लिये Notice Board पर Notice लगाया और एक हफ़्ते तक ये अभियान चला और आपको मैं बता दूं उस खेमे ने हमारे खिलाफ़ अभियान चलाया था और हमारी शिकायत लेकर प्रिंसिपल के पास गये थे लेकिन जब सर ने बताया की हमने इजाज़त दी है तो फिर उन्होने भी कोशिश की थी साइन कराकर ड्रेस कोड को रुकवाने की

    उन्हे मिले १८% बच्चों के साइन और हमें मिले ६८% बच्चों के साइन और उस साल तो नही पर नये साल से हमारे कालेज मे ड्रेस कोड लागु हुआ ड्रेस कोड को लागु कराने के पिछे एक वजह और थी वो ये की जब भी कोई झगडा होता था तो बाहर के लडके कालेज मे आकर किसी को भी पीट जाते थे तो रंग - बिरंगे कपडों के बीच उन्हें पहचानना बहुत मुश्किल था

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  15. आगे आपने लिखा...

    आपको अच्छी तरह से पता है की साडी नाभि से कितने इंच नीचे बाँधी जाती है.. ब्लाउज़ की आस्तीन भी आपने देख ली.. और साथ मे आगे से गले का बडा सा हिस्सा भी देख लिया.. और पीछे से पीठ का काफ़ी बडा हिस्सा भी देख लिया.. आगे से गले की लम्बाई भी नाप ली..आपने ब्लाउज़ का महीन कपडा भी देखा ऑर उसमे से आपने उनके अन्त्वस्त्र भी देख लिए और यहाँ तक भी देख लिया कि कौनसे नंबर के हुक में उसे लगाया गया गया है.. क्या आप इसे शालीनता कहेंगे?

    मेरी उम्र २३ साल है और इन २३ सालों मे से पिछ्ले सात साल से मैं अपने पिताजी का कारोबार संभाल रहा हूं और इसके सिलसिले मे मुझे हफ़्ते मे चार दिन अपने शहर आगरा के बाहर गुज़ारने होते है। और बाकी तीन दिनों मे रोज़ सात से आठ घंटे मेरे मेरी बाईक पर गुज़रते है काम के सिलसिले में।

    मै यु. पी. और भारत के बीस शहरों की सभ्यता, रहन-सहन, पहनावा सबकुछ देख चुका हूं। मैं हमेशा जब भी कोई बात करता हूं तो पूरी जानकारी करने के बाद ही करता हूं उस जानकारी से जब तक मैं सन्तुष्ट नही होता तब तक मैं किसी के सामने उस विषय पर ज़्यादा बात नही करता।

    मैनें इन सात सालॊं में मैनें प्लेन, ट्रेन के ए.सी., स्लीपर, जनरल क्लास, बस, टांगा, ट्र्क, हर तरह से सफ़र कर चुका हूं और हर उम्र और हर तरह के लोगो से बात की है। इसमे औरतें, लडकियां, छात्र, पुरुष सब शामिल है। मेरी आदत है की मैं सफ़र मे कभी चुप नही बैठता और अपने सहयात्री से किसी न किसी विषय पर बात करता रह्ता हूं। तो मैनें जो कुछ भी लिखा है इसमे मेरा इतने दिनॊं का अनुभव और दुसरों लोगो के विचार और सोच शामिल है।

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  16. ब्लागर भाइयों ध्यान दें , डॉ. अरविन्द मिश्रा बौद्धिकता का तराजू लेकर बैठे हैं ! उनसे बुद्धिमान होने का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लें ! कन्फ्यूज्ड और अधकचरे होने से कोई लाभ नहीं ! चाहें तो उनके सुझाये टापिक पर लिखें और पूरेकचरे हो जायें !

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  17. आगे आपने लिखा....

    हम ये क्यों देखे की लड़की ने वैक्सिंग कराई है या नही।क्या इस से देश की कोई बड़ी समस्या का हल मिल जाएगा.. या फिर हम अपने मनुष्य जन्म को धन्य समझेंगे.. हम इस बात से क्यों हलकान हो कि लड़की ने वैक्सिंग कराई है या नही..

    वही हुआ जो होता आया है मैं बता रहा हूं सलवार के पारदर्शी होने की सीमा और आप कह रहे हो इससे देश की बडी समस्या का हल मिल जायेगा। मैने ये बात सिर्फ़ कपडे की पारदर्शीता की हालत बताने के लिये प्रयोग की थी।

    और रही बात लड्कीयों की बैकलाइन देखने की तो मुझे इस चीज़ का शौक नही और ना मुझे ये पसंद है। मैं औरत की इज़्ज़त करता हूं तभी तो मैं राह चलती लडकियों से उनकी ऊपर खिसकती टी-शर्ट को नीचे करने की सलाह देता हुं ये तो आपको भी पता होगा की जब आप बाइक पर जा रहे हों और आपके ठीक सामने कोई लडकी गाडी पर चल रही हो तो क्या आपको वो और उसके कपडे नही दिखेंगे ये तो मैं मान नही सकता और जो कुछ भी मैने लिखा था वो मैने अपने दोस्तों, अपने जानने वालों, अपने सहयात्रीयों, और अपने सामने हुये घट्नाक्रमों को देखने के बाद इतना सब कुछ लिखा था।


    अब आगे....साडी के ब्लाउज़ और कमीज़ के गले के नाप की तो उसका नाप तो मुझे भी इसके बारे नही पता था लेकिन एक दिन मैने अपनी एक दोस्त को टोका तो वो बोली अरे ये तो सिर्फ़ सात इंच का है और औरते तो ग्यारह इंच का गला पहन रही है

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  18. आगे आप लिखा....

    आप किसी के जिस्म को गौर से क्यों देखना चाहते है ? यदि आपके घर की कोई महिला बाथरूम की खिड़की बंद करना भूल जाए तो क्या लोगो को ये अधिकार होगा कि वो झांक कर देख ले अन्दर.. और यदि आप इस पर उनसे कुछ कहे तो वे आपको ऐसा कहे कि खिड़की खुली रखी ही क्यों थी? तब आप अपना ये लेख किसे पढायेंगे.. शालीनता की बात करने के लिए जो सबसे जरुरी है वो है शालीनता जो आपके इस लेख में कई नज़र नहीं आई इसलिए अंतिम कुछ पंक्तियों में मुझे भी कड़े शब्दों में लिखना पड़ा पर आपके लेख पर यही लिखा जा सकता था..

    मैने अपने लेख मे सबसे शालीन शब्दों का प्रयोग किया है और इससे शालीन शब्द आपको पता हो इस विषय के लिये तो मुझे ज़रुर बतायें। और रही बात खिडकी की और खोलने और खुली रह जाने मे बहुत फ़र्क होता है।

    आपने मेरी इतनी बातों का जवाब दे दिया तो इस बात का भी दे देते की "जो नज़ारा रोड पर आम होता है वो मैनें सबसें शालीन शब्दों का प्रयोग कर सबके सामने रखा तो उसको आप लोगो ने गर्मा - गर्म और पोर्न कह दिया तो जो लडकियां और औरतें ऐसे कपडें पहन कर सडकं और बाज़ारॊं मे घुमती है उनकों आप लोग क्या कहेंगें? वो लोग क्या परोस रही हैं?"

    और अन्त में मुझे जो कहना था वो मैं कह चुका, मेरा फ़र्ज़ था आगाह करना वो मैनें कर दिया

    "आगे कोई माने तो उसका भला और न माने तो उसका भी भला"

    मेरे ऊपर इस चीज़ का खास फ़र्क नही पडता है क्यौंकी हमारे आगरा मे एक बात बहुत मशहुर है की
    "जब कोई बगैर देखें मिट्टी खा रहा हो तो उसे रोको
    लेकिन जब कोई आखों देखें मिट्टी खायें तो उसको क्या रोकना और क्या टोकना"


    मैने अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया और आगे भी अदा करता रहूगां

    आप सबका आभारी

    काशिफ़ आरिफ़

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  19. कई चीजें या बातों को नजरअंदाज करना ही बेहतर। जहां तक सवाल है कि कपड़े अश्लीलता को पार नहीं करने चाहिए। पर इसका पैमाना क्या है। जो कम कपड़े पहनते हैं उनसे पूछो तो वो कहते हैं कि तुम मर्द लोग तो dual charactor वाले हो, देखना भी हो आंखें फाडकर और फिर शिकायत भी करते हो। शालीनता का पैमान क्या है। और जहां तक मैं देख पाता हूं तो आजकल तो सूट पहने या फिर पूरा ढके हुए भी पहने लड़कियां सुरक्षित नहीं है। क्या कहेंगे इसको।

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  20. अनुराग जी,
    आप मेरे ब्लोग पर आये और अपने बहुमुल्य विचार रखें उसका बहुत बहुत शुक्रिया। बलात्कारी तो दिमागी मरीज़ होता है ये सब जानते है लेकिन आप एक बात का जवाब दीजिये की एक बलात्कारी सडक से गुज़र रहा है और उसके सामने से एक लडकी शालींन परिधान मे आ रही है और एक लडकी का जिस्म उसके परिधान मे से दिख रहा है।

    अब आप बताये किस लडकी को देख कर उसके मन मे बलात्कार की भावना जागेगी?

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  21. रस्तोगी जी,
    लिखने से पहले थोडा सा सोच लेते...आप अपनी बात को खुद काट रहे है। आप मुझे भला बुरा कह रहे है की मैं लडकियौं के कपडॊं मे झांकता हूं और मैं अपने ब्लोग पोर्न परोस रहा हूं और आप तो खुले आम कह रहें की आपको ये सब बहुत पसंद है।

    आप मुझे गिरा हुआ कह रहें है आप तो मुझसे भी ज़्यादा गिर गये मैं तो देख कर आलोचना कर रहा हूम और आप तो उसका आनंद ले रहे। शर्म आनी चाहिये आपकॊ

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  22. रचना जी,
    मैने अपने दोनो लेखों मे एक बार भी ऎसा लिखा है की रेप सिर्फ़ जीन्स पहनने वालॊ लडकीयों का होता है। बलात्कार और छेडे जाने वाली लडकीयों मे इन लोगो का प्रतीशत ज़्यादा होता है।

    पिछ्ले दो-तीन सालों मे दिल्ली में जो लडकीयां रास्ते से कार उठाकर ले जाई गंई उन्होने क्या शालीन कपडे पहने थे?

    पिछले साल नये साल की रात को दिल्ली या मुम्बई मुझे ठीक से याद नही है "एक डिस्को के बाहर चार-पाचं लडकियों के कपडें दस-बारह लडकों ने शराब के नशे में फाड दिये थे उन सब लडकियों ने माईक्रो मिनी और मिनी स्कर्ट तथा बैक लैस टाप पहने हुए थे।"

    अच्छा एक बात बतायें एक बलात्कारी जो घर से ये सोचकर निकला है की वो किसी का रेप नही करेगा और सडकं पर उसे वो नज़ारे दिखते है जो मैने अपने लेख मे लिखे थे तो क्या वो अपने आप को काबु मे रख सकता है?


    बलात्कारी तो एक मानसिक रोगी होता है लेकिन ऐसे लोगो का प्रतिशत कम है। टी.वी., सिनेमा, सडक, जब हर जगह एक इन्सान को अश्र्लीलता दिखेगी और इस तरह की कोई ख्वाहिश पुरी नही हो रही होती है तो आदमी वहशी बन जाता है और इस तरह का कदम उठाता है।

    इस तरह के कपडॊं से बलात्कारी और छेडछाड करने वालॊ को बढावा मिलता है। उनकी दबी हुई भावनायें जाग जाती है।

    मेरी पिछली पोस्ट पर रंजना जी ने एक टिप्पणी की उसका कुछ हिस्सा मैं आपकॊ बता रहा हुं


    समस्या यह है कि आज आधुनिकता के अंधी दौड़ में शामिल लड़किया/स्त्रियाँ जींस सलवार कमीज से लेकर साड़ी या किसी भी परिधान में शीलता और अश्लीलता में भेद को ध्यान में नहीं रख पातीं...फैसन का अर्थ जब फिल्मी नायिकाओं की नंग्नता का अन्धानुकरण हो तो फिर भेद करने का अधिक सामर्थ्य रख पाना सरल भी तो नहीं.

    औरतें अर्धनग्न रहें व्यसन में लिप्त रहें.... इसे प्रगतिशीलता, अपना अधिकार और पुरुषों के बराबरी का मामला बना दिया है कतिपय लोगों ने और यह काफी गहरे मन में बैठ चुकी है.......

    और ऐसे विश्वास को किसी भी हालत में ,कितना भी चिल्लाओ ,नहीं डिगा सकते.... नाहक अपनी फजीहत करवाओगे....

    एक आम स्त्री पुरुष का कंसर्न पश्चिमी परिधानों से नहीं बल्कि पहनावे ,व्यवहार तथा क्रिया कलाप में अपनाए गए अश्लीलता से है ,इस बात को प्रगतिशीलता तथा नारी अधिकारों के लिए आवश्यकता से अधिक सजग समाज न ही समझ पायेगा और न ही स्वीकार करेगा....

    सच कहूँ तो जिन नग्न्ताओं का तुमने अपने आलेख में वर्णन किया है...मैं भी अपने आस पास अक्सर देखती हूँ और बहुत ही दुखी होती हूँ कि स्त्रियों ने स्वयं ही अपने हाथों अपने को कितना नीचे गिरा दिया है,जिन्हें गरिमा नहीं ग्लैमर खींचती है अपनी ओर..

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  23. आरिफ मेरे दोस्त.. पिछले पड़े अखबार उठाओ.. सात साल की बच्ची से बलात्कार.. बारह साल की बच्ची से बलात्कार.. यहाँ तक की डेढ़ साल की बच्ची से बलात्कार हुआ है? इन्होने कैसे कपडे पहने होंगे?

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  24. आप भी कुश ..किन्हें समझाने चले हैं ....विवाहित हूँ ..साडी भी सही पहनती हूँ ..डीप नेक नही रहता फिर भी मैं जिस दिन भी निजी वाहन छोड़ कर बसों में आती जाती हूँलोगों की छेड़छाड़ और मौका मिलते ही वहशी हो जाने वाली मानसिकता का सामना करना पड़ता है .. .इसका क्या कहेंगे ...कुछ लोगों को समझाया नही जा सकता. क्योंकि वे नारी देह से उपर कुछ सोंचेंगे ही नही ..उन्हें हम जीते जागते नजर ही नही आते और वस्तु के साथ कैसा व्यहवार किया जाना चाहिए यह उन्हें बेहतर आता है.

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  25. देखो भाई.. जिद पर अड़ना हर बार ठीक नहीं.. हमारे हिंदुस्तान को जरुरत है ऐसे युवाओं की जो सही सोच दे सकें न कि ऐसे लोगों कि जो तय करें कि किसको क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं.. हर तरह के कपडे हर जगह पहने जाते हैं.. अगर तुम्हें खोट लगता है तो अपने मन के अंदर झांको दोष तुम्हारा है...

    आपसे उम्मीदें है.. बेहतर लिखो..

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  26. सुनील जी,
    आप मेरे ब्लोग पर आये और अपनी बहुमुल्य टिप्पणी दी इसका बहुत बहुत शुक्रिया।
    भाई बात ज़िद की नही है....मेरे इस ब्लोग से आज तक मैने जितने भी लेख लिखे है उनका मकसद नेक रहा है और रहेगा। मैं औरत ज़ात की इज़्ज़त करता हूं और मैने बहुत से ऐसे नज़ारे देखें की जब औरते और लडकियां अपने पहनावे की वजह से मुसीबत मे फ़ंस चुकी हैं।

    मैं कपडॊं पर पाबंदी या उनकॊ पहनने को मना नही कर रहा हूं......मैं तो ये कह रहा हूं की जब भी कोई परिधान पहनो चाहें वो देशी हो या विदेशी लेकिन उसमें शालीनता का ख्याल रखों।

    पार्टी वियर, और डेली वियर मे फ़र्क करें।

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  27. main khud kaafi tolerant nature ka person hoon,so kisi ki baat ko kori bakwaas kehke dismiss nahi karta...uske peeche uski soch ko samajhne ki koshish karta hoon,log alag tarah ke maahol aur parivesh se aaye hai,uska asar dikhta hai...aapke maahol me kuch aisi baatein rahee hongi jiske kaaran aapki soch itni bakward aur aapki mentality itni sick hai...

    aapko seedhe saadhe bhasha me ek ujjad type ka person bhi kaha jaa sakta hai,jaisi baat aapne ki hai,par isse behtar mujhe yehi lagta hai ki main ye dua karoon ki parivesh ka asar jo aap me dikh raha hai usko parivesh hi dheere dheere door kare...yahaan hindi blogging ki duniya me bahut saare mature logo ke beech aap hai,is maahol ka kuch positive asar zaroor hogaa....

    aap shayad umr se mujhse bahut bade honge,mera aapse is tarah baat karna katayi jaayaz nahi...par kuch mauko pe thoda temper kho hi dena chahiye

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  28. aap jis tarah ki dress ki khukle buraayi kar rahe hai,mere college me meri frnds bhi kai baar aisi dresses pahanti hai...humaare liye ye normal baat ho gayi hai...haan thoda odd shuru me laga,but jab inko jaana to I got to realise ki inme se kai to aisi ladkiyo se bhi kahin zyaada sanskaari hai,jinko salvaar suit ke bina kabhi dekha nahi hogaa....ye baatein insaan ki soch me hai...yug proffesionalism ka hai,ladkiyo ko ye hak bhi hai ki wo apne appeal ko thoda sa use kare agar mard ch*&%^ banne ko tayyar hai...galti mard ki hogi...par agar koi female ek bikini ya swimsuit me college nahi aa jaati to uski dressing pe is tarah ki tippani nahi kar sakte aap...ye sab bahut normal baatein hai,thoda dimaag kholiye apnaa...

    humara desh illiterate logo se aaj bhi dominate ho raha hai...illiterate formally,ya mind se illiterate..

    and I repeat...ye kamar aur baah,even as u said antavastr dikhaane waale jeans pehenni waali kuch ladkiyaan bhi shayad aapke ghar ki ladkiyo se kam sanskaari nahee hai....stop being judgemental...and I guess U will stop being cheap automatically

    जवाब देंहटाएं
  29. सजल जी,
    आप मेरे ब्लोग पर आये और अपने "बहुमुल्य विचार" रखें उसका बहुत बहुत शुक्रिया।

    आपने कहा की आप सोच को समझने की कोशिश करते है? मुझे तो ऐसा नही लगता क्यौंकी मैने एक बार नही कई बार कहा है की मुझे कपडों से नही कपडों के पहनने के तरीके से परेशानी है। और आपकी जानकारी के लिये बता दूं की मेरी सोच बैकवर्ड नही है...मै भी फ़ैशन करता हूं ...मै भी जीन्स पहनता हूं ....और रही बात रुढिवाद, पुराने विचार और आधुनिकता के विरोध की तो ऐसा कुछ नही मैं आधुनिकता का विरोधी नही.....मैं नग्नता का विरोधी हुं।

    मैं औरत ज़ात की इज़्ज़त करता हूं तभी मुझे पंसद नही है की लोग किसी लडकी को गलत निगाह से देखें और अच्छा खासा आदमी की नियत भी इस हालत मे लडकी को देखकर बदल जायेगी और वो गलत सोचने लगेगा।

    मैं ये नही कहता की सिर्फ़ ऐसे कपडे पहनने वाली लडकियां ही छेडी जाती है लेकिन छेडी जाने वाली लडकीयों मे इन लोगो का % ज़्यादा होता है।

    रही बात उम्र की तो मेरी उम्र आप से तो कम ही है।

    एक बात कहना चाहूंगा "जो लोग कद्र और इज़्ज़त करते है तो वो ख्याल भी रखते है" और मैं वही कर रहा हूं

    मुझे एक टिप्पणी मिली थी

    रंजना ने आपकी पोस्ट " ये शालीनता है, अश्लिलता हैं, फ़ैशन हैं, या फ़ुहडपन... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    बचवा ,जो तुमने लिखा/कहा...इमानदारी से कहती हूँ...देश के कम से कम ३०-४०% या हो सकता है इससे अधिक भी हो यह प्रतिशत ....बिलकुल ऐसी ही सोच रखते हैं. हाँ इस मंच पर अधिकाँश यह स्वीकारने में झिझकते हैं,कि कोई उन्हें रूढिवादी,पुराने विचारों वाला ,आधुनिकता का विरोधी न समझे.

    समस्या यह है कि आज आधुनिकता के अंधी दौड़ में शामिल लड़किया/स्त्रियाँ जींस सलवार कमीज से लेकर साड़ी या किसी भी परिधान में शीलता और अश्लीलता में भेद को ध्यान में नहीं रख पातीं...फैसन का अर्थ जब फिल्मी नायिकाओं की नंग्नता का अन्धानुकरण हो तो फिर भेद करने का अधिक सामर्थ्य रख पाना सरल भी तो नहीं.

    औरतें अर्धनग्न रहें व्यसन में लिप्त रहें.... इसे प्रगतिशीलता, अपना अधिकार और पुरुषों के बराबरी का मामला बना दिया है कतिपय लोगों ने और यह काफी गहरे मन में बैठ चुकी है.......

    और ऐसे विश्वास को किसी भी हालत में ,कितना भी चिल्लाओ ,नहीं डिगा सकते.... नाहक अपनी फजीहत करवाओगे....

    एक आम स्त्री पुरुष का कंसर्न पश्चिमी परिधानों से नहीं बल्कि पहनावे ,व्यवहार तथा क्रिया कलाप में अपनाए गए अश्लीलता से है ,इस बात को प्रगतिशीलता तथा नारी अधिकारों के लिए आवश्यकता से अधिक सजग समाज न ही समझ पायेगा और न ही स्वीकार करेगा....

    सच कहूँ तो जिन नग्न्ताओं का तुमने अपने आलेख में वर्णन किया है...मैं भी अपने आस पास अक्सर देखती हूँ और बहुत ही दुखी होती हूँ कि स्त्रियों ने स्वयं ही अपने हाथों अपने को कितना नीचे गिरा दिया है,जिन्हें गरिमा नहीं ग्लैमर खींचती है अपनी ओर........

    सो मेरी सलाह है कि छोड़ ही दो इस विषय को..... जिन्हें भान है इस बात का....जो दिखने के आधार पर अपनी पहचान बनाने में नहीं बल्कि अपने महत कार्य के बल पर अपनी पहचान बनाने में विश्वास रखती हैं या बना रही हैं....ऐसा भी बहुत बड़ा समूह हमारे देश में ,हमारे समाज में मौजूद है और यह समूह अपने तरह से प्रगतिशीलता , नारी अधिकार तथा सफल सशक्त व्यक्तित्व की परिभाषा को सच्चे अर्थों में परिभाषित कर रही हैं.....

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  30. मैने जब उसका जवाब दिया

    रंजना जी,
    आप मेरे ब्लोग पर आयीं और अपनी बहुमुल्य राय दी उसका बहुत - बहुत शुक्रिया।

    मैं इस विषय पर लिखना चाहता था लेकिन अंदाज़ा था की इसका विवाद बन जायेगा तो नही लिख रहा था लेकिन उस दिन एक दिन मे पाचं पोस्ट इस सम्बंध मे पढ ली तो जो गुबार मेरे दिल था वो निकल गया। मैं औरत की इज़्ज़त करता हूं और मैं जानता हूं की मैनें जो लिखा है उसका एक - एक शब्द सच है।

    और रही बात रुढिवाद, पुराने विचार और आधुनिकता के विरोध की तो ऐसा कुछ नही मैं आधुनिकता का विरोधी नही.....मैं नग्नता का विरोधी हुं।

    ऐसे ही आते रहे और हौसला बढाते रहें


    तो मुझे ये मेल मिला

    कासिफ ,मैं तुम्हारी भावनाओ को समझ सकती हूँ....और सच पूछो तो मुझे इतना सुखद लगा यह आभास करना की आज के समय में जब युवा वर्ग अधिकांशतः दिग्भ्रमित है...तुम ऐसी भावनाए रखते हो,यह बड़े ही सौभाग्य की बात है...
    मैं तुम्हारी भावनाओ के प्रति नतमस्तक हूँ...जो पुरुष नारी के प्रति सम्मान की भावना न रखे मेरे नजर में वह पुरुष ही नहीं...तुम्हारे माता पिता के प्रति भी मैं नतमस्तक हूँ,जिन्होंने तुम्हे ऐसे सुसंस्कार दिए हैं....बड़े ही किस्मतवाले हैं वे.

    जब नग्नता ही प्रगतिशीलता मणी जाने लगे...तो सामने वाले को कन्विंस करना बड़ा ही मुश्किल होता है की शालीनता और नग्नता में क्या फर्क है.

    सतत सुन्दर लेखन के लिए मेरी शुभकामनाये...सदा खुश रहो,सुखी रहो और ऐसे ही बने रहो जैसे हो..

    रंजना.




    तो सजल जी मैं आपका आभारी हूं की आपने अपने बहुमुल्य विचार रखें आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  31. काशिफ़ जी, ज़्यादा टेंशन लेने का नही बस ऐसे ही बिन्दास लिखते रहो

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  32. बेकार कि बहस है लड़कियाँ अब सशक्तिकरण के दौर में हैं वह आज स्वच्छँँद जीना चाहती है क्योंकि वह सदियों से अपने मन कि भड़ास नही निकाल पायी थी जो अब ज्वालामुखी कि तरह फूट पड़ा है। घूमने दिजिये इनको नग्नावस्था में।भई! अपने शरीर की स्वयं मालकिन हैं ।अब तो जो ज्यादा अपने आप को ढंके उसपर जुर्माना लगना चाहिए ।

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  33. Namaste ji Kashif bhai,iss adhunik kal me ladkiyonke kam kapde pahnne ke apke virodh ka mai purntaha samarthan karta hu. Apne Jo bhi sujhav diye is vishay me vo vakahi 100% sahi hai. Mere bhi is mamleme yahi vichar hai.

    Rahul Kawde, Nagpur.

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काशिफ आरिफ

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