मैं काफ़ी दिनों से देख रहा हू की इस हिन्दी ब्लोगिंग जगत को कुछ तुच्छ मानसिकता वाले हिन्दी ब्लोग्गर दो हिस्सो मे बाटनें मे लगे हुए हैं। इनके ब्लोग पर आपको हमेशा हिन्दुत्व के सम्बन्ध मे, भाजपा और संघ की तारीफ करती हुई पोस्ट मिलेगीं। मुझे उनके भाजपा या किसी और तारिफ़ करने से कुछ परेशानी नही हैं, परेशानी मुझे इस बात से है कि इनका हर लेख काग्रेंस, इस्लाम और मुस्लिम समुदाय की बुराई से शुरू होता है और सघं, भाजपा, और हिन्दुत्व की तारिफ पे खत्म होता है। इन सब के ब्लोग्स पर Comment Moderation लगा हुआ है, जो टिप्पणी इनको प्रकाशित करनी होती है उसे प्रकाशित करते है वर्ना जो टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही इनके खिलाफ होती उसे ये पी जाते है, इनके लेख पढेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे की आप भाजपा या सघं के किसी नेता का भाषण सुन रहें है।
मैं काफ़ी दिनॊं से चुप था लेकिन अब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैने ये लेख लिखा है। इन ब्लोग्गर्स मे से प्रमुख है :- सुरेश चिपलूनकर जी, त्यागी जी, अरुन उर्फ पन्गेबाज़ जी। और इनके ब्लोग पर आपको जो इनकी हौसला अफ़ज़ाई करते मिलेगें उनमे प्रमुख है :- संजय बेंगाणी, ताऊ रामपुरिया, दिनेशराय द्विवेदी, अजित वडनेरकर, संजीव कुमार सिन्हा, शिव कुमार मिश्रा, महाशक्ति, ऋषभ कृष्ण, राज भाटिया, आदि। आपको किसी ब्लोग पर हिन्दुत्व की तारिफ करती या इस्लाम और कांग्रेस की बुराई करती कोई पोस्ट मिलेगी तो आपको उस पर इन लोगो की टिप्पणी ज़रूर मिलेगीं।
ये लोग अपने आप को देशभक्त और राष्ट-धर्म का पालन करने वाला बताते है और अगर इनहे सम्प्रदायिक कह दो तो इनको बहुत - बहुत बुरा लगता है। ये दुसरे लोगो यानी कांग्रेस और मुसलमानो को सेकुलर इस अन्दाज़ से कहते है जैसे गाली दे रहे हो, लेकिन मै इन "कथित" देशभक्तो से मै एक सवाल करना चाह्ता हू की देशभक्त कौन होता है? जो एक देश की बात करता है या जो सिर्फ़ एक धर्म या जाति विशेष के लोगो कि बात करता है। यह लोग इतने बेवकुफ तो नही है कि इन्हे पता न हो की ये हिन्दु राष्ट नही है, या की कितने बरसो से कितने धर्मों और सभ्यताओ के मानने वाले लोग हमारे इस देश रह्ते आ रहे हैं।
क्या आप लोग मेरे कुछ सवालो के जवाब देगें?
देशभक्त कौन होता है?
राष्ट-धर्म क्या होता है?
साम्प्रदायिक कौन होता है?
सेकुलर कौन होता है?
चलिये मै ही दे देता हु देशभक्त वो होता है जो हर हाल मे अपने देश और देशवासियों का भला चाह्ता है। हर हाल मे हर मुसीबत से अपने देश को बचाने कि हर सम्भव कोशिश करता है। राष्ट-धर्म भी यही कह्ता है की तुम्हारा राष्ट ही सर्वोपरी है बाकी सब बाद का है लेकिन इन लोगो को तो किसी चीज़ से कोई मतलब नही है।
साम्प्रदायिक उस शख्स या संस्था को कह्ते है जो सिर्फ एक धर्म या जाति की बात करती है चाहे वो कोई भी हो।
सेकुलर वो होता है जो हर जाति और धर्म के लोगो के भले के लिये काम करें।
मैने इन सबकी परिभाषा इसलिये बतायी है क्यौंकि ये जितने ब्लोगगर हैं वो सब ३५ वर्ष से ऊपर के हैं तो मुझे लगा शायद भूल गये हो इसलिये उनको याद करा दिया।
मेरी इन सब लोगो से गुज़ारिश है की महरबानी करके ये सब बन्द कर दें, इस ब्लोगिंग जगत और हमारे देश को दो हिस्सो मे ना बाटें। आज के युवा को सारी बीती बातें भूलकर आगे अपना भविष्य बनाने दें अगर वो इस तरफ लग गया तो फिर कुछ नही कर पायेगा।
इसलिये आज के युवा ने काग्रेंस को वोट किया था क्यौंकी वो विकास की बात कर रहें है राम-मन्दिर की नही।
अगर अब भी आप अपनी विचारधारा को सही मानते है तो फिर हमें ऐसा देशप्रेम और राष्ट-ध्रम नही चाहिये.......!!
जय हो आप की! और आप के नजरिए की!
जवाब देंहटाएंसाम्प्रदायिक उस शख्स या संस्था को कह्ते है जो सिर्फ एक धर्म या जाति की बात करती है चाहे वो कोई भी हो।
जवाब देंहटाएंसेकुलर वो होता है जो हर जाति और धर्म के लोगो के भले के लिये काम करें।
आपकी ये परिभाषाएँ सही है लेकिन क्या आप बता सकते है कि भारत में एक भी दल ऐसा है जो आपकी बताई सेकुलर वाली परिभाषा के हिसाब से सेकुलर है | सबसे ज्यादा सेकुलर होने वाले का दंभ भरने वाले वामपंथी ,मुलायम आदि मुस्लिम वोटो के लिए खुले आम झुझते दिखाई देते है , अपने आप को सेकुलर कहने वाली मायावती की राजनीती ही वर्ग संघर्ष शुरू करवा कर ही हुई | हिन्दू वोटो का ध्रुवीकरण कर सत्ता में आने का सपना संजोए रखने वाली भाजपा साम्प्रदायिक है | लेकिन मुस्लिम वोटो का भी ध्रुवीकरण कर अपने पक्ष में करने का प्रयास क्या साम्प्रदायिकता नहीं है ?
आरिफ जी इस देश के राजनैतिक दलों में सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे है सब जातिवाद,क्षेत्रवाद और सम्प्रदायवाद का सहारा लेकर ही सत्ता तक पहुंचता है चुनाव के वक्त टिकट वितरण में इस तरह का प्रबंध आप हर दल में देख सकते है | अतः सिर्फ भाजपा व संघ को दोष देना न्यायोचित नहीं है इस देश में इनसे भी ज्यादा खतरनाक तत्व मौजूद है जो अद्रश्य है या उन्होंने सेकुलर होने का लबादा ओढ़ रखा है उन्हें पहचान कर उनका सूपड़ा साफ़ करने की ज्यादा जरुरत है | भाजपा और संघ तो तथाकथित सेकुलरवादियों के लिए अल्पसंख्यकों को डराकर उनके वोटों का ध्रुवीकरण करने का एक मात्र औजार है | इनसे डरने की कोई जरुरत नहीं | भाजपा को तो इस देश की जनता व खुद हिन्दू ही कभी भी ओकात बता सकते है और इन चुनाव में आप इसकी झलक देख भी चुके होंगे |
सकारात्मक चिन्तन। ऐसे विचार के समर्थन में कभी मैंने लिखा था-
जवाब देंहटाएंमंदिर को जोड़ते जो मस्जिद वही बनाते।
मालिक है एक फिर भी जारी लहू बहाना।।
मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत।
रोटी बड़ी या मजहब हमको जरा बताना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जहाँ तक उपरोक्त टिप्पणीकर्ताओं के बारे सवाल है इनमे से मै कईयों को पढता रहता हूँ ताऊ रामपुरिया ,दिनेश जी ,भाटिया ,संजय बैंगाणी जी आदि के लेखन में मुझे तो कभी साम्प्रदायिकता की बू नहीं आई | यदि ये लोग कांग्रेस के खिलाफ टिप्पणी करते है तो इसमें बुरा लगने वाली कोई बात नहीं ! आप भी तो एक दल के खिलाफ है और ये आपका मौलिक अधिकार भी है | जिस तरह आप भाजपा को पसंद नहीं करते उसी तरह मै भी वाम दलों ,सपा,बसपा, अजित सिंह, पासवान आदि को पसंद नहीं करता तो क्या हुआ , लोग तो उन्हें पसंद कर रहे है ,तब ही तो ये कायम है |
जवाब देंहटाएंरही बात इस्लाम की आलोचना की | मै किसी भी धर्म की निंदा के खिलाफ हूँ लेकिन फिर भी यदि किसी की आलोचना होती है तो उसे बर्दास्त करना ही चाहिए | इसी में सुधार छुपा होता है |
@ रतन जी, मुझे राजनितिक पार्टियों की विचारधारा से कोई मतलब नही है, मुझे परेशानी इस बात से है की उन्की विचारधारा का समर्थन वाले ब्लोग्गर की बात का असर आम लोगो की ज़िन्दगी पर पढ रहा है।
जवाब देंहटाएंमेरी भाज्पा से कोई दुश्मनी नही है...मै वोट उस्कॊ करता हू जो मेरे देश के विकास और हित मे काम करे...मैने भाज्पा को भी वोट किया है मैने बसपा को भी वोट किया है मैने कांग्रेस को भी वोट किया है...
दरसल परेशानी यह है की ये छोटी - छोटी बातों को इतना बढा - चढा कर लिख्ते की बात का मतलब ही बदल जाता है।
और रही बात इस्लाम की बुराई की तो बुराई या कमी वो बर्दाश्त की जाती है जो सच हो, झुठे इल्ज़ाम बर्दाश्त नही लिये जाते।
और आप तो सच भी बर्दाश्त नही कर सकते, अपने वेदॊं को उठा कर देखिये उनमें साफ़ लिखा है की मूर्ति पुजा नही करनी चहिये लेकिन पुरी दुनिया मे हिन्दु मुर्ति पुजा करते है, ऐसा क्यौ है?
मूर्ति पूजा का रहस्य तो अधिकाँश को पता नहीं , बस पूजा करते जा रहे है एक परम्परा की तरह .मूर्ति पूजा के बारे में जानने के लिए तो सनातन धर्म का अध्ययन करना पडेगा वो आप कर नहीं सकते क्योकि एक दो किताब पढ़ लेने सारा ज्ञान नहीं आ जाता
हटाएंदिल से कही है आपने बात, और बहुत जोरदार तरीके से। सांप्रदायिकता का प्रयोग 1947 में ही फेल हो गया था, पर उसके पाठ अभी भी कई लगों ने नहीं समझा है।
जवाब देंहटाएंआपके चार सवालों में मैं एक सवाल और जोड़ूंगा:-
- देशवासी कौन है?
निश्चय ही इस देश में पीढ़ियों से रहते आ रहे सभी लोग भारतवासी हैं, वे चाहे जिस भी कौम, धर्म, जाति, संप्रदाय या राजनीतिक विचार के हों।
तुच्छ लोगों कि बातों का बूरा नहीं मानते भाई. ये अपना काम कर रहे हैं, आप अपना करो.
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखने वाले भी हैं, उन्हे पढ़ें. हासिया, मौहल्ला, कस्बा बहुत सारे हैं....
@ संजय जी, मै किसी की बात का बुरा नही मान रहा हू। जो ये लोग कर रहे है वो मुझे गलत लगा तो मै उसको गलत कह रहा हू, और जो सही है वो लोगो को बता रहा हु। बस इस्से ज़्यादा मैने कुछ नही किया।
जवाब देंहटाएं@ बालसुब्रमण्यम जी, आपकी टिप्प्णी का बहुत - बहुत धन्यवाद। आपने सही सवाल जोडा है मेरे सवालॊं में।
आरिफ़ भाई,
जवाब देंहटाएंमैं ऐसा मानता हूँ कि चीज़ों को देखने का अपना अपना नज़रिया होता है। आपने सुरेश चिपलुनकरजी के ब्लाग का उदाहरण दिया है जिसमें आपको वही कुछ चीज़े नजर आईं जो आपकी नज़र से 'ठीक' नहीं है। मान्य है। मगर आपको उनके ब्लाग में कोई मुद्दे नज़र नहीं आये? कोई तथ्य नज़र नहीं आये? देश पर मंडराते खतरे और उनपर उठाए गये सवाल नज़र नहीं आये? दलों के दलदल से अलग हट कर आपको क्या वहाँ और कुछ भी नज़र नहीं आया? जिसकी की आप तारीफ़ कर सकें? या कोई जवाब सुझा सकें?
अगर आप उनके ब्लाग पर उठाये गये किसी भी एक मुद्दे पर लेख लिखते या कभी आगे लिखें तो बात जरुर काबिले-तारीफ़ होगी।
"अपने वेदॊं को उठा कर देखिये उनमें साफ़ लिखा है की मूर्ति पुजा नही करनी चहिये लेकिन पुरी दुनिया मे हिन्दु मुर्ति पुजा करते है, ऐसा क्यौ है?"
जवाब देंहटाएंयह हिन्दुओं का निहायत ही निजी मामला है अतः इस पर मेरा या किसी का भी सवाल करना मै उचित नहीं मानता | कोई भी व्यक्ति अपने धर्म व महापुरुषों की केसे भी उपासना करे इसकी किसी को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए | रही बात वेदों की ,मैंने तो आज तक वेद पढने तो दूर दर्शन तक नहीं किए | इसलिए वेदों में क्या लिखा है मुझे नहीं मालूम |
भाई आपने बडा मजेदार सवाल ऊठाया है पर आप कहीं ना कहीं चूक रहे हैं. हमको आपने गलत पार्टी मे खडा कर दिया है. हमारे ब्लाग पर हमारी विचार धारा पढे बिना ही आपने हमको सूली का हुक्म चढा दिया. सो सर माथे. चढाओ भाई , हम तो इसीलिये पैदा हुये हैं.
जवाब देंहटाएंआपका भी स्वतंत्र लेखन है और आपकी सोच और विचारधारा का सम्मान करते हुये मैं यह कहना चाहुंगा कि हम एक प्रजातांतरिक व्यवस्था मे रहते हैं जिसमे हमको अपनी राजनैतिक विचारधारा वाली पार्टी को वोट देने से लेकर उसका प्रचार करने तक की छूट है.
मुझे एक बात समझ नही आती कि जो सेक्युलर/नानसेक्युलर का राग अलापते हैं उनकी असलियत क्या है? आप कितना उनको जानते हैं?
और मुर्ति पूजा और वेदों का या किसी भी ऐसी बातों पर बहस करने का यह सही मंच नही है. बेहतर होगा एक स्वस्थ चर्चा ही रहे तो.
मेरी पत्नि एक अलग पार्टी को वोट करती है, पुत्र अलग पार्टी को करता है तो क्या मैं उनको सूली का हुक्म सुनादूं? क्या सिर्फ़ आपको या आपकी विचारधारा वाले लोगों को ही आजादी है? दुसरे लोग गलत हैं? तो लगवा दिजिये उन पर बंदिश. ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी.
भाई आपने तो हुक्म सुना दिया हमे फ़ांसी का और हमने आपके पद चिंहो पर चलकर घरवाली को हुक्म सुना दिया तो शाम को खाना खाने कहां जायेंगे?:)
रामराम
यदि आपने मेरा नाम लेकर मुझे उकसाने की कोशिश की है तो यह असफ़ल हो गई है, क्योंकि मेरा अधिकतर लेखन कांग्रेस के विरोध में है न कि मुस्लिमों के विरोध में… क्योंकि यही पार्टी और इसे चला रहा "परिवार" इस देश की लगभग सभी समस्याओं के लिये जिम्मेदार है। अब यदि आपको कांग्रेस का विरोध करना बुरा लगता है तो मैं कुछ नहीं कर सकता…, यदि बांग्लादेशियों की घुसपैठ की बुराई से आपको बुरा लगे तो भी मैं कुछ नहीं कर सकता, पाकिस्तान जैसे "खुजली वाले कुत्ते देश" के विरोध से आपको बुरा लगे तब भी मैं कुछ नहीं कर सकता, सोनिया की नौटंकी और तुष्टिकरण यदि आपको कोई "मुद्दे ही नहीं" लगते तब भी मैं कुछ नहीं कर सकता… वैसे शेखावत जी की बातों का भी जवाब भी देते जाईये… और बेंगाणी जी की सलाह भी मानिये… काहे मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं… मोहल्ला, कस्बा और हाशिया हैं तो सही पढ़ने के लिये…। मेरा कांग्रेस (और परिवार विशेष की गुलामी का) विरोध जारी रहेगा… आपको बुरा लगे तब भी…। एक बात और "तुच्छ मानसिकता" वाले ब्लॉग में मेरा शुमार करके पता नहीं आप क्या साबित करना चाहते हैं, लेकिन इससे सिद्ध होता है कि आपने मेरे कुछ ही लेख पढ़े हैं, सारे नहीं… साथ ही अन्तिम बात यह कि मैंने कभी Comment Moderation का उपयोग नहीं किया है, मैं इसके सख्त खिलाफ़ हूँ… आपके बारे में पता नहीं, क्योंकि आपके ब्लॉग पर यह मेरी पहली टिप्पणी है शायद।
जवाब देंहटाएंयहां पर एक ही धर्म और एक ही पार्टी है और वो है ब्लागिंग. बेहतर है हम इसी धर्म का पालन करें..
जवाब देंहटाएंआभार.
देशभक्त कौन होता है?
जवाब देंहटाएंसही कहा चाहे वह अफजल और कसाब ही क्यों ना हो। बाटला हाउस में मारे गये इस देश के पैसा में पलने बाले गद्दार ही क्यों ना हो
राष्ट-धर्म क्या होता है?
राष्ट्र-धर्म कहता है हमारा राष्टृ सर्वोपरी है और इस देश के दलाली करने बालों के खिलाफ अवाज उठाओ ना कि नपूसंकता का चादर ओढ कर बैठ जाओ और सुरेश चिपलूनकर जी, त्यागी जी, अरुन उर्फ पन्गेबाज़ जी। संजय बेंगाणी, ताऊ रामपुरिया, दिनेशराय द्विवेदी, अजित वडनेरकर, संजीव कुमार सिन्हा, शिव कुमार मिश्रा, महाशक्ति, ऋषभ कृष्ण, राज भाटिया जैसे ब्लागर भी राष्ट्रभक्त हैं अवाज उठा रहें हैं
साम्प्रदायिक कौन होता है?
साम्प्रदायिक उस शख्स या संस्था को कह्ते है जो सिर्फ एक धर्म या जाति की बात करती है चाहे वो कोई भी हो। (इसे पढ कर तो हँसने का मन कर रहा है)
साम्प्रदायिकता हर एक मनुष्य का गुण होता है जो अपने समान गुण बाले समूह में रहता है उसे एक साम्प्रदाय कहते हैं और अपने साम्प्रदाय की बात करना ही साम्प्रदायिकता है।
सेकुलर कौन होता है?
सेकुलर वही होता है जो किसी और का हिस्सा मार कर किसी और को बाटें और सेकुलर का तारिफ करने बाला वही होता है जो दुसरों के हिस्से के भीख में पले।
धन्यवाद आपके आभारी है हम हरे घडी हर पल , आपने बंदे को किसी जिक्र काबिल तो समझा पर नोट करे
जवाब देंहटाएं१. हम मोडरेशन का प्रयोग नही करते , आप एक बार हमारे ब्लोग पर टिपिया जाये फ़िर आपको कोई मोडरेशन नही मिलेगा . लेकिन हम आप बेनामी भॊ हो तब भी आपको किसी को गरियाने का मौका अपने ब्लोग पर नही देना चाहेगे . हमे गरियायेगे तो भी आप की टिप्पणि प्रकाशित की जायेगी जब तक उसकी भाषा शालीनता की सीमा मे हो
२. भाई हम तो तालीबानी घोषित है यहा सो आप हम से ऐसे सवालो के जवाब की उम्मीद ना करे :)
३. हमारे कुछ पुराने सवाल है जिनका अगर आप जवाब खॊजे तो आपको इन सवालो का जवाब खुद बा खुद मिल जायेगा चाहे तो यहा देख ले http://pangebaj.blogspot.com/2007/04/blog-post_09.html वैसे सवाल मै यही आपको पढवा देता हू
३.भाई मेरा नाम अरूण है उर्फ़ पंगेबाज नही ये पंगेबाज ब्लोग है जिस पर हम कुछ ब्लोगर भाईयो से पंगे लेते रहते है ध्यान दे :)
सवाल : "क्या आप धर्मनिरपेक्ष हैं..?
जरा फ़िर सोचिये और इस देश के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजिये.....
१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ७०% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, ३०% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर ३०% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
१५. क्या आप मानते हैं - संस्कृत सांप्रदायिक और उर्दू धर्मनिरपेक्ष, मन्दिर साम्प्रदायिक और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष, तोगडिया राष्ट्रविरोधी और ईमाम देशभक्त, भाजपा सांप्रदायिक और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष, हिन्दुस्तान कहना सांप्रदायिकता और इटली कहना धर्मनिरपेक्ष ?
१६. अब्दुल रहमान अन्तुले को सिद्धिविनायक मन्दिर का ट्रस्टी बनाया गया था, क्या मुलायम सिंह को हजरत बल दरगाह का ट्रस्टी बनाया जा सकता है ?
१७. एक मुस्लिम राष्ट्रपति, एक सिख प्रधानमन्त्री और एक ईसाई रक्षामन्त्री, क्या किसी और देश में यह सम्भव है, यह सिर्फ़ सम्भव है हिन्दुस्तान में क्योंकि हम हिन्दू हैं और हमें इस बात पर गर्व है, दिक्कत सिर्फ़ तभी होती है जब हिन्दू और हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक कहा जाता है ।
अब ये ना कहना क्या पंगा ले लिया दोस्त :)
पंगेबाज जी ने काफ़ी तार्किक बाते लिखी है, खुले दिमाग से सोंचने की है , शायद आप वो कर नहीं पाएंगे बचपन से भरते आ रहे कूड़ा करकट के कारण
हटाएंभैया जी, फतवागीरी की कक्षाएं ले रहे हो क्या? इस्लाम सम्प्रदाय हिन्दू धर्म के आगे एक बच्चा ही है। बच्चा भी ऐसा जिसके विकास के रास्ते अवरुद्ध हैं।
जवाब देंहटाएंइस्लाम के साथ समस्या यह है कि हर न मानने वाला उसके लिए घृणित है।
"और आप तो सच भी बर्दाश्त नही कर सकते, अपने वेदॊं को उठा कर देखिये उनमें साफ़ लिखा है की मूर्ति पुजा नही करनी चहिये लेकिन पुरी दुनिया मे हिन्दु मुर्ति पुजा करते है, ऐसा क्यौ है?"
ऐसा इसलिए है कि हिन्दू धर्म वेदों का मुहताज नहीं है। वेदों को न मानने वाला क्या एक नास्तिक भी हिन्दू हो सकता है। है यह छूट इस्लाम में कि कुरान या मोहम्मद को न मानने वाला भी मुसलमान माना जाए?
जरा बताएँगें कि किस वेद में लिखा है कि "मूर्ति पुजा नही करनी चहिये"। यजुर्वेद के जिस एक वाक्य को लेकर यह सारा बखेड़ा किया जा रहा है, उसकी पुरानी भाषा के इंटर्प्रिटेशन में बहुत से पंगे हैं।
आजकल तथाकथित वेद पढ़ने वाले सेकुलरी रंगे सियारों की एक फौज इंटर्नेट पर बकवास छौंकती फिर रही है। किसने इन्हें यह अधिकार दिया है?
भाई मेरे इस्लाम में बहुत सुधार की सम्भावनाएं हैं, वहाँ नजर गड़ाइये। हिन्दू धर्म के सुधार की चिंता में दुबले न होएँ। बहुत ही गतिशील धर्म है यह। अपनी देखभाल कर लेगा यह।
हिन्दुस्तान नाम की आड़ लेकर अपनी कुण्ठाओं को न भभकाइये।
एक आखिरी बात मैं सेकुलर नहीं हूँ लेकिन संघी भी नही हूँ। अन्याय, अत्याचार और शोषण का विरोधी हूँ लेकिन कम्युनिस्ट भी नही हूँ। कांग्रेसी, सपा,माया... वगैरह से सम्बन्धित होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। मैं एक मूर्तिपूजक अन्धविश्वासी हिन्दू हूं जिसने सहिष्णुता का ठेका ले रखा है। जो यहाँ बहुसंख्यक है इसलिए आप इस तरह की बकवास किए फिर रहे हैं। जरा पाकिस्तान या सऊदी में ऐसा कर के देखें ! पता चल जाएगा।
आप को मूर्तिपूजा या मूर्तिपूजक पसन्द नहीं आते हैं तो न सही। दूसरों को भी तो नापसन्दगी का अधिकार दीजिए। ये एकतरफा हवाई फायर करके साबित क्या करना चाहते हैं आप ?
हम मूर्तिपूजा करें या हवन करें, होते कौन हो तुम टोका टोकी करने और हाय तौबा करने वाले?
जरा तो शर्म करो यार।
जय हो जय हो,
जवाब देंहटाएंजो भी हो ब्लॉग समाज में इस विषय पर चिंतन हो युद्ध नहीं.
कौन अच्छा कौन बुरा बड़ा अजीब प्रश्न है भैया,
कबीर दास जी कह कर चले गए कि...
बुरा जो देखन मैं चला ...........मुझ से बुरा ना कोई.
आत्म मंथन जरुरी.
जय हो जय हो
murti-puja kayon, sri sri ravishankar ji ne ye kaha hai. (from some fwd message)
जवाब देंहटाएंSri Sri ravishankar
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Hindus honour God's creation as God. Just like sound (Koran), the crescent moon, Kaaba and the month of Ramadan are sacred for you, Hindus consider the River Ganges, the Himalayas, Saints as sacred. See, a picture of your daughter is not your daughter, but you still adore the daughter's picture. When you see the picture aren't you reminded of your daughter? So also, a symbol is not God but is honoured as God. This sense of honouring and sacredness makes you awake and alive. That is why the ancient Rishis said to feel the entire creation and your whole life as sacred. They considered God as omnipresent, as inseparable from His creation; like the dance and the dancer. Spirit loves diversity. Is there only one type of vegetable or fruit? God created many type of fruits and vegetables. There is not just one type of tree, not just one type of snake, cloud, mosquito . . Even
you change your dress for different occasions. So how could this consciousness that manifested this whole creation be monotonous? There is only one God in many forms. Only one God is advocated. When you accept the variety of Divinity, you cease to be a fanatic and fundamentalist.
जवाब मिल गए हैं आपको, अब अपना सुधार अभियान मुसलमानों में चलाइये, क्या है की बहुत कमी है वहां पर. धर्मांधता और असहिष्णुता जैसी कई बीमारियाँ इसलाम को घेरे हैं . औरों पर कीचड उछाल कर क्या मिलेगा? पहले खुद को देख लेते! पाकिस्तान या खाड़ी में सुधारवाद या शरिया के विरुद्ध बात भी करने का दुस्साहस करके कोई दिखा दे, और जिंदा बच जाए तो मानें. भारत में हिन्दुओं को गरियाना आसान है.
जवाब देंहटाएंसुधारकों की हिन्दुओं के अन्दर ही बड़ी फौज है, आप तो मुस्लिमों की फ़िक्र करो.
आप ने जिन चिट्ठाकारों की आलोचना की है उन में से सुरेश चिप्लूनकर के चिट्ठे पर मैं अकसर टिप्पणी करता हूँ. उनको प्रोत्साहित करता हूँ. कारण यह है कि सतह से नीचे जाकर उनके आलेखों के असली मकसद को मैं ने पहचाना है.
जवाब देंहटाएंमेरा सुझाव है कि इस तरह के व्यक्तिगत आरोप लगाने के बदले सुरेश जो लिखते हैं उन विषयों पर उनके चिट्ठे पर या आपके चिट्ठे पर टिप्पणी करके मुद्दे पर बात की जाये एवं यदि उन्होंने गलत कहा है तो क्या गलती है यह बताया जाये.
इस बीच पंगेबाज ने ऊपर दी गई टिप्पणी में 17 के करीब बातें आप से पूछी हैं. यदि आप के पास समय हो, और यदि संतोषजनक उत्तर हों, तो दोचार आलेख लिख कर उनका जवाब देने के की कोशिश करें.
व्यक्ति का नाम लेकर बुराई करना, दोषारोपण करना, आसान है. लेकिन पंगेबाज ने जिस तरह के मुद्दे उठायें हैं उनका जवाब (वैचारिक एवं तथ्यात्मक स्तर पर) देना आसान नहीं है. अत: जरा उस दिशा में कलम चला कर देखें.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
आपकी नीयत पर मुझे जरा भी शक नहीं है परन्तु आपने ऐसे लोगों को इस बात में लपेटा है कि दुख तो है ही आपत्ति भी।
जवाब देंहटाएंआप बहुत से स्वस्थ व संयत मानसिकता वाले व्यक्तियों पर उँगली उठा रहे हैं। जिनके नाम टिप्पणीकारों में आपने गिनवाए उनमें से बहुत से लोगों के ब्लॉग मैं पढ़ती आ रही हूँ क्या कारण है कि मुझे वे साम्प्रदायिक नहीं लगे और आपको लगे? क्या कारण है कि आपको फिरदौस साम्प्रदायिक नहीं लगीं मुझे लगीं।
इनके बारे में जानिएः
समर्पित
मेरे अल्फाज़ मेरे जज़्बात और मेरे ख्यालात की तर्जुमानी करते हैं...क्योंकि मेरे लफ्ज़ ही मेरी पहचान हैं...फ़िरदौस ख़ान
इश्क़ का दरिया अज़ल से अबद तक गुज़रा, मगर ऐसा कोई न मिला जो उसका एक घूंट भी पीता. आख़िर इश्क़ विसाले-हक़ हुआ.......हज़रत राबिया बसरी
इमाम हुसैन को समर्पित
शाह अस्त हुसैन...बादशाह अस्त हुसैन...दीन अस्त हुसैन...दीने-पनाह हुसैन...सरदाद न दाद दस्त...दर दस्ते-यज़ीद...हक़्क़ा के बिना... लाइलाह अस्त हुसैन.......ख़्वाजा साहब
युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार. उर्दू, हिन्दी और पंजाबी में लेखन. हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, इंग्लिश और अरबी भाषा का ज्ञान. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई वर्षों तक सेवाएं दीं. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया. बतौर शायरा मुशायरों में शिरकत. इसके अलावा देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन. कई सालों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी. फ़िलहाल नई दिल्ली से हिन्दी-उर्दू में शाया (प्रकाशित) होने वाले माहनामे (मासिक पत्रिका) की संपादक. कुरान शरीफ़ की रौशनी और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम की हदीसों पर अमल करने का अज़्म (प्रतिज्ञा) करते हुए इस्लाम की तालीम को उसके हक़ीक़ी (वास्तविक) रूप में अवाम तक पहुंचाने की मुसलसल कोशिश... मेरी ज़िन्दगी का मक़सद... तेरे दीन की सरफ़राज़ी... मैं इसलिए मुसलमां... मैं इसलिए नमाज़ी...
यदि सुरेश जी अपना ऐसा कुछ परिचय देते तो चबा लिए गए होते। वैसे भी उनके ढेरों लेखों में से कुछ को हम चुनकर उन्हें साम्प्रदायिक का तमगा लगा देते हैं। सच यह है कि 'गर्व से कहो मैं हिन्दु हूँ' कहना साम्प्रदायिक होता है ' लज्जित होकर कहो मैं हिन्दु हूँ ' धर्म निर्पेक्ष ! जब कोई युवा नेता लोकसभा में अपना परिचय अपने देश व धर्म के साथ देता है तो वाह वाह की गूँज उठती है।
फिरदौस जी के
>जिस लेख
की बात मैं कर रही हूँ उसमें ये कुछ हिन्दु आतंकवादियों के पकड़े जाने पर झूम उठी थीं। जिनकी बात आप कर रहे हैं उनमें से कोई भी फिरदौस जी के धर्म वालों के पकड़े जाने पर शायद ही इतना खुश हुआ होगा। यह लेख अब मुझे ढूँढने पर भी नहीं मिल रहा। उसके आगे पीछे वाले लेख हैं। उन्होंने मेरी टिप्पणी, जहाँ तक मैं जानती हूँ, नहीं छापी थी। वह मेरे
>इस लेख
में दी गई है।
contd
घुघूती बासूती
भाई आरिफ़,
जवाब देंहटाएंहम सब तो बस बैठे ठाले लिख रहे हैं, वे तो एक उद्देश्य से लिख रही हैं और वे पत्रकार हैं, सो क्या कर रही हैं भली भाँति जानती हैं।
सच बात तो यह है कि हिन्दु वह है जो सिन्धु नदी के इस पार पैदा हुआ। जिन वेदों से आप हिन्दुओं को सीख दे रहे हैं उनमें इस शब्द का कहीं जिक्र ही नहीं है। वैसे वे मैंने भी नहीं पढ़े, आपने पढ़े हैं सो आप अधिक जानते होंगे। इस भारतीय धर्म को जिस भी नाम से आप बुला लें, इस धर्म की विशेषता ही यह है कि आप अपना मार्ग स्वयं चुन सकते हैं सो वे कुछ भी कर लें उसी धर्म के रहेंगे। शायद धर्म परिवर्तन के बाद भी। मुझ जैसी नास्तिक भी यहाँ स्वीकार्य है और यही कारण है कि मैं इस धर्म की लाख बुराइयों के बाद भी कहूँगी कि यह उन धर्मों से लाख दर्जे बेहतर है जो आपको अपने मन से जीने नहीं देते। मैं इस धर्म की कितनी भी बुराई करूँ कोई मुझे मारने नहीं चला आता कोई मेरे सिर पर पुरुस्कार नहीं घोषित करता।
जिस देश की नकल में न जाने कितने भारतीय लगे हैं, जिस देश की तरफ मुँह करके अपनी पूजा करते हैं वहाँ मुझे अपनी गीता या भगवान को ले जाने की अनुमति नहीं थी, अपने त्यौहार मनाने की भी नहीं। भारतीयों को यदि यह उपदेश दिया जाए कि उस देश को अपना व आदर्श न मानकर इस देश को मानें तो अधिक सही होगा। वैसे हमारे इस धर्मनिर्पेक्ष देश में जिसका मन जैसा चाहे वैसा कर सकता है, जब तक कि वह किसी और को कष्ट न दे रहा हो और यही इसकी महानता है।
भारत आपका भी है और मेरा भी और हम सबका भी। सारा संसार भी हम सबका है। एक भाव से सबमें बुराई देखते हैं और भलाई हो तो वह भी। आशा है आपने जिस उद्देश्य से इस ब्लॉग को बनाया वह सफल होगा और सारी कटुता इसी पोस्ट व इसमें आई टिप्पणियों के साथ समाप्त हो जाएगी।
वैसे मेरी आपसे प्रार्थना है कि कृपया मेरा नाम भी इस सूची में जोड़ लीजिए। क्योंकि इनमें से कुछ टिप्पणीकार मेरे लिए इतने आदरणीय हैं कि मैं उनकी ही पंक्ति में खड़ी दिखना चाहूँगी।
घुघूती बासूती
sriman arif,
जवाब देंहटाएंR.S.S tankhaiya blooggero ko aap ne unke manmafik vishay par likhkar unko bhaukne ka mauka de diya . sri dinesh ray diwedi k blog ko maine kafi dhyaan se dekha hai kafi acche va suljhe hue vyakti hai aur kuch logo k blog maine dekhe nahi hai isliye comment karna uchit nahi hai .baki R.S.S tankhaiya hai 1925 se chilla rahe hai ateet ki baato ko lekar naye hindustaan ko aur adhik naya banana hai to iske svaroop ko bahujatiy,bahudharmiy ,bahubhashiy ,svikaar karna hoga is samay american samrajyvaad aur uske paltu dogs is desh ko kamjor karna chahte hai jinka na sambandh is desh k vikas s hai aur na hi kisi dharm se hai naagpur mukhyalay jo kahega vahi chillayenge isiliye aavashyak yah hai unke priy vishyo ko jiske upar vo 24 ghante rati ratayi bhasha mein uvatch karna chahte hai mauka nahi dena chahiye .
suman
loksangharsha.blogspot.com
भाई, आपने लिखा है कि पाठकों की टिप्पणी से आपका उत्साह बढ़ता है.
जवाब देंहटाएंतो यह रही मेरी टिप्पणी.
सुन्दर रचना. बधाई.
घुघूती जी से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंसलाम , नमस्कार, भाई मेने तो आज आप का यह लेख पढा, मुझे नही मालुम आप की उम्र कया है, ओर ना ही जानना चाहता हुं, लेकिन आप ने इन सब ( जिन के नाम लिखे है ) टिपण्णियां ध्यान से नही पढी, वरना यह सब ना लिखते.
जवाब देंहटाएंआप ने कहा है कि हम मुसलिम के बिरुध टिपण्णियां देते है, भाई मै अपनी टिपण्णियो मै अकसर कहता हुं कि पाकिस्तानी मेरे दोस्त है, तो वो कोन हुये जाहिर है मुसलमान, चलिये एक बात आप मुझे बताये आप ने कभी आरती की है ? जब मेरे पाकिस्तानी दोस्त की मोत हुयी तो मेने उस की रुह को शान्ति मिले उस के लिये नामज अदा की है, ओर यह मै सब लोगो के सामने कहते डरता नही , इस से मेरा धर्म खराब नही हुआ, यह बात मै किसी एक टिपण्णी मओ आज से काफ़ी पहले कह चुका हुं.
दुसरा मेरे एक दोस्त है पुना से जो मुस्लिम है उन्होने हमारे साथ मंदिर बनबाने मै मदद की, फ़िर मै केसे मुस्लिम को बुरा कहुगां, लेकिन जो गलत काम करते है, वो जिस भी धर्म के होगे उन् लोगो को ( जो गलत काम कर रहे है) उन्हे आप क्या अच्छा कहेगे?
जनाब पहले ध्यान से सभी टिपण्णियां पढे, फ़िर तोहमत लगाये,
बाकी मै किसी भी पार्टी को अच्छा नही समझता, यह आप ने कभी नही पढा, मै तो सभी नेताओ को गलत कहता हुं, मेरी किसी भी एक टिपण्णी मै दिखा दो किसी नेता को अच्छा कहा हो,
चलिये आप ने अपने दिल की बात कह दी,
जनाब आरिफ साहेब
जवाब देंहटाएंवैसे आम तौर पर मैं इस तरह की बातों और बहसों का हिस्सा नहीं बनता और न ही मुझे पसंद है.
बस, आज आपका नज़रिया देखकर सोचा कि बताता चलूँ कि आप बेवजह परेशान हो रहे हैं.
सुरेश चिपलुंकर जी हों या संजय बैंगाणी या अरुण पंगेबाज-कोई भी तो डंडा लिए नहीं खड़ा है कि हमें पढ़ना ही पड़ेगा. जँचे तो पढ़ो वरना और भी ढ़ेरों ब्लॉग हैं, उन्हें पढ़ों.
ब्लॉगजगत इतना बढ़ चुका है कि अब आपको चुनना होता है कि आप क्या पढ़ना चाहते हैं. आप अपनी इच्छा से यह चयन करते हैं. जब चयन आपका है तो यह चयन भी आपका ही हुआ कि किसी के लेखन को अपने उपर कितना असर करने दें. कौन फूट डाल सकता है इस तरह.
और अगर लेखन से सारा कुछ असर होता है तो अगर आपको ऐसा लगता है कि ये तोड़ने की बात करते हैं तो आप ज्यादा ताकतवर तरीके से जोड़ने की बात करिये.
किसी भी लकीर को छोटा कहने के लिए उसे काटना जरुरी तो नहीं(जैसा आप कह रहे है कि बस बहुत हुआ अब महरबानी करके ये सब बन्द कर दें)-आप उससे बड़ी लकीर बन जायें.
विश्वास जानिये कि आप अच्छा और सार्थक लिखेंगे तो भी ये सारे चिट्ठाकार और टिप्पणी करने वाले, जिनके आपने नाम लिए हैं, वहाँ भी आते रहेंगे.
उदाहरण देना चाहूँगा कि विचारधारा के तल पर मैं सुरेश जी के ब्लॉग पर शायद ही कभी टिप्पणी कर पाया किन्तु वो फिर भी मेरे ब्लॉग पर आते हैं, टिप्पणी भी करते हैं और हमारे बीच मैत्रीपूर्ण संपर्क हैं. संजय बैंगाणी, अरुण अरोरा आदि तो परिवार के सदस्य हैं किन्तु यह कतई जरुरी नहीं कि मैं उनकी हर बातों से सहमत रहूँ और रहता भी नहीं-फिर भी उनका असीम स्नेह मेरे साथ है और सब एक बेहतरीन इन्सान हैं.
सेक्यूलर, हिन्दु, मुसलमान आदि आदि से बहुत उपर इन्सानियत होती है और इन्हें एक बेहतरीन इन्सान के रुप में मैने जाना है और मुझे अपनी परख पर हमेशा भरोसा रहा है. इतनी उम्र बीत जाने तक तो धोखा नहीं ही हुआ है.
थोड़ा उपर उठिये. अपना लिखिये. अपनी पसंद का पढ़िये. नापसंद को भी पढ़े और आवश्यक नहीं कि प्रतिक्रिया करें ही बल्कि अगर आपको लगता है कि कोई बात नाकारात्मक है तो उसे उससे बेहतर तरीके से सकारात्मकता के साथ प्रस्तुत करें अपने नजरिये से. कोई आवश्यकता नहीं कहने की कि वो गलत है..आप तो बस क्या सही लगता है आपको वो लिखिये. पाठक समझदार होता है, खुद निर्णय ले लेगा.
बस, इतना ही.
ढ़ेरों शुभकामनाऐं आपके सफल लेखन के लिए.
आशा है मेरी बातें अन्यथा न लेंगे.
अफ़सोस है कि मैं यहाँ देर से आया।
जवाब देंहटाएंअफ़सोस है कि आपने ऐसा बेतुका फ़रमाया।
अफ़सोस है कि ब्लॉगजगत के स्तम्भों को ‘कम्युनल’ बताया।
अफ़सोस है कि आपकी बुद्धि को ऐसा ऊल-जुलूल समझ में आया।
लेकिन खुशी है कि सबने शान्त मन से आपकी सिरफ़िरी बात को शालीनता से सुलझाया।
मुझे जो कहना था उसे आदरणीया घुघूती जी ने अधिक अच्छे ढंग से कह दिया है। अस्तु!
भाई अब अपने कहने के लिए तो कुछ बचा नहीं, सबने बहुत ही शांत चित्त और तथ्यों के साथ आपके सामने यथास्थिति का वर्णन कर दिया। शायद आपको सब कुछ समझ आ गया होगा अगर आप कम्यूनिष्ट ( कम्यूनिष्ट - भारत और हिंदु धर्म के प्रति कम निष्ठावान) न होंगंे तो और हाँ अगर फुरसत मिले तो श्रीमान अरूण जी के प्रष्नों के संबंध में भी कुछ लिखिए पर एक बार में एक ही प्रष्न को उठाईयेगा इस क्रम में सारे प्रष्नों का उत्तर लिख दीजिए बस। हम सत्य से आँख मिचने की कोषिस करते हेैं। आँख खोलकर समाज का चिंतन करना ही बेहतर होगा। कभी मेरे ब्लोग पर भी पधारिये, हांलाकि मैं एक खास विचारधारा से बहुत हद तक प्रभावित हूँ पर आपको मेरे ब्लोग पर ऐसे कुछ नहीं मिलेगा जिससे नाहक ही आपका दिल दुखे। जबकि मेरे ब्लोग का नाम ही दिल दुखता है। आपका स्वागत है यूँ ही लिखते रहिये लेकिन भावनाओं में बहकर मत लिखिए समाज को देखिए और जी खोल कर लिखिए।
जवाब देंहटाएंझगडा करने वाली कोई बात नही है...काशिफ़ जी ने जो कहा है उसका सही मतलब समझने की कोशिश कीजिये
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ काशिफ
जवाब देंहटाएंसबसे पहले मैं सभी दोस्तों को ये बता दूँ की ये कमेन्ट लम्बी जाने वाली है इसलिए जो लोग एक पृष्ठ पर आराम से पढना चाहते हैं वो सीधे इस लिंक पर चले जाएँ, उस पृष्ठ पर पूरा का पूरा मैटर इसी रूप में लिखा हुआ मिलेगा बिना किसी परिवर्तन के, जिसे मैं आगे कई कमेन्ट और टुकडों के रूप में लिखने जा रहा हूँ |
http://yssbrainrelease.blogspot.com/2009/09/blog-post_23.html
काशिफ साहब, वैसे तो ज्यादातर बातें ऊपर के कमेन्ट में लिखी जा चुकी हैं | लेकिन जिस विषय पर कोई संतुष्टि वाला कमेन्ट मुझे नहीं लगा वो है मूर्ति पूजा |
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काशिफ साहब मैंने आपकी जगह-जगह टिप्पणियों को पढ़ा है और इसलिए आज उकता कर ये आगे एक लम्बी कमेन्ट लिखने जा रहा हूँ, मुझे आपसे पूरी आशा है कि आप इसे एक रेवेंज़ के नज़रिए से नहीं शुद्ध विचारों कि तरह देखेंगे | ये उन लाइनों के जवाब में है जिनमे आप यदा कदा हिन्दुओं के किसी एक पक्ष को उभारकर और दुसरे पक्ष को भूलकर हिन्दुओं के खिलाफ तर्कों को मज़बूत करने कि कोशिश करते हैं | और दुसरे कुछेक भाइयों के लिए भी मेरा ये कमेन्ट महत्वपूर्ण है कि वो हमेशा धर्मों को लेकर तर्कों में उलझकर कुत्तों कि तरह लडाई को छोड़ते हुए देश कि वर्तमान समस्याओं कि तरफ ज्यादा ध्यान देंगे तो अच्छा है |
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यदि आप वेद के केवल एक वाक्य को पढ़कर आयें हैं तो फिर इस कमेन्ट को आगे पढने की तकलीफ मत उठायिएगा | आगे बढ़ गए तो ठीक है | मैं विश्व के सभी धर्मों को मूल रूप से पूरब और पश्चिम, इन दो वर्गों में देखता हूँ, मजे कि बात ये है कि अरब यानि कि मध्य पूर्व, न पश्चिम में है और न पूर्व में मतलब मध्य में है और इसमें पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ के गुण हैं, फिर भी मुख्य रूप से मैं इसे पश्चिमी वर्ग मैं ही रखूँगा क्योंकि इस पर पश्चिमी (इसाई और यहूदी ) प्रभाव ही ज्यादा है | इसके अलावा मैं दूसरे तरीके से इसे ऐसे भी कहूँगा कि पश्चिम कि सभ्यता पौरुषिक (मर्दाना) है और पूर्व कि सभ्यता स्त्रीयोचित भाव (जानना मिजाज़) वाली है | जिस तरह पुरुष कठोर होता है और अपनी अति एवं प्रभाव को प्रर्दशित करना और बढाना चाहता है और स्त्री कोमल एवं दूसरो के प्रति सद्भाव वाली होती है वैसे ही पश्चिम के धर्म अपनी प्रधानता ही बनाये रखने कि कोशिश करते हैं और पूर्व के धर्म उसका ज्यादा प्रतिकार नहीं करते |........contd......
....contd....
जवाब देंहटाएंयदि आप वेद के केवल एक वाक्य को पढ़कर आयें हैं तो फिर इस कमेन्ट को आगे पढने की तकलीफ मत उठायिएगा | आगे बढ़ गए तो ठीक है | मैं विश्व के सभी धर्मों को मूल रूप से पूरब और पश्चिम, इन दो वर्गों में देखता हूँ, मजे कि बात ये है कि अरब यानि कि मध्य पूर्व, न पश्चिम में है और न पूर्व में मतलब मध्य में है और इसमें पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ के गुण हैं, फिर भी मुख्य रूप से मैं इसे पश्चिमी वर्ग मैं ही रखूँगा क्योंकि इस पर पश्चिमी (इसाई और यहूदी ) प्रभाव ही ज्यादा है | इसके अलावा मैं दूसरे तरीके से इसे ऐसे भी कहूँगा कि पश्चिम कि सभ्यता पौरुषिक (मर्दाना) है और पूर्व कि सभ्यता स्त्रीयोचित भाव (जानना मिजाज़) वाली है | जिस तरह पुरुष कठोर होता है और अपनी अति एवं प्रभाव को प्रर्दशित करना और बढाना चाहता है और स्त्री कोमल एवं दूसरो के प्रति सद्भाव वाली होती है वैसे ही पश्चिम के धर्म अपनी प्रधानता ही बनाये रखने कि कोशिश करते हैं और पूर्व के धर्म उसका ज्यादा प्रतिकार नहीं करते |
ठीक है | अब मैं आपको बता दूँ की हिन्दू धर्म वैसा धर्म नहीं है जैसा धर्म पश्चिम या अरब देशों में हैं, और हिन्दू ही नहीं पूर्व (मसलन चीन, जापान, सिंगापूर, बर्मा, थाईलैंड आदि आदि ) के लगभग सभी धर्म पश्चिम और अरब के धर्मों से भिन्न प्रकार के हैं | इसलिए हिन्दू धर्म, पश्चिम या अरब की भाषा में कहूँ तो धर्म ही नहीं है एक सभ्यता या विचारधारा का नाम है और यदि धर्म कहना ही है तो फिर "धर्म" शब्द को हमें थोडा व्यापक करना होगा | शब्दों के गलत अर्थ न लिए जाएँ इस कारण में यहाँ "हिन्दू धर्म" ही लिख रहा हूँ अन्यथा मैं "हिन्दू" शब्द के प्रयोग से बचने की कोशिश करता हूँ और यहाँ आप हिन्दू धर्म के वर्तमान स्वरुप (जिसमे कि गन्दी राजनीती और सत्ता, मूर्ख नेता व गुंडे, चालाक पुरोहित-पण्डे, तथाकथित साधू-महात्मा भी हैं ) की और मत देखिएगा क्योंकि अब उसमे भी कई कमियां समावेशित हो गयी हैं, वर्तमान में बहुत से हिन्दुओं को भी अपने धर्म की बातों का ठीक-ठीक ख्याल नहीं है ख़ास कर अंग्रेजी राज़ के 200 वर्षों के बाद एक विशेष खाई बन गयी है पिछली और अब की सभ्यता के बीच में | अब तो कुल मिलकर 200 साल पुरानी सभ्यता है हमारी, अब तो जो ये कहेगा कि हजारों साल वाली सभ्यता है, तो खुद ही फंस जायेगा यदि इतिहास के बारे में किसी ने कुछ पेचीदा सवाल कर लिया तो | 3-4 पीढियों तक अगर गलत इतिहास दिमाग में बैठा दिया जाये तो अगली पीढियां उसी पर विश्वास करती हैं जो सामने होता है | और अगर दूसरे तरीके में कहूँ तो वर्तमान समय में पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही धर्म है और एक ही सभ्यता है और वो है पश्चिम का धर्म और पश्चिम कि सभ्यता (मतलब ईसाईयों के रिवाज़ और तौर तरीके जिसमे अरब के धर्म सम्मिलित नहीं है, सिर्फ और सिर्फ ईसाईयों कि सभ्यता) !! अगर यहाँ तक की सभी बातें समझ में आ गयी हो तो आगे बढ़ते हैं |
जो वर्तमान समय में हिन्दू सभ्यता चल रही है वह अनुमानतः कोई 20,000 वर्षों से चली आ रही है और इस सभ्यता ने इतने हजारों वर्षों में चेतना (अध्यात्म) सम्बन्धी कई शोध किये हैं | यदि आप ये मानते हैं की पश्चिम ने 500 वर्षों में पदार्थ विज्ञान के शोध के परिणाम स्वरुप जगत को अद्भूत दुनिया में बदल दिया है तो सच मानिये की 20,000 वर्ष का लगातार शोध मायने रखता है पदार्थ के काउंटर पार्ट चेतना के लिए | ऐसा नहीं है की सिर्फ चेतना पर ही शोध हुआ पदार्थ पर भी हुआ होगा और उसकी परिणिति में कई उतार चढाव आये लेकिन ज्यादा समय चेतना के अनुसंधान पर निकला है | मतलब यूँ मानिये कि इस सभ्यता ने भी विनाश और सृजन के पल देखे हैं कई बार पूरी तरह नष्ट होती-होती बची है, बस इस सभ्यता और दुनिया कि बाकि सभ्यताओं में फर्क इतना ही रहा कि इसने अपने को अनवरत जारी रखने के लिए मैनेज कर लिया और दुनिया कि दूसरी सभ्यताएं पूरी तरह ही नष्ट हो गयीं (मसलन मिश्र कि सभ्यता ), इस तरह इसका प्रभाव विश्व में समय-समय पर ज्यादा ही रहा | मजे कि बात है कि भारतीयों में अब भी एडजस्ट होने वाला गुण बड़ा जबरदस्त है, भारतीय नष्ट नहीं होंगे लचीले स्वभाव के कारण अपने अस्तित्व को मेनेज कर लेते हैं, कहीं भी कभी भी | प्रायः आपने देखा होगा कि स्त्री विधवाएं ज्यादा मिलेंगी बनिस्पत पुरुष विधवा के क्योंकि पुरुष अपने कठोर स्वभाव के कारण जल्दी कमजोर होकर मर जाता है लेकिन स्त्रियाँ सामान्यतः लम्बी आयु वाली होती हैं |....contd...
...contd...
जवाब देंहटाएंतो अब असली पर बात बढ़ता हूँ | भारत में वेद से लेकर उपनिषद, उपनिषद से लेकर अन्य ग्रथों अरण्यक, ब्राहमण गीता इत्यादि बने, और बाद में कई अन्य छोटे-छोटे निज विचारधारा के धर्म जैसे बौद्ध, जैन, सिख फिर उनमे भी कई सप्रदाय, पंथ बन चुके हैं | ऐसा इसीलिए हुआ है क्योंकि यहाँ हर व्यक्ति ने अपनी मौलिक विचारधारा को महत्व दिया और समाज ने भी उसे ऐसा करने पर रोका नहीं, पूर्व के धर्मों ने किसी भी समुदाय पर अपने विचार कभी भी थोपे नहीं हैं | न तो दूसरो के विचारों को दबाया गया है और ना ही ऐसी सोच रही कि सिर्फ हमारा धर्म ही रहेगा और किसी का नहीं और जब तक दुसरे लोग हमारे वाले को न अपना लें तब तक उनका कल्याण नहीं हो सकता (इसाई मानसिकता) और अगर ना माने तो काफिर है, काफिर को मारना सबाब का काम है (इस्लामी मानसिकता), हम बुतपरस्ती नहीं करते तो तुम्हे भी नहीं करने देंगे, सत्ता आने पर बामयान की मूर्तियों को तोड़ देंगे | क्योंकि ये सब बातें बचकानी होती हैं और बूढी सभ्यताएं अपनी समझदारी के कारण उन्हें नज़रंदाज़ करती हैं कि कभी बड़े होंगे तो समझ जायेंगे |
ये यूँ ही अकारण नहीं है कि भारत ही विश्व में सबसे अधिक विविधताओं वाला देश है, यदि यहाँ भी पश्चिमी मानसिकता होती तो, आज जिस तरह कोई भी फिस्सडी छिट-पुट आदमी अपने धर्म या समुदाय को लेकर आये दिन आन्दोलन करने उतर जाता है, ऐसा नहीं होता | भारत ने यूरोप की बर्बर जातियों की तरह दूसरे महाद्वीपों पर जाकर वहां के मूल निवासियों को तबाह नहीं किया है | आपको नहीं पता है तो बता देता हूँ की ईसाईयों ने अमेरिका की खोज के बाद वहां के मूल नागरिकों को जिन्हें रेड इंडियन कहा गया है हजारों की तादाद में मौत के घात उतार दिया, ये जिन्हें आज अश्वेत कहते हैं, ये आज का अमेरिका उन मूल अमरीकीओं की लाशों के ढेर पर खडा हुआ है, और जिनकी संख्या अब अमेरिका में गोरों की तुलना में इतनी कम हो चुकी है की वहां इनको अल्पसंख्यक की लिहाज़ से आरक्षण दिया गया है | कितनी हास्यास्पद बात लगती है ये कभी उस महाद्वीप के मूल निवासी कहलाने वाले लोग आज अल्पसंख्यक कहलाते हैं, नयी पीढियों के ज्यादातर लोग तो उन गोरों को ही , जो सिर्फ 300 साल पहले ही गए हैं वहां पर, वहां का मूल निवासी समझते होंगे | भारत की धरती पर कभी हौलोकास्ट नहीं हुआ, जिसमे तालिबानी कट्टर सोच वाले जर्मनी ने लाखों यहूदियों को इस तरह मारा जैसे कोई गाजर-मूली काटकर उसका ढेर लगा देता हो |
एक बार विकिपीडिया के इस लिंक पर विजिट करके वहां लगी तस्वीरों को देख लीजिये तो पता चले की ऐसे भयावह जीवित और मृत इन्साओं को अगर असल में आमने-सामने देख ले तो दो सेकेण्ड में किसी का भी पाँव भारी हो सकता है |
http://en.wikipedia.org/wiki/The_Holocaust
यदि इस तरह की सोच भारत में भी शुरू से रही होती तो आज मुसलमानों या ईसाईयों या बहार के दूसरे धर्मों के लोग बैठकर यहाँ ब्लॉग नहीं लिख रहे होते | अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढोल तक पीटने का मौका नहीं मिलता | क्या आप मान सकते है जितना खुला माहौल सब धर्मों के लोगों को भारत में मिलता है उतना क्या पकिस्तान में मिलता है, देख लीजिये तो पता चले की आये दिन कभी जजिया तो कभी जबरन धर्म परिवर्तन, हिन्दू होने के कारण ठीक से समाज में शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते, इज्ज़त से कमा नहीं सकते जी नहीं सकते | क्या भारत में किसी मुसलमान पर उसके दूसरे धर्म का होने के कारण ऐसा अतिरिक्त कर लगाया जो जजिया की बराबरी करता हो, उल्टे सब्सिडी मिलती है | जब एम. ऍफ़. हुसैन हिन्दू देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाते हैं तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दी जाती है, उधर दूर देश में हज़रत साहब का कार्टून क्या बना हिन्दुस्तान के मुसलमान रेली निकाल रहे हैं, विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं | ये रेली वाले हुसैन की पेंटिंग वाले दिन कहाँ गए थे, और वो हुसैन अगर कभी अपने धर्म या परिवार वालों की कोई आपतिजनक तस्वीर बना देगा तब में उसे सच्चा कलाकार कहूँगा | क्या आप मान सकते हैं जो काम हुसैन ने भारत में कर दिया वो काम पकिस्तान में कोई हिन्दू मुस्लिम धर्म के खिलाफ कर सकता है, मैं नहीं मान सकता | ठीक है खैर आगे बढ़ते हैं |........contd......
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जवाब देंहटाएंसबके अपने-अपने तरीके थे और उनको बिना किसी रूकावट के उन तरीकों पर काम करने दिया गया | ये लोग किसी एक ग्रन्थ के बनाये कायदों पर नहीं चलते जो अपने से सही लगता है उस पर चलते हैं | किसी को काम करना हो या कोई निर्णय लेना हो तो हर बार बाइबिल या कुरान कि तरह गीता खोलकर नहीं बैठ जाता है कि वहां क्या लिखा है अमुक काम के लिए | जैसे सारे दिन किसी गोरे और जाकिर नायक के बीच कुरान और बाइबिल को लेकर श्रेष्ठता सिद्ध करने वाली डिबेट नहीं चलती, जिसमे अच्छे वकील की तरह, सही या गलत से कोसों दूर अच्छे तर्क-कुतर्क पेश करने वाला जीत जाता है, अरे भाई जो गुलाब होता है उसको डिबेट नहीं करनी पड़ती ये सिद्ध करने के लिए को वो गुलाब है | कुछ लोगों को अजीब लगेगा की मैं भी यहाँ यही काम तो कर रहा हूँ, चलिए इसका जवाब मैं फिर कभी दूंगा, यदि किसी भाई को जवाब की जल्दी है तो मैं अंत में अपना इ-मेल पता दूंगा सो इ-मेल कर देना |
कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है कि आपको सन्डे या फ्रायडे को ही होली डे या जुम्मा करना है | चर्च या मस्जिद में किसी ख़ास दिन जाना या पांच बार नमाज़ पढने को ही सच्चे धर्मावलम्बी होने का प्रमाण नहीं माना जाता, यहाँ मंदिर न जाने वाले को नास्तिक नहीं समझा जाता है | व्रत रखना कोई जबरदस्ती नहीं है, लेकिन मैंने अपनी निजी जिंदगी में ऐसे अनुभव देखें हैं जिनमे छोटे बच्चे तक रोजे रखवाए गए और उसकी हालत काफी खराब हो जाने पर भी रोजे को जारी रखवाया गया | वैसे इसके लिए मैं कहूँगा ज्यादातर गंवार लोग ही ऐसा करते हैं, पढ़ा लिखा या समझदार मुसलमान शायद अपने बच्चे को रोजे के लिए मजबूर नहीं करता | परन्तु मैं एक सामुदायिक विचारधारा की बात कर रहा हूँ की कौन कितना ज्यादा कट्टर है | मैं मानता हूँ की कुछ कमियां यहाँ पर भी हैं, आप R.S.S या शिव सेना या बजरंग दल को कट्टर कह तो दीजिये लेकिन क्या उनको आप तालिबान, जैश-ऐ-मोहम्मद या हुजी या अल-कायदा जितना भयानक मान सकते हैं, मैं तो बिलकुल भी नहीं मान सकता | यदि वे वाकई इतने भयानक होते तो आज राजस्थान के बॉर्डर पर जितने हिन्दू शरणार्थी भारत में हर हफ्ते आ रहे हैं, उतने ही मुस्लिम पकिस्तान जा रहे होते |
अब आता हूँ मूर्ति पूजा पर, तो हिन्दुओं में मूर्ति पूजा के विधान भी हैं और बिना मूर्ति पूजा के भी विधान हैं | कोई अग्नि की ज्योति जलाकर ही पूजा कर लेता है तो कोई जल की पूजा कर लेता तो कोई पूजा करता ही नहीं | पतंज़ली ने किसी देवता की नहीं अष्टांग योग से, जो पुर्णतः वैज्ञानिक है, उस एक पा लिया | कोई एक रंग भी फिक्स नहीं है | जैसी साधना होती है उसी हिसाब से अनुष्ठान और साधन व तरीके हैं | क्या आपने कभी ध्यान नहीं दिया की ये लोग ही डरावनी शक्ल की मूर्तियाँ बनाकर (मसलन काली माँ और लम्बी लिस्ट है भूत या राक्षस जैसे देवताओं की ) भी पूजते हैं और सौम्य सुन्दर मूर्तियों की भी पूजा करते हैं | यहाँ नेकी-बदी, God-Satin जैसी कोई कल्पना नहीं है, चीन में तो इस नेकी-बदी पर एक पूरा कॉसेप्ट है जिसे ताओ दर्शन के नाम से जाना जाता है, जो अच्छाई और बुराई दोनों को दुनिया के अस्तित्व के लिए जरूरी मानता है, उसका अध्ययन कभी समय मिले तो कर लीजियेगा | इस सम्बन्ध में एक मजेदार वाकये भी उल्लेख करना चाहूँगा, एक बार मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने मुझसे व्यंग्य करते हुए पूछा था की तुम लोग सुन्दर देवियों-नारियों की मूर्तियाँ क्यों बनाते हो, भक्ति के समय क्या तुम्हे उन्हें देख कर काम-वासना नहीं उठती, तब मैंने उसे यही कहा था की मेरे भाई तुम्हे लक्ष्मी माँ की सौम्य मूर्ति तो दिखी लेकिन काली माँ की डरावनी मूर्ति को नज़रंदाज़ कैसे कर दिया, जिसे अगर कोई आदमी उस हिसाब से देखे शायद तत्काल नपुंसकता को प्राप्त हो जाये, हा हा हा | ये मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि पश्चिम के धर्मों में प्रकाश, नेकी, अच्छाई को बढ़िया माना गया है और अँधेरे, बदी को बुरा माना गया है | जबकि ताओ (ताओ ने तो पूरी इसी कांसेप्ट पर रिसर्च कि है) या पूर्व या भारत के धर्मों में ऐसा नहीं है |.......contd.........
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जवाब देंहटाएंखैर | आगे बढ़ता हूँ | तय है की किस साधना में किस निश्चित रंग का प्रयोग करना है, और ये रंग साधना के हिसाब से बदल जाते हैं, ये मत समझियेगा की भगवा रंग ही हिंदुत्व का प्रतीक है | हर वार के हिसाब से भी देवताओं की साधना के लिए रंग फिक्स हैं, जिनमे काले, पीले, सफ़ेद, नारंगी, नीले, हरे से लेकर दुसरे बहुत से रंगों वाले कपडे पहनने का विधान हैं और ये सब आपकी चेतना को प्रभावित करने के हिसाब की व्यवस्था है | केवल हरा या सफ़ेद फिक्स नहीं है | मतलब हजारों तरीके और हजारों तरह की बातें है | यहाँ द्वैत का सिद्धांत भी है और अद्वैत का भी | मतलब एक इश्वर की विचारधारा भी है और उसके अनेक रूपों की विचारधारा की कल्पना भी की गयी है | कोई अग्नि को पूजता है कोई जल को | अगर आप एक-एक करके किन्ही हिन्दू मंदिरों में मूर्तियाँ या फोटो देखेंगे तो आपको स्पष्ट हो जायेगा कुत्ते बिल्ली से लेकर हाथी, शेर, गाय | छोटे बच्चे से लेकर एकदम बुढे रूप वाले देवी देवता मिलेंगे वो सब अकारण नहीं है, किसी विशेष तरीके या रास्ते की तरफ इशारा करते हैं |
यहाँ सबका अपना ही निराला ढंग है उस एक तक पहुँचने का | कोई एक हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है की सबको सिर्फ एक जीसस या एक मुहमद को ही मानना पड़ेगा | एक ही तरीका-पद्धति को फोलो करो ऐसा भी दबाव नहीं है | एक पोप या एक खलीफा भी नहीं होता जो किसी कंपनी या राजनितिक पार्टी कि तरह एक विशेष आचार सहिंता को नियंत्रित करने का काम संभालता हो | यहाँ मैं यह भी उल्लेख कर दूँ कि कोई ये न समझे कि मुझे इस बात का ख़याल नहीं है कि इसाई, यहूदी या इस्लाम में भी कई सम्प्रदाय या पंथ है, लेकिन सच ये भी है कि उनका आंकडा हिन्दुस्तान के सामने समंदर में बूंद के समान है |
ये कुछ इस तरह है, जैसे आज अमेरिका पदार्थ विज्ञान की तकनीकों के मामले में विश्व का राजा है | हम सब कभी कभार वहां से तकनीकों के महासागर का कुछ अंश सीख आते हैं और उस एक तकनीक पर ही ज्यादा जोर देना शुरू कर देते हैं क्योंकि वो ही हमें आती है | कोई देश केवल सोफ्टवेयर तकनीक में महारत हासिल कर रहा है, कोई सिर्फ हथियारों और बंदूकों की तकनीक में पारंगत हो रहा है | कोई मेडिकल में तो कोई किसी और में | लेकिन अमेरिका ये थोडी कहेगा की बन्दूक वाली तकनीक सोफ्टवेयर तकनीक से ज्यादा बढ़िया है, उसके पास तो सारे पदार्थ विज्ञान को लेकर इतना बड़ा महासागर है कि वो किसी एक को वो कम या ज्यादा महत्व का नहीं बता सकता | हम लोग तो मुश्किल से कोई एक-दो चीज़ वहां की ठीक से सीख पाते हैं आज | अगर कोई आगे जाकर कहेगा कि भाई साहब ये चीज़ तो हमारे देश सदा से ही बनती आई है तो उसके बारे अमेरिका वाले बेचारे कितना ही कहें एह्सान्फरामोशों सारी चीज़ हमीं से सीख कर गए अब हमें ही धौंस दिखा रहे हो, तो कौन मानने वाला होगा | कुछ ऐसा ही आप भारत के लिए चेतना या अध्यात्मिक शोध के बारे में समझिये | भारत के पास तो हजारों साधनाएं, हजारों तरीके हैं | कोई एक तरीका किसी देश ने सीखा तो कुछ किसी ने और लग गए हाथ धोकर उसी एक के पीछे | जिस तरह आज सभी लोग अमेरिका में पढने का सपना संजोये रहते हैं और मौका मिलने पर वही कूद पड़ते हैं, उसी तरह एक समय ऐसा भी था जब लोग भारत के विश्वविद्यालयों में पढने कोई लालायित रहते थे और हर किसी ने थोडा बहुत सीख कर उस ज्ञान को अपने देश में आगे बढाया, परन्तु कोई एक आदमी तो सारे धर्म के सारे शोधों और तरीकों के ज्ञान को तो अपने देश में नहीं ले जा सकता ना, ठीक वैसे ही जैसे कोई एक इंजिनियर या डॉक्टर सारी तकनीक अमेरिका से एक साथ भारत में नहीं ला सकता है |
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जवाब देंहटाएंतो भाई साहब मेरी भी आपसे गुजारिश है की आप भी बिना पूरी पड़ताल किये आगे से ये मत लिखियेगा की हिन्दू सिर्फ मूर्तिपूजक है और वेद में मूर्तिपूजा नहीं है |
- यहाँ किसी ने उसे वाम (उल्टे) मार्ग से पाया
- और किसी ने दक्षिण (सीधे) मार्ग से |
- किसी ने बिना किसी देवता को पूजे उसे अष्टांग योग (ध्यान और कुछ विशेष शारीरिक क्रियाओं) के द्वारा ही पा लिया और "अहम् ब्रम्हा अस्मि" ( मैं ही ब्रह्म हूँ) की घोषणा की
- तो किसी ने कहा मेरे "तो गिरधर गोपाल और दूजा न कोई" |
- कहीं कोई ग्वाला गीता में केवल कर्तव्य और कर्म को ही सच्चा धर्म बताता है और युद्घ को समयोचित ठहराता है |
- खजुराहो को हम मंदिर कहते हैं, इसाई या मुस्लिम तो शायद सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं कर सकते कि काम (सेक्स) के विषय भी धर्म से या मस्जिद से या गिरजे से सम्बन्ध रखते होंगे | यहाँ कामदेव और रति देवी भी हैं, लिंग पूजा और योनी पूजा भी है |
- हवन और बलियां (हिंसा) भी हैं |
- जैन और बौद्ध भी हैं जो करुणा, दया और अहिंसा, जीवों पर दया का पथ सिखाते हैं |
- गृहस्थी वाले भी महान ऋषि हुए हैं और अकेले बाल ब्रह्मचारी भी महान ऋषि हुए हैं |
- सांप और गायों को पूजने वाला ये देश किसी एक विचारधारा या पद्धति से हमेशा चिपटा हुआ नहीं रहा है
- लम्बी जटाओं और दाढ़ी वाले साधू भी हैं तो सफाचट मुंडी वाले सन्यासी भी हैं | और सामान्य शेव करने वाले और सर के बाल सामान्य साइज़ के रखने वाले भी बड़े महात्मा हुए हैं |
- वैरागी पहाडों और श्मशान में रहने वाले शिव को मानने वाले भी हैं उसके एकदम उल्टे महलों में रहने वाले ऐश्वर्यशाली कृष्ण को भी मानने वाले हैं |
- अपने को सभ्य और विकसित कहने वाले लोग पहले अपने नादान इतिहास पर भी गौर फरमा लें |
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जवाब देंहटाएंये सब होता है यहाँ भारत में और वो भी बिना किसी मतभेद के और मतभेद होगा ही क्यों सब अपने-अपने तरीके निकालते रहे हैं शोध कर-कर के | क्या अमेरिका का कोई इंजीनियर दूसरे से इस बात पर बहस करेगा की उसकी तकनीक ज्यादा अच्छी है बजाय दूसरे के, नहीं, वो जानते हैं सबकी खोज अपनी जगह सामान महत्व वाली है | ये दूसरी बात है कि अभी खुद हिन्दुओं कि नासमझी के कारण कई मतभेद पैदा हुए हैं लेकिन ये हुए हैं नई पीढी में गलत शिक्षा के फैलने से | सुनियोजित तरीके से संस्कृति का नाश करने से (खासकर अंग्रेजों का इसमें काफी बड़ा हाथ रहा है )| इस देश के लोगों को पिछले 1,000 साल कि गुलामी के कारण कई महत्वपूर्ण बातों हाथ धोना पड़ा है | इतने सालों में बहार से आई दूसरी संस्कृतियों को इसने अपने अन्दर समाविष्ट तो कर लिया लेकिन उन संस्कृतियों की अच्छे गुणों के अलावा कई गंदे वायरस भी आ गए जो अब फोडे बनकर उभर गए है मुझे नहीं पता ये देश पूरी तरह स्वास्थ्य लाभ कब तक करेगा |
लेकिन मेरा तो यही मानना है कि दुनिया के दुसरे देशों के स्वार्थी व्यवहार को देखते हुए, इस देश को अब अपने परोपकार और अहिंसा (असल में कायरता और गुलामी वाला व्यवहार जिसे भारतीय लोग अहिंसा जैसे शब्दों के आभूषण की तरह ओढ़ते हैं ) के रास्ते को छोड़ देना चाहिए | और चीन से सबक लेते हुए किसी एक कट्टर संकल्पना कि और बढ़ना चाहिए जिसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ एक राष्ट्र के हितों को साधना होना चाहिए |
एक और बात ये की ईसाईयों में तो फिर भी अब काफी खुलापन आ गया है, पुनर्जागरण के बाद से| पुनर्जागरण के पहले के हालात तो आप सभी को पता ही होंगे की यूरोप में भी कितने हास्यास्पद, घृणित और बड़े मूर्खता वाले काम हुए हैं | वहां अब नए और अलग विचार वाले लोगों का नाश नहीं किया जाता उनमे अभी इतनी कट्टरता नहीं रह गयी है जितनी अभी मुस्लिमों में बाकी है | तुर्की को छोड़ के अन्य किसी मुस्लिम देश ने नए मूल्यों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है | इधर भारत ने पिछले 500-600 वर्षों में कई रूढियां पकड़ ली थी, लेकिन अब फिर से नया दौर चला है, परन्तु अपने असली गुणों को रिकवर करना भारत के लिए काफी मुश्किल है | स्पष्टतः यहाँ यह भी कह दूँ कि नए दौर का मतलब अमेरिका के पीछे चलना ही नहीं होता है सारी रवायतें पश्चिम की हमेशा ही सही हों ऐसा भी जरूरी नहीं | 100 साल पहले कह रहे थे परमाणु ऐसा होता है, आज कह रहे हैं नहीं वैसा होता है कल कुछ और कहेंगे | विकसित होते विज्ञान से सीधे अपनी मौलिक खोज किये बिना नक़ल करके उठा लेने पर हम उनके पीछे ही चलते रहेंगे | इसलिए इतनी जल्दी भी वहां का जंक फ़ूड उठा कर मत लाओ यारों की पता चला वही अब कह रहे है जंक फ़ूड नुकसान करता है | तब फिर खुद ही पछताओगे की जंक फ़ूड के चक्कर में जिन गायों को तुमने ख़तम होने के कगार पर ला दिया की अब शहरों में तो उनके दूध के दर्शन भी मुश्किल हो गएँ हैं | मतलब भैया धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का वाली स्थिति हो जाने वाली है फिर तो |
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ऊपर लिखी सारी कमेंट्स को लिखने के बाद मैं एक और विशेष कमेन्ट लिखना चाहता हूँ मेरे इन सारे कमेन्ट को पढने वाले लोग मुझे अति हिंदूवादी, कट्टरवादी, इसाई व मुस्लिम विरोधी या सेकुलरिस्ट या किसी ख़ास वर्ग, धर्म, समुदाय, जाति के पक्ष या विपक्ष में होने वाला व्यक्ति समझ रहे हैं तो ये उनकी ग़लतफ़हमी ही होगी, उनके लिए मैं अफ़सोस जाहिर करता हूँ | अगर कभी समय मिला तो इस मैं इस कमेन्ट को अपने ब्लॉग पर और भी अच्छी और विस्तृत चर्चा के रूप में लिखूंगा |
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आपके सुझाव/शिकायत जरूर टिप्पणी के रूप में दें | यदि कोई अपना गुस्सा या ख़ुशी सार्वजनिक रूप से नहीं व्यक्तिगत रूप से जाहिर करना चाहता है तो मेरा इ-मेल पता है,
yss.rajneesh@gmail.com
मेरे कमेंट्स पढने के लिए शुक्रिया | The End
अच्छा लगा जी . अच्छा लिखते हो लिखा करो !!@
जवाब देंहटाएंकुंवे का मेढक जब तक अपने कुंवे में रहता है उसे लगता है के उसका कुंवा ही सब कुछ है बाकि सब कुछ झूठा है .
भारत कुंवा नहीं था और नहीं है . यहाँ हमेशा से दुसरे धर्मों के लोग भी रहे हैं . आर्य भी तो बहार से ही आये थे .
कुंवे से बहार निकलो सच को जानो जो अच्छा लेगे उसे ग्रहण करो .दुसरे धर्मों को सम्मान दो .
आँख बंद करके कुंवे में पड़े रहने से देश का विकाश नहीं होगा और न ही आपका .
देश में आग लगाने वालों से यही कहूँगा के देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना है तो चुनाव जीत के संसद में में जाओ और संविधान में संसोधन करके करो .
यदि आप आग लगा के ही ऐसा करना चाहते हैं तो आप वास्तव में ऐसा नहीं करना चाहते
बल्कि हिन्दू राष्ट्र बनाने की आड़ में मासूमों का खून बहा रहो हो और हिंदुत्व को खूब कमजोर बना रहे हो .
आप खुद पर खुद ही जुल्म कर रहे हो .
अल्लाह आपको अकल दे .