मंगलवार, 30 जून 2009

"हमार हिन्दुस्तान" की चर्चा "दैनिक अमन के सिपाही" में



कल मुह्म्मद उमर कैरनवी जी से एक मेल मिला जो देखने के बाद बहुत खुशी हुई| कुछ दिन पहले मेरी उनसे बात हुई थी तो बातों बातों मे उन्होने मुझे बताया था की मैने आपका एक लेख अखबार मे दिया था तो वहां लोगो को पसन्द आ गया तो उन्होने छाप दिया।

शुक्रवार, 26 जून 2009

मुझें कपडों से नही, पहनने के तरीके से शिकायत है।

दो दिन पहले मैनें एक लेख लिखा था ये शालीनता है, अश्लिलता हैं, फ़ैशन हैं, या फ़ुहडपन?

इस मे मैनें महिलाओं के पहनावे की आलोचना की थी तो इस लेख के जवाब मे मुझे काफ़ी कुछ सुनने को मिल गया।

मेरी समझ मे एक बात नही आती की लोग मेरे लेख का गलत मतलब क्यौं निकाल लेतें है? मैं कहना कुछ चाहता हु और वो समझते कुछ और है इससे पहले भी मैनें एक आलेख लिखा था एक विवाद्पस्द मुद्दे पर तब भी यही हुआ। मैं कहता हुं रात है पाठक कहते है की भोर हो गयी है, मैं कहता हुं डोसा है वो कहते है बिरयानी है।




बुधवार, 24 जून 2009

ये शालीनता है, अश्लिलता हैं, फ़ैशन हैं, या फ़ुहडपन?

मैं इस विषय पर काफ़ी दिनो से लिखना चाहता था लेकिन हर बार मसरुफ़ियत की वजह से रह जाता था लेकिन कल एक दिन मे मैनें इस विषय और इससे मिलते जुलते विषय पर पांच लेख पढें। वो लेख इस प्रकार है:-





मंगलवार, 23 जून 2009

इन्टरनेट की दुनिया का आखिरी पन्ना....

ज काफ़ी दिनो बाद पोस्ट कर रहा हु क्यौंकी हम भारत संचार निगम के अत्याचार के शिकार हो गये है, जब उनकी मर्ज़ी होती है तभी हमारी उंगलियां चलती है हमारे कीबोर्ड पर.......कल उन्की मेहरबानी हो गयी तो हम थोडा बहुत इधर उधर झांक रहे थे तो अचानक हमें एक ऐसा पेज मिला जिसे देखा तो दिल मे खयाल आया की आप लोगो को भी दिखा दिया जायें।
मुझे इंटर्नेट का पहला पन्ना तो नही मिला लेकिन आखिरी पन्ना ज़रूर मिल गया।
इस पन्ने को देखें और अपनी राय टिप्पणी के द्वारा ज़रुर दें।



शुक्रवार, 19 जून 2009

जीने के लिए भी वक्त नही.......

आज अपना पुराना ब्लॉग देख रहा था। जो मैंने आज से ३ साल पहले बनाया था Rediffblogs पर जब ब्लॉगर ठीक से काम नही कर रहा था। उस ब्लोग को एक साल पहले से इस्तेमाल करना बन्द कर दिया था तो आज वहां पर एक कविता मिली जो पता नही किसने लिखी थी, और मैने कहां पढी थी, लेकिन अच्छी लगी थी तो उसे मैने अपने ब्लोग मे लिख दिया था तो सोचा उसे आप लोगो को भी पढा दूं।


हर खुशी है लोगों के दामन मे,
पर एक हँसी के लिए वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिंदगी के लिए ही वक्त नही.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नही.

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही.

आंखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नही.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही.

पैसों की दौड़ मे ऐसे दौडे,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.

तू ही बता ऐ जिंदगी,
इस जिंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नही.......




शनिवार, 13 जून 2009

कुरआन का हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) .MP3 फ़ोर्मेट मे..। Download Quran (Kuraan) Hindi Translation In .MP3 Format

आप सब लोगो के लिये काशिफ़ कि तरफ़ से एक तोह्फ़ा। मैने पुरे एक महीने की मेहनत के बाद कुरआन के हिन्दी अनुवाद (तर्जुमा) के .MP3 फ़ोर्मेट को मै इन्टरनेट पर अपलोड कर पाया ताकि इस को ज़्यादा से ज़्यादा लोगो तक पहुचा सकुं और जो मुस्लिम और गैर-मुस्लिम भाई अरबी भाषा नही जानते है वो कुरआन और इस्लाम के सही मतलब और मक्सद को समझ सके। तहे दिल से कुबुल करें कि कुरआन अल्लाह का कलाम है और अल्लाह के सिवा कोई पूज्ने यौग्य नही।






मैने इस अनुवाद को सात टुक्डों ZIP File की शक्ल मे इन्टरनेट पर अपलोड किया है। इन सातों टुकडॊं को आप यहा दिये गये लिन्क के द्वारा अपने कंप्युटर मे डाउनलोड कर ले। फिर इन्हे UNZIP कर के इन्हे सुने, इस्मे पहले कुरआन की आयत की तिलावत कि गयी है फिर उसका अनुवाद किया गया है। हर फ़ोल्डर के नाम मे उन आयात का पारा नंबर दिया गया है। हां इस तर्जुमे मे आयत नंबर नही दिया है क्यौंकी आयत नंबर देने के बाद ये एक सही सीरियल से आपके .MP3 Player कि Playlist मे नही चलेगा। इसीलिये इसे अलग नंबर दिये हुए है लेकिन जहां कोई नयी आयत शुरु हो रही है वहा - वहा उस आयत का नाम दिया गया है।

डाउनलोड करने के लिये यहां क्लिक करें।

बुधवार, 10 जून 2009

अपना घर तलाशती चीटिंयां....।

चीटिं का नाम सुनते ही एक काले से छोटे कीडे का अक्स हमारी आखों के सामने बन जाता है जो हमारे हाथ और प्लेट से गिरे हुए खाने के कण को सर पर उठाये इधर - उधर भागता दिख जाता है। इसकी पह्चान सबसे मेहनती कीडे के रूप मे होती है जो कभी भी हार नही मानता है, अगर आप इसके रास्ते मे कोई चीज़ रख दे तो ये अपना रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते से निकल जाता है। हर वक्त ये आपकॊ काम करता मिलेगा। ये एक पुरे झुंड मे रह्ते है जिसकी एक रानी होती है और सब चीटियां उसके आदेश के अनुसार काम करती है। सब चिटियों को उन्का काम बाटं दिया जाता है और वो सब उसी लिहाज़ से अपना काम करती है। ये आपकॊ कभी भी परेशान नही करेगी तब तक जब तक इसकॊ आपसे खतरा मह्सुस नही होता और खतरा महसुस होते ही ये आपकॊ काट लेगीं उसके काट्ने के बाद काफ़ी जलन होती है।

पिछ्ले एक महिने से मेरे घर और मेरे पडोस मे सब लोग एक अजीब सी परेशानी पड गये है। हमारे घरॊं मे चीटियों ने हमला बोल दिया है पुरे घर मे चीटियां ही चीटियां है, जहा आप निगाह घुमायेंगे वहां आपकॊं चीटियां नज़र आ जायेगीं कहीं पर भी आपकॊ वो बैठने नही देगीं। बहुत सोचने के बाद मैनें एक निष्कर्ष ये निकाला है की हम इन्सानों से हर जानवर की तरह इन चिटियों का घर भी इन से छिन लिया है, और अब ये अपना घर तलाश रही है।






पहले चुने मिट्टी के घर बनते थे, फिर दौर आया चम्बंल और सिमेन्ट का, यहा तक तो ठीक था चीटियां दीवार के किनारे से सुराख कर के अपना आशियाना बना लेती थी लेकिन आज कल हर जगह, हर घर मे मार्बल और टाईल्स का ईस्तेमाल हो रहा है जिस्से जो एक थोडा बहुत जो उनके लिये आसरा बना था अब वो भी खतम हो गया है। इनकॊ अब जगह नही मिल रही है कि ये कहां अपना घर बसायें और अपने परिवार को पालें। इनको खाना तो बहुत मिल जाता है क्यौंकी आज के दौर का इन्सान खाता कम है और फेंकता ज़्यादा है क्यौंकी ये इंसान की बहुत पुरानी फ़ितरत है की वो कभी भी अपने आप को मिली नेमत का सही इस्तेमाल नही करता है । अरे मैं अपने विषय से भट्क रहा था, हां तो हम चिटियों के बारे मे बात कर रहे थे, इनकॊ खाना तो मिल जाता है लेकिन इनको घर नही मिल रहा है जो चीटियां किसी मैदान या बाग मे रह्ती है उनकॊ तो घर की परेशानी नही है और रही बात खाने की तो बहुत से ऐसे भले मानस है जॊ सुबह टहलते वक्त इन्हे खाना डालते हैं।

अब कही ऐसा न हो की घरेलु चिडिया, गिद्द और दूसरे जानवरॊ की तरह इन्हे भी देखने के लिये हमें शहर के बाहर गांव और जंगल मे जाना पडे। कब तक हम ऐसे आंख बन्द करके प्रक्रति को नुक्सान पहुचांते रहेगें। अगर इसी तरह हम लोग प्रक्रति को नुकसान रहेंगे तो वो दिन दूर नही कि इस दुनिया मे सिर्फ़ तीन चीज़ें बाकी रहेंगी :- इन्सान, मशीन और ये कंक्रिट का जंगल।

सोमवार, 8 जून 2009

अपना घुट्ना तुडा के बैठे है।

मै काफ़ी दिनो से अपने ब्लोग को एक नया रूप और रंग देने मे व्यस्त था, उसका काम पुरा हुआ तो दूसरा काम शुरु किया वो था टिप्पणी करने का काम। सब कुछ बहुत अच्छी तरह चल रहा था लेकिन क्या करे मेरे साथ हमेशा से यही होता आया है जब सब सही जा रहा होता तभी कोई गडबड हो जाती है इस बार भी हो गयी।

एक दुर्घट्ना हो गयी, मै शुक्रवार को शाम को अपनी फ़ैक्ट्री से लौट रहा था, फ़ैक्ट्री बंद करने के बाद जैसे ही वहा से चला सीढी से पैर फिसल गया सिधे निचे आकर गिरे, दाहिने घुट्ने मे बहुत असहनीय दर्द हो रहा था मैने अपने आप से कहा कि काशिफ़ भाई, तुम्हारा काम हो गया अब, बिस्तर पकड लो घर जाकर एक महिने के लिये। फिर पडोसियो ने घर पर फोन किया पिताजी और भाई साहब आये, अस्पताल गये फिर वही प्रक्रिया जिसको हम बहुत बार झेल चुके है।






सब तरह के टेस्ट करवाने के बाद हम बैठे हुए डाक्टर का चेहरा देख रहे थे की कही ये कोई बुरी खबर ना सुना दें, जब उन्होने मुंह खोला और अपनी जीब से जो बोला उसे सुनकर जान मे जान आ गयी। फ्रैक्चर नही बस "लिगामेंट डिसआडर" हो गया है १० - १५ दिन का आराम और फिर सब बढिया लेकिन एक बात कह कर उन्होने हमारा दिल तोड दिया वो ये कि दो - तीन दिन यही रुकीये अस्पताल मे। अस्पताल मे रुकने से सबसे मेरा सबसे बडा नुक्सान था की मे अपने ब्लोग से दूर हो जाऊगा वही हुआ, अभी - अभी वापसी हुई है घर पर। पैर के हालत ठीक है, घुट्ने पर एक ब्रेस बाधां है उसे ही बाधं कर चलना है।

अस्पताल मे बैठे - बैठे दो चार लाईने लिखीं है अपनी हालत पर, मैं शायर नही हु इसलिये आप से गुज़ारिश है कि पढ्ने के बाद हंसे नही ......अर्ज़ है

करने है बहुत सारे काम,
पर हम आराम से बैठे है।
क्या करे मजबूर है यार,
क्यौंकी हम अस्पताल मे बैठे है।
काट्ता है ये बिस्तर रात भर,
याद आता है हमें हमारा ब्लोग और कंप्यूटर।
दिल करता है भागने को यहां से,
पर बेवजह हम घुट्ना तुडा के बैठे है।

गुरुवार, 4 जून 2009

मैने किसी पर कोई तोहमत नही लगायी...!!

कल मैने एक पोस्ट लिखी थी "हमें नही चाहिये ऐसा राष्ट-धर्म और ऐसी देशभक्ती" उस पर मुझे ब्लोग्गर समुदाय से तीखी प्रतिक्रिया मिली कुल मिलाकर २२ टिप्पणीयां मिली मै उन भाईयों को उनके सवालों का जवाब देना चाह्ता हू।

पहली बात मैने किसी पर कोई तोहमत नही लगाई जो मैने देखा और पढा वही मैने लिखा है जिन टिप्पणीकारों का नाम मैने लिखा उनकी कोई भी टिप्पणी मे वो इन ब्लोग्गर की बात को काटते नही दिखे चाहे उन्होने जो लिखा हो, हमेशा उनका उत्साह ही बढाया है...अरे यार दिल्ली सरकार ने केसरिया बोर्ड हटा दिये तो उसको मुद्दा बना दिया अब सब जगह हर शहर मे बहुत पहले से नोटिस बोर्ड हरे रंग का किया जा चुका है। विदेश मे आप चले जायें वहां भी आपको इसी रंग के बोर्ड मिलेंगे आम-तौर से।

दुसरी बात आप मे किसी ने भी इस पोस्ट को लिखने के असली मतलब को नही समझा सिवाय दो लोगो के एक है बालसुब्रमण्यम जी, और दूसरी है Mired Mirage जी, । मुझे नही पता था की इतने समझदार लोग भी मेरी पोस्ट का मतलब नही समझ पायेगें, मै मानता हु की मै इन सब लोगो से उम्र और तजुर्बे मे छोटा हु लेकिन मुझे अपना देश टुक्डों मे बटंता हुआ बर्दाश्त नही हुआ। हो सकता है की जिन लोगो के नाम मैने लिये वो लोग ऐसे नही हो लेकिन मुझे उनके लेख और टिप्पणी पढ्ने के बाद जो महसुस हुआ वही मैने लिख दिया।





@ विजय वडनेरे जी, मुद्दों को उठाने मे हमेशा आगे रह्ता हू आप मेरे ब्लोग की सारी पोस्ट देख सकते है, हर पोस्ट मे आपको आम लोगो की ज़िन्दगी के आम मुद्दे ही मिलेगें। मै सुरेश जी की बहुत इज़्ज़त करता हू, बहुत बडे पत्रकार है लेकिन मैने अब तक उनके जितने लेख पढे उन सब मे उन्होने सरकार द्वारा उठाये गये हर कदम की आलोचना की। वो अपने आपको काग्रेंस विरोधी कह्ते है, क्या आपको नही लगता की कभी - कभी विरोधी के अच्छे कदम की तारिफ भी कर देनी चाहिये।


@ संजय बेंगाणी जी, मै किसी की बात का बुरा नही मान रहा हू। जो ये लोग कर रहे है वो मुझे गलत लगा तो मै उसको गलत कह रहा हू, और जो सही है वो लोगो को बता रहा हु। बस इस्से ज़्यादा मैने कुछ नही किया। क्या आपको नही लगता इस तरह धर्म और ज़ात के नाम पर अपने देश को बाटं कर हम अपने देश का नुक्सान कर रहे है।

@ ताऊ रामपुरिया जी, मैने किसी को कोई हुक्म नही सुनाया है, ना ही मैने ऐसी कोई बात कही है, मैने ऐसा इसीलिये लिखा क्यौंकी मै काफ़ी दिन से देख रहा था की हिन्दी ब्लोग्गर समुदाय दो हिस्सॊ मे बंटता जा रहा था जो मुझसे बर्दाश्त नही हुआ।


@ सुरेश जी, मै आपकी बहुत इज़्ज़त करता हू, आप बहुत बडे पत्रकार है। मै मानता हू की मैने आपके ज़्यादा लेख नही पढे लेकिन मै एक बात कहना चाहुंगा की अच्छा विरोधी वो होता है जो अपने दुश्मन की खुबियों को भी माने, और उसके द्वारा किये गये सही काम को सराहे और ऐसा मुझे आपके ब्लोग पर देखने को नही मिला। मै उम्मीद करता हू की आगे से ऐसा नही होगा और आपके लेख की यह कमी दूर हो जायेगी।



@ आशीष जी, मै आपकी बात से सहमत हू, मैने ये पोस्ट कोई लडाई करने के लिये नही लिखी। मै भी एकता और भाईचारा चाह्ता हू।


@ न्दन जी, मैने यह तो नही कहा...आपकी नज़र मे शायद ऐसा होता है की अगर दो चीज़े खाने की सामने रखी हो अगर एक को बुरा कह दिया तो ज़रूरी है की दुसरी की भी तारीफ की जायें। अफ़्ज़ल और कसाब दोनो गुनाह्गार है और उन्हे उनके गुनाह की सज़ा मिलनी चाहिये।
मुझे आपकी बात मे कुछ कमी है :- सिर्फ अपने साम्प्रदाय की बात करना, और दुसरे समुदाय को बुरा कहना ही साम्प्रदायिकता है।
यह सेकुलर वाली परिभाषा लगता है आपकी बनाई हुई है और इसको सिर्फ़ आप ही मानते होगें।

@ अरुण जी, पहली बात मुझे पंगे पसन्द है क्यौंकी जब पंगे होते है तो आपकॊ अपनी खुबियां और कमियौं के बारे मे तो पता चलता ही है साथ मे दुसरे शख्स मे बारे मे भी जानकारी हो जाती है। आपने मुझसे १७ सवाल किये और इन सवालॊ के जवाब के लिये पुरे आलेख की ज़रूरत है, मै बहुत जल्द उन्को लिखुंगा और लिखने के बाद सबसे पहले आप लोगो को बताऊगा।

@ गिरिजेश राव जी, मैने कोई फ़तवागिरी कि कोई क्लास नही ली है, इस्लाम मे सुधार की गुन्जाईश १४३० साल पहले थी, कुरान के नाज़िल होने के बाद इस्लाम मुक्कमल हो गया अब उसमे कुछ कम - ज़्यादा करने की ज़रूरत नही है. जिन सुधार की बात आप कर रहे हैं वो कमियां सिर्फ़ मुस्लमानों मे है इस्लाम मे नही, कौन सा ऐसा मुस्लमान जो कुरान और हदीस की रोशनी मे अपनी पुरी ज़िन्दगी बिताता है? अगर आपको इस्लाम को जानना है तो आप कुरान को समझों और अल्लाह के रसूल नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहिंं वसल्लम की ज़िन्दगी को देखे क्यौंकी मुसलमानों मे सबसे अव्वल मुसलमान तो वही थे.

और रही बात मुस्लमानॊ को सुधारने की तो मेरा वो काम भी जारी है मेरे दो ब्लोग चलते है एक हिन्दी मे और अंग्रेज़ी मे जिसमे मै कुरान और इस्लाम से जुडे सवालों के जवाब देने की कोशिश करता हू कुरान और हदीस की रोशनी मे।

@ रजनीश जी, आत्म-मंथन करने के बाद ही इस ब्लोग की पुरी ज़िम्मेदारी उठाई है वरना इस्से पहले मैने ये ब्लोग बनाने के बाद अपने दोस्त को दे दिया था चलाने के लिये।

@ विक्रांत जी, यही तो कमी है हम सब लोगो मे, हमने अपने धर्म का ठेका दुसरे लोगो के हाथ मे दे रखा है. मुस्लमान मौलवियों कि मान रहे है, और हिन्दु पन्डितॊं की मान रहे है। किसी को अपना धर्म ग्रन्थ उठाने की फ़ुरसत नही है, ना ही कोई ये पूछ्ने की हिम्मत करता है की ये सब कहा लिखा है। इसी विषय मेरी पोस्ट आज छ्पने वाली थी लेकिन उस्कॊ रोककर मुझे ये छापनी पड रही है।

@ ab inconvenienti जी, आईये काफ़ी दिनॊं बाद दर्शन दिये, कहा थे छुट्टी पर थे क्या? या फिर मेरी किसी ऐसी पोस्ट का इन्तज़ार कर रहे थे। मै आपके ब्लोग पर भी कई बार गया लेकिन आपके दर्शन नही हुए। आपके सवाल का जवाब मै उपर दे चुका हू।

@ शास्त्री जी, आपने उनके लेखॊ की सतह के नीचे जा कर उन्हे जाना है लेकिन मेरे लेख की सतह के उपर जो था वो आपको नही दिखा ये तो कमाल हो गया है। ये चीज़ गले से नही उतरी मैने तो साफ़ - साफ़ लिख रखा था फिर भी आपको नही दिखा शायद आपने मेरा लेख ठीक से पढा नही, दोबारा से पढियेगा।

@ Mirad Mirange जी, मुझे खुशी है की मैरे ये सब लिखने की जो वजह थी वो आपने देखी और उसकॊ सराहा। रही बात फिरदोस जी, की तो मैने उनकॊ अभी तक नही पढा है, और आपने जो लिंक दिया था उस पर "पेज नही मिला" आ गया है। अपने धर्म की तारिफ करना बुरी बात नही लेकिन किसी दूसरे धर्म या उसके मानने वाले की निन्दा करना बहुत गल्त है और अगर वो ऐसा कर रही है तो बहुत गल्त कर रही है और मै उन्कॊं पढने के बाद बहुत जल्द उस पर भी एक लेख लिखूंगा।

मंगलवार, 2 जून 2009

हमें नही चाहियें ऎसा राष्ट्ध्रम और ऎसी देशभक्ती..!!

मैं काफ़ी दिनों से देख रहा हू की इस हिन्दी ब्लोगिंग जगत को कुछ तुच्छ मानसिकता वाले हिन्दी ब्लोग्गर दो हिस्सो मे बाटनें मे लगे हुए हैं। इनके ब्लोग पर आपको हमेशा हिन्दुत्व के सम्बन्ध मे, भाजपा और संघ की तारीफ करती हुई पोस्ट मिलेगीं। मुझे उनके भाजपा या किसी और तारिफ़ करने से कुछ परेशानी नही हैं, परेशानी मुझे इस बात से है कि इनका हर लेख काग्रेंस, इस्लाम और मुस्लिम समुदाय की बुराई से शुरू होता है और सघं, भाजपा, और हिन्दुत्व की तारिफ पे खत्म होता है। इन सब के ब्लोग्स पर Comment Moderation लगा हुआ है, जो टिप्पणी इनको प्रकाशित करनी होती है उसे प्रकाशित करते है वर्ना जो टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही इनके खिलाफ होती उसे ये पी जाते है, इनके लेख पढेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे की आप भाजपा या सघं के किसी नेता का भाषण सुन रहें है।

मैं काफ़ी दिनॊं से चुप था लेकिन अब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मैने ये लेख लिखा है। इन ब्लोग्गर्स मे से प्रमुख है :- सुरेश चिपलूनकर जी, त्यागी जी, अरुन उर्फ पन्गेबाज़ जी। और इनके ब्लोग पर आपको जो इनकी हौसला अफ़ज़ाई करते मिलेगें उनमे प्रमुख है :- संजय बेंगाणी, ताऊ रामपुरिया, दिनेशराय द्विवेदी, अजित वडनेरकर, संजीव कुमार सिन्‍हा, शिव कुमार मिश्रा, महाशक्ति, ऋषभ कृष्ण, राज भाटिया, आदि। आपको किसी ब्लोग पर हिन्दुत्व की तारिफ करती या इस्लाम और कांग्रेस की बुराई करती कोई पोस्ट मिलेगी तो आपको उस पर इन लोगो की टिप्पणी ज़रूर मिलेगीं।






ये लोग अपने आप को देशभक्त और राष्ट-धर्म का पालन करने वाला बताते है और अगर इनहे सम्प्रदायिक कह दो तो इनको बहुत - बहुत बुरा लगता है। ये दुसरे लोगो यानी कांग्रेस और मुसलमानो को सेकुलर इस अन्दाज़ से कहते है जैसे गाली दे रहे हो, लेकिन मै इन "कथित" देशभक्तो से मै एक सवाल करना चाह्ता हू की देशभक्त कौन होता है? जो एक देश की बात करता है या जो सिर्फ़ एक धर्म या जाति विशेष के लोगो कि बात करता है। यह लोग इतने बेवकुफ तो नही है कि इन्हे पता न हो की ये हिन्दु राष्ट नही है, या की कितने बरसो से कितने धर्मों और सभ्यताओ के मानने वाले लोग हमारे इस देश रह्ते आ रहे हैं।

क्या आप लोग मेरे कुछ सवालो के जवाब देगें?

देशभक्त कौन होता है?

राष्ट-धर्म क्या होता है?

साम्प्रदायिक कौन होता है?

सेकुलर कौन होता है?


चलिये मै ही दे देता हु देशभक्त वो होता है जो हर हाल मे अपने देश और देशवासियों का भला चाह्ता है। हर हाल मे हर मुसीबत से अपने देश को बचाने कि हर सम्भव कोशिश करता है। राष्ट-धर्म भी यही कह्ता है की तुम्हारा राष्ट ही सर्वोपरी है बाकी सब बाद का है लेकिन इन लोगो को तो किसी चीज़ से कोई मतलब नही है।

साम्प्रदायिक उस शख्स या संस्था को कह्ते है जो सिर्फ एक धर्म या जाति की बात करती है चाहे वो कोई भी हो।

सेकुलर वो होता है जो हर जाति और धर्म के लोगो के भले के लिये काम करें।

मैने इन सबकी परिभाषा इसलिये बतायी है क्यौंकि ये जितने ब्लोगगर हैं वो सब ३५ वर्ष से ऊपर के हैं तो मुझे लगा शायद भूल गये हो इसलिये उनको याद करा दिया।

मेरी इन सब लोगो से गुज़ारिश है की महरबानी करके ये सब बन्द कर दें, इस ब्लोगिंग जगत और हमारे देश को दो हिस्सो मे ना बाटें। आज के युवा को सारी बीती बातें भूलकर आगे अपना भविष्य बनाने दें अगर वो इस तरफ लग गया तो फिर कुछ नही कर पायेगा।

इसलिये आज के युवा ने काग्रेंस को वोट किया था क्यौंकी वो विकास की बात कर रहें है राम-मन्दिर की नही।

अगर अब भी आप अपनी विचारधारा को सही मानते है तो फिर हमें ऐसा देशप्रेम और राष्ट-ध्रम नही चाहिये.......!!
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