रविवार, 29 मार्च 2009

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दोस्तों में नया हु क्या कोई मुझे बतायगा की

दिल को हिला देने वाले नजारे !!!

बात आज से ३ दिन पहले की है मैं कानपुर स्टेशन के प्लेटफोर्म नम्बर सात पर अपनी ट्रेन अवध एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहा था, जो की एक घंटे लेट थी, तो प्लेटफोर्म नम्बर सात पर पुष्पक एक्सप्रेस आ कर रूकती है, जो लखनऊ से बांद्रा के लिए चलती है, मैं जहाँ खड़ा था उसके सामने ट्रेन की रसोई (Pantry Car) थी, कुछ देर खड़े होने के बाद ट्रेन चली गई तभी मेरी नज़र रेल पटरी के बीच मे पड़ी जहाँ पानी की पाइप लाइन पर एक आदमी बैठा था, और वो ट्रेन की रसोई मे से फेंकी गई जूठी प्लेटो मे खाना बीन कर खा रहा था, उसके पास चार आवारा कुत्ते घूम रहे थे वो भी उन्ही प्लेटो मे से खाने की तलाश मे थे.....उस आदमी के बाएँ हाथ मे एक लकड़ी थी जिससे वो उन कुत्तो दूर भगा रहा था और दायें हाथ से जल्दी जल्दी खाना उठा कर खा रहा था, कुत्ते भी काफ़ी भूखे थे, वो भी हर तरीके से कोशिश कर रहे थे की उन्हें कुछ खाने को मिल जाए.....मैंने अपनी ज़िन्दगी मे पहली बार इंसान और जानवर को खाने के लिए लड़ते देखा था।

शुक्रवार को मैं अपने एक व्यपारी को बरेली की ट्रेन मे बिठाने के लिए आगरा फोर्ट स्टेशन गया, ट्रेन आधा घंटा लेट थी तो हम लोग वहीं बैठ गए हम आपस मे बातचीत कर रहे थे....वहां कुछ गाँव वाले भी जिन्हें रास्ते मे कहीं उतरना था साडे सात बज चुके थे उन्होंने अपना झोला खोला और वहीं ज़मीन पर बैठ कर खाना खाने लगे वो चार लोग थे एक के पास सूखे आलू की सब्जी थी, एक पास पता नही क्या था मुझे दिखा नही तभी ऊपर बैठे बन्दर की निगाह उन पर पड़ गई वो नीचे उतर आया उसको देख कर उन लोगो मे से एक आदमी ने "जय हनुमान" कह कर एक रोटी झोले से निकाल कर बन्दर के सामने डाल दी, बन्दर ने उस रोटी को उठा कर सुंघा, और फिर छोड़ कर चला गया, तो मेरे साथ मौजूद लोगो ने और मैंने एक साथ कहा की "जिस रोटी को इंसान खा रहा है उसको जानवर ने खाने से मना कर दिया" उन लोगो ने एक बार फिर कोशिश की, दूसरी रोटी निकाल कर उसके सामने डाली लेकिन उसने तो क्या किसी दुसरे बन्दर ने भी उन रोटियों को हाथ नही लगाया.....

हम लोग बड़े फख्र से कहते है की हमारा भारत तरक्की कर रहा है, हम लोग अमीर होते जा रहे हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है । "जो लोग पहले से अमीर है उनके खजाने बढते जा रहे है और जो गरीब है वो और गरीब होता जा रहा है,"

हमारा देश तरक्की कर रहा है लेकिन सिर्फ़ उच्च और मध्यम वर्ग की आय बढ़ रही है, और जो निम्न वर्ग का आदमी हैं वो तो सिर्फ़ दो वक्त की दाल रोटी, कपड़े की लड़ाई मे ही मरे जा रहा है.........इस क्रान्ति ने अमीर और गरीब के बीच की खाई तो इतना बढ़ा दिया है की उसको भरने मे हमारी पुश्ते लग जायेंगी..... ऊपर मैंने अपने आंखों से देखे हमारे हिन्दुस्तान के हालत बताये की यहाँ किसी को झूठा खाना खाने के लिए कुत्तो से लड़ना पड़ता है, और जिसको रोटी मयस्सर है वो रोटी जानवर भी खाने से मना कर देता है ।

"हिन्दुस्तानियौं को यह तरक्की बहुत मुबारक हो "

मंगलवार, 10 मार्च 2009

शंकराचार्य का बयान इस्लाम के सम्बन्ध मे !!!!

दोस्तों, पिछली पोस्ट मे मैंने आपको एक शख्स के बारे मे बताया था, जिसकी सोच मुसलमानों और इस्लाम के बारे मे कितनी ग़लत थी, अब मैं आप लोगो के सामने एक विडियो पेश कर रहा हूँ इसमे एक शंकराचार्ये एक सभा को



संबोदित कर रहे हैं, अब आप लोग इनके विचार सुनिए, इस्लाम और मुसलमानों के बारे मे ! कृपया इस विडियो को देखने के बाद अपनी बहुमूल्य टिप्पणी ज़रूर दीजियेगा, धन्यवाद.

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

साठ साल से मुसलमान हमें "कैंसर" दे रहे हैं?...!!!!!

पिछले साठ साल से मुसलमान हमें कैंसर दे रहे हैं....उसका क्या करें? यह अल्फाज़ एक ७५ वर्षीय व्यक्ति के हैं जो उसने मुझसे कहे थे, यह बात तब की हैं जब मैं हमेशा की तरह अपने काम के सिलसिले मे टूर पर गया हुआ था मेरा बुधवार को कानपूर स्टेशन से टूंडला तक संगम एक्सप्रेस मे रिज़र्वेशन था, मेरे साथ मेरे पिताजी थे....गाड़ी एक घंटा लेट थी, दस बजकर बीस मिनट पर गाड़ी आई, हमारी बर्थ एस २ मे ५१, ५२ थी, जब हम बोगी मे पहुचे तो देखा उसमे ७२ नही ८४ बात थी, तो लाज़मी था सबके बर्थ नम्बर बदलने थे क्यूंकि टिकट पर नम्बर ७२ के हिसाब से लिखे थे.....मैं बाहर गया तो रिज़र्वेशन चार्ट फटे हुए थे हमेशा की तरह, तो मैंने वहां लगी टच स्क्रीन कंप्यूटर से अपना बर्थ नम्बर निकाल लिया जो की ५७, ५८ था, अब अपनी बर्थ पर saaman रख कर मैं बाथरूम गया, वहां से आने के बाद मैंने देखा की मेरी बर्थ की सामने वाली साइड बर्थ पर एक बुजुर्ग आदमी जिनकी उम्र लगभग ७५ से ७८ साल होगी, गोरा रंग, एकहरा बदन, वो बर्थ पर लेटे हुए बीढ़ी पी रहे थे, मुझे बीढ़ी - सिगरेट के धुंए से घुटन होती है, मैंने उनसे कहा अंकल जी, आप बीढ़ी बुझा दो या फिर दरवाज़े पर खड़े हो कर पी लीजिये, तो उन्होंने कहा की मैं दो कश लेकर बुझा रहा हूँ। उन्होंने दो कश लिए लेकिन उन दो कश मे पुरी बीढ़ी ख़तम कर दी, मैंने उनसे कहा "अंकल, क्योँ आप अपने अंदर बरसो से पल रही बीमारी को लोगो दे रहे हो," तो उन्होंने कहा की "तुम लोग हमें साठ साल से जो बीमारी दे रहे हो उसका क्या?" मेरी समझ मे कुछ नही आया, मैंने उनसे दोबारा पूछा "कौन सी बीमारी, कौन लोग दे रहे हैं?" तो उन्होंने कहा की "तुम, तुम मुसलमान हमें साठ साल से कैंसर दे रहे हो, उसका हम क्या करें?" यह सुनने के बाद मैं दो - तीन मिनट तक कुछ बोल नही सका, मैंने सुना था की कई बार मुसलमानों से कुछ लोग ऐसा सौतेला व्यवहार कर जाते हैं, लेकिन उन लोगो की बातों को मैंने कभी सीरियसली नही लिया लेकिन उनके मुहँ से यह सुनने बाद मुझे उन लोगो की बातों पर यकीन हो गया, मैं समझता था की ऐसी बातें सिर्फ़ सियासत से जुड़े लोग ही करते हैं, आम आदमी कभी नही करता लेकिन उन्होंने मेरी समझ को झूठा साबित कर दिया।
इतने मे मेरी पिताजी जो बाथरूम गए हुए थे वो वापस आ गए, उनके इतना कहने के बाद वहां पर जो लोग भी मौजूद थे उन सबने उन अंकल से बोला की क्या बेकार की बात कर रहे हो? इसमे हिंदू - मुस्लिम की बात कहाँ से आ गई? उस बच्चे ने सिर्फ़ इतना ही कहा था की बीढ़ी बुझा दो, ग़लत तो नही कहा था, तुम ट्रेन मे बीढ़ी पी रहे जो की कानूनन जुर्म है....पिताजी ने जब हंगामा होते देखा तो उन्होंने पूछा की क्या हुआ? मैंने उन्हें थोडी बहुत बात बता दी लेकिन मैंने उन्हें यह नही बताया की उन्होंने मुझसे क्या कहा था, उसके बाद भी वो पिताजी से लड़ने लगे, वो तो मारपीट करने की लिए अपनी बर्थ से उतर कर आ गए थे, लेकिन वहां मौजूद लोगो ने बीच बचाव करा दिया, बात खतम हो गई, लेकिन यह बात मेरे लिए ख़तम नही हुई थी मैं पुरी रात अपनी बर्थ पर लेटा सोचता रहा, नींद मेरी आंखों से कोसो दूर रह - रह कर कानो मे वो आवाज़ गूंज रही थी, उनकी आवाज़ मे जो कड़वाहट थी वो भुलाए नही भूलती है, उनकी आंखों मे मुझे बहुत नफरत दिखाई दी थी, मुसलमानों के लिए......

पुरी रात सोचते - सोचते निकल गई, मेरे दिल मे बहुत सारे सवाल आ रहे है, जिनके जवाब तलाशने हैं:-

क्या मुसलमान भारतवासी नही है?

क्या मुसलमानों को हिन्दुस्तान मे रहने का हक़ नही हैं?

क्या हिन्दुस्तान मुसलमानों का मुल्क नही है?

क्या यह देश सिर्फ़ हिन्दुओं का है?

क्या जो लोग आज़ादी से पहले से यहाँ रहते आ रहे हैं, और जिनके पुरखो ने आज़ादी की ज़ंग मे हिस्सा लिया वो यहाँ रहने के लायक नही हैं?

क्या कुछ मुसलमानों का अपने लिए अलग ज़मीन माँगना, सारे मुसलमानों के लिए इतना भारी पड़ेगा की उनके
मुल्क मे उन्हें पराया माना जाए?

क्या कुछ लोगो की ग़लत हरकतों की सज़ा पुरी कौम्म को देना सही है?

क्या आपको पता है जब किसी आदमी को लोग शक की नजरो से देखते है कितनी तकलीफ होती है?

क्या आपको पता है जब स्टेशन पर पुलिस वाला सब को छोड़ कर आपसे पूछताछ करता है तो कैसा लगता है?

तब आपको कैसा लगेगा जब कमरा किराये पर देने से पहले आपका धर्म पुछा जाता है?

क्या कभी किसी आम मुसलमान की ज़िन्दगी को आपने गौर से देखा है? कभी देखियेगा, वो सुबह उठेगा, नमाज़ पड़ेगा, और रोजाना के काम करने के बाद अपने काम पर निकल जाएगा, शाम को फिर वापस घर। एक आम हिंदू, मुसलमान, इसाई, सिख या किसी धर्म या जाती का हो, इन सब आम आदमियों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मे सिर्फ़ एक फर्क हैं वो हैं अपने इश्वर को याद करने का तरीका, उसकी पूजा करने का तरीका, बस इसके अलावा सब कुछ एक सा है।

मेरी बात को ज़रा अकेले मे बैठ कर sochiयेगा, क्या यह जो हम लोग एक धर्म के लोगो के साथ कर रहे हैं, क्या वो सही है?
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