Global Warming ग्लोबल वार्मिंग का असर हमारी जीवन शैली पर आज के दौर का सबसे बडा सवाल। आज के वक्त में शायद ही कोई ऐसा पढा-लिखा इंसान होगा जिसको ग्लोबल वार्मिंग के बारे में पता ना हो लेकिन फिर भी अगर किसी को ना पता हो तो उसके लिये मैं बता देता हूं। आदमी के द्वारा पैदा किये गये प्रदुषण (ग्रीन हाउस गैसों) से पर्थ्वी के बढते हुए औसत तापमान को ग्लोबल वार्मिंग कहते है जिसकी वजह से अंटार्टिका में बर्फ़ पिघल रही है और भारत में हिमालय पर बर्फ़ पिघल रही है और समुंद्र का जलस्तर बढता जा रहा है। आज सब लोगों को "ग्लोबल वार्मिंग" के बारे में अच्छी तरह से पता है लेकिन लोग उसे अच्छी तरह से जानते नही है। कुछ अजीब नही है की राह चलते आप सुने किसी को "बढती गर्मी" और तेज चलती हवाओं के बारे में शिकायत करते हुऎ और फ़ौरन उसकी टिप्पणी भी "अरे भई ग्लोबल वार्मिंग है"।
आज इस लेख में मैं आपको "ग्लोबल वार्मिंग" के भयानक रुप से परिचित कराऊगां। आप पढेंगे "ग्लोबल वार्मिंग" की वजह, उसके वर्तमान में नुकसान और भविष्य में होने वाले नुकसान के बारे में, हमारी जीवन शैली पर हो रहे उसके असर के बारे में। पहले १०० या २०० साल के बीच में अगर तापमान में एक सेल्सियस की बढोतरी हो जाती थी तो उसे ग्लोबल वार्मिंग की श्रेणी में रखा जाता था और पिछ्ले १०० साल में अब तक ०.४ सेल्सियस की बढोतरी हो चुकी है जो बहुत खतरनाक है।
तो उसके लिये आयें सबसे पहले मौसम और जलवायु के अंतर को समझना होगा।
पोलर बियर का भविष्य अंधकार में....
Wrangel Island पर इन पोलर बियर’स कब भविष्य अंधकार में है। क्या आपको लगता है कि ये खुबसुरत जानवर "ग्लोबल वार्मिंग" से बच पायेगा????? (अप्रैल २००८)
Wrangel Island पर इन पोलर बियर’स कब भविष्य अंधकार में है। क्या आपको लगता है कि ये खुबसुरत जानवर "ग्लोबल वार्मिंग" से बच पायेगा????? (अप्रैल २००८)
मौसम स्थानीय और अल्पकालिक होता है, मान लीजिये की आप कश्मीर में है और वहां बर्फ़ गिर रही है तो उस मौसम और बर्फ़ का असर सिर्फ़ कश्मीर और उसके आसपास के इलाकों में ही रहेगा सिर्फ़ उन इलाको में ही ठंड बढेगी। जलवायु की अवधि लम्बी होती है और ये एक छोटे से स्थान से संबंधित नही है। एक क्षेत्र की जलवायु समय की एक लंबी अवधि में एक क्षेत्र के औसत मौसम की स्थिति है।
इस पैनल में तापमान के हाल के बदलाव पर जलवायु परिवर्तन के निष्कर्षों, समुद्र के स्तर पर, और बर्फ कवर पर साभार :- आईपीसी सेकेटरिस्ट / विश्व मौसम विज्ञान संगठन
यें जानना ज़रुरी है की जब हम लम्बी अवधि की जलवायु की बात करते है तो उसका मतलब होता है बहुत लम्बी अवधि, यहां तक की कई सौ साल भी बहुत कम अवधि है जलवायु में आने के लिये। वास्तव में, जलवायु में परिवर्तन होते-होते कभी-कभी दसियों से हज़ारों वर्ष लग जाते है। इसका मतलब है की अगर एक सर्दी में बर्फ़ नही गिरी और ठंड नही पडीं---और एक साथ दो-तीन सर्दियों में ऐसा हो जाये----तो इससे जलवायु में परिवर्तन नहीं होता है, ये तो एक विसंगति है--- एक घटना जो हमेशा की सांख्यिकीय सीमा के बाहर है लेकिन किसी भी दीर्घकालिक परिवर्तन का स्थायी प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
लेकिन ये हमें याद रखना चाहिये की छोटे-छोटे बदलावों का भी कभी-कभी बहुत प्रमुख प्रभाव हो सकता है। जब वैज्ञानिक "बर्फ़ युग" के बारे में बात करते है तो आप शायद सोचते है "जमी हुई धरती, बर्फ़ से ढकीं हुई और जमा देने वाला तापमान" पर पिछ्ले बर्फ़ युग के दौरान (लगभग ५०,००० से १००,००० साल पहले) धरती का औसत तापमान ५ सेल्सियस ठंडा था आज के औसत तापमान से (सौजन्य से :- नासा)
ग्लोबल वार्मिंग मनुष्यों की गतिविधियों के परिणाम के रुप में समय की एक अपेक्षाकृत कम अवधि में पृथ्वी की जलवायु के तापमान में एक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. विशिष्ट शब्दों में सौ या दौ सौ साल में, १ सेल्सियस या अधिक की व्रद्धि को ग्लोबल वार्मिंग की श्रेणी में रखा जाता है, और पिछ्ले सौ साल में ०.४ सेल्सियस बढ चुका है जो की बहुत महत्वपुर्ण है। इंटरगव्रमेंट्ल पैनल आन क्लायमेट चेंन्ज Intergovermental Panel on Climate Change (IPCC), पुरी दुनिया के २५०० वैज्ञानिकों का एक समुह की मिटिंग फ़रवरी २००७ में पेरिस में हुई थी जलवायु के परिवर्तन को जाचंने तथा अत्याआधुनिक रिसर्च के लिये। वैज्ञानिकों ने बताया की १९०१ से २००० के दौरान पृथ्वी का तापमान ०.६ सेल्सियस बढ चुका है। जब टाइम फ़्रेम को ५ साल आगे बढाया गया १९०६ से २००६ तक तो तापमान में ०.७४ सेल्सियस बढ चुका है।
अपनी जांच रिपोर्ट में IPCC ने ये बातें और कही :-
- पिछ्ले १२ वर्षों में से ११ को सबसे गर्म सालों में गिना गया है सन. १८५० के बाद से.
- पिछ्ले ५० वर्षों की वार्मिंग प्रव्रति लगभग दोगुना है पिछले १०० वर्षों के मुकाबले, इसका अर्थ है की वार्मिंग प्रव्रति की रफ़तार बढ रही है।
- समुद्र का तापमान ३००० मीटर (लगभग ९,८०० फ़ीट) की गहराई तक बढ चुका है; समुंद्र जलवायु के बढे हुऎ तापमान की गर्मी का ८० प्रतिशत सोख लेते है।
- उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में ग्लेशियर और बर्फ़ ढकें क्षेत्रों में कमी हुई है जिसकी वजह से समुंद्र का जलस्तर बढ गया है।
- अंटार्टिका का औसत तापमान पृथ्वी के औसत तापमान से दोगुनी रफ़्तार से बढ रहा है पिछले १०० वर्षों से।
- अंटार्टिका में बर्फ़ जमे हुऎ क्षेत्र में ७ प्रतिशत की कमी हुई है जबकि मौसमी कमी की रफ़्तार १५ प्रतिशत तक हो चुकी है।
- उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से, उत्तरी युरोप और उत्तरी एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश ज़्यादा हो रही है जबकि भूमध्य और दक्षिण अफ्रीका में सुखे के रुझान बढते जा रहे हैं।
- पश्चिमी हवायें बहुत मज़बुत होती जा रही हैं।
- सुखे की रफ़्तार तेज होती जा रही है, भविष्य में ये ज़्यादा लम्बे वक्त तक और ज़्यादा बडे क्षेत्र में होंगे।
- उच्चतम तापमान में बहुत महत्वपुर्ण बदलाव हो रहे हैं---गर्म हवायें और गर्म दिन बहुत ज़्यादा देखने को मिल रहे है जबकि ठंडे दिन और ठंडी रातें बहुत कम हो गयी है।
- अटलांटिक संमुद्र की सतह के तापमान में व्रद्धि की वजह से कई तुफ़ानों की तीव्रता में व्रद्धि देखी गयी है हांलकि उष्णकटिबंधीय तुफ़ानों की सख्यां में व्रद्धि नही हुई है।
जलवायु में प्राकृतिक परिवर्तन
प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी की जलवायु को एक डिग्री ठंडा या गर्म होने के लिये हज़ारों साल लग सकतें हैं। हिम-युग चक्र में पृथ्वी की जलावायु में जो बदलाव होते है वो ज्वालामुखी गतिविधि के कारण होती है, वन जीवन मे बदलाव, सुर्य के रेडियेशन में बदलाव तथा और प्राकृतिक परिवर्तन, ये सब कुदरत का जलवायु चक्र है।
ग्रीनहाउस प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि के कारण होता है। वैसे ग्रीनहाउस प्रभाव कोई बुरी चीज़ नही है अपने-आप में---ये पृथ्वी को जीवन के लायक बनाये रखने के लिये गर्म रखता है।
वैसे तो ये एक उम्दा ऎनोलोजी नही है, मान लीजिये पृथ्वी आपकी कार की तरह है जो दोपहर के वक्त धुप में पार्किंग में खडी है। आपने गौर किया होगा की जब आप कार में बैठते है तो कार का तापमान बाहर के तापमान से ज़्यादा गर्म होता है थोडे वक्त तक। जब सुर्य की किरणें आपकी कार की खिडकियों से अन्दर प्रवेश करती है तो सुर्य की कुछ गर्मी कार की सीट्स, कारपेटस, डेशबोर्ड और फ़्लोर मेटस सोख लेते है, जब ये सब चीज़े उस सोखी हुई गर्मी को वापस बाहर फ़ेंकते है तो सारी गर्मी खिडकियों से बाहर नही जाती कुछ वापस आ जाती है। सीटों से निकली गर्मी का तरंगदैर्य(Wavelength) उन सुर्य की किरणों के तरंगदैर्य(Wavelength) से अलग होता है जो पहली बार कार की खिडकी से अन्दर आयीं थी, तो अन्दर ज़्यादा ऊर्जा आ रही है और ऊर्जा बाहर कम जा रही है। इसके परिणाम में आपकी कार के तापमान में एक क्रमिक वृद्धि हुई।
आपकी गर्म कार के मुकाबले ग्रीनहाउस प्रभाव थोडा जटिल है, जब सुर्य की किरणें पृथ्वी के वातावरण और सतह से टकराती है तो ७० प्रतिशत ऊर्जा पृथ्वी पर ही रह जाती है जिसको धरती, समुंद्र, पेड तथा अन्य चीज़े सोख लेती है। बाकी का ३० प्रतिशत अंतरिक्ष में बादलों, बर्फ़ के मैदानों, तथा अन्य रिफ़लेक्टिव चीज़ो की वजह से रिफ़लेक्ट हो जाता है (स्त्रोत :- नासा ) परन्तु जो ७० प्रतिशत ऊर्जा पृथ्वी पर रह जाती वो हमेशा नही रहती (वर्ना अब तक पृथ्वी आग का गोला बन चुकी होती)। पृथ्वी के महासागर और धरती अकसर उस गर्मी को बाहर फ़ेंकते रहते है जिसमें से कुछ गर्मी अंतरिक्ष में चली जाती है बाकी यहीं वातावरण में दुसरी चीज़ों द्वारा सोखने के बाद समाप्त हो जाती है जैसे कार्बन डाई-आक्साइड, मेथेन गैस, और पानी की भाप। इन सब चीज़ों के ऊर्जा को सोखने के बाद बाकी ऊर्ज़ा गर्मी के रूप में हमारी पृथ्वी पर मौजुद रहती है। ये गर्मी जो पृथ्वी के वातावरण में मौजुद रहती है वो पृथ्वी को गर्म रखती है बाहर के वातावरण के मुकाबले, क्यौंकी जितनी ऊर्जा वातावरण में प्रवेश कर रही है उतनी बाहर नही जा रही है और ये सब क्रियायें ग्रीनहाउस प्रभाव का भाग है जिसके परिणाम में पृथ्वी गर्म रह्ती है।
पृथ्वी बगैर ग्रीनहाउस प्रभाव के
पृथ्वी का स्वरुप बगैर ग्रीनहाउस प्रभाव के कैसा होगा? पृथ्वी बिल्कुल "मंगल ग्रह" की तरह दिखेगी। मंगल ग्रह का अपना मोटा पर्याप्त वातावरण नही है जो गर्मी को वापस ग्रह पर रिफ़लेक्ट कर सकें, इस वजह से वहां बहुत ठंड है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है की हम मंगल ग्रह के वातावरण में बदलाव आ सकता है अगर फ़ैक्ट्रियों को वहा भेज दिया जायें जिससे वहां पर कार्बन डाई-आक्साइड और पानी की भाप हवा में मिल जायेगी और जैसे जैसे इन दोनो चीज़ों की मात्रा बढेगी तो वहां का वातावरण मज़बुत और मोटा होने लगेगा जिससे वहां पर गर्मी पैदा होगी और तो पोंधों के फ़लने लायक वातावरण तैयार हो सकता है। अगर एक बार पोधें मंगल ग्रह की धरती पर फ़ैल गये तो वो आक्सीज़न का निर्माण होने लगेगा तो कोई सौ या हज़ार साल बाद ऐसा वातावरण तैयार हो जायेगा की मनुष्य वहां पर चहलकदमी कर सकें------सारा धन्यवाद ग्रीनहाउस प्रभाव को।
ग्लोबल वार्मिंग : क्या हो रहा है?
ग्रीनहाउस प्रभाव वातावरण की कुदरती प्रक्रिया है लेकिन बदकिस्मती से जब से औघोगिक क्रांति हुई है इन्सान नें बहुत बडी मात्रा में कुछ पदार्थ हवा में छोडने शुरु किये है तब से ये प्रक्रिया गडबडा गयी है।
कार्बन डाई-आकसाइड (CO2) ये एक रंगहीन गैस है जो कार्बनिक पदार्थ के दोहन से पैदा होती है ये हमारी पृथ्वी के वातावरण का ०.०४ प्रतिशत ही है। ये इस ग्रह के जीवन बहुत पहले से ज्वालामुखी गतिविधि से पैदा होती थी लेकिन आज मानव गतिविधियों से बहुत बडी मात्रा में CO2 वातावरण में छोडी जा रही है जिसके परिणामस्वरुप पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई-आक्साइड की मात्रा बहुत तेज़ी से बढती जा रही है {स्त्रोत :- कीलिंग, सी.डी. और टी.पी. वोर्फ़. (Keeling. C.D. And T.D. Whorf)}। इसकी मात्रा में अत्यधिक व्रद्धि ही सबसे मुख्य कारण है ग्लोबल वार्मिंग का क्योंकी कार्बन डाई-आकसाइड अवरक्त विकिरण को अवशोषित करता है। पृथ्वी के वातावरण में आने वाली ऊर्जा इसी रुप में पृथ्वी के वातावरण से बाहर जाती है, तो ज़्यादा CO2 का मतलब ज़्यादा अवशोषण और पृथ्वी के तापमान में व्रद्धि।
शिष्टाचार :- NOAA, Dave Keeling and Tim Whorf (Schipps Institution of Oceanography)
मौना लुआ, हवाई में मापी गयी कार्बन डाइऑक्साइड एकाग्रता
नाएट्रोजन ऑक्साइड (NO2) एक और महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है हालंकि ये गैस CO2 के मुकाबले मानव गतिविधियों से कम उत्सर्जित होती है। नाएट्रोजन ऑक्साइड (NO2) CO2 से २७० गुना ज़्यादा उर्जा सोखती है। इस कारण से, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने के प्रयास में इस गैस का दुसरा स्थान है [स्रोत: भूमि संरक्षण परिषद, कनाडा Soil Conservation Council of Canada ]
मेथेन एक दहनशील गैस है, और यह एक प्राक्रतिक गैस का मुख्य घटक है, मेथेन स्वाभिविक रुप से कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के माध्यम से होता है और अक्सर ये "SWAMP GAS" के रूप में सामने आता है। इन मानवीय किर्याओं से मेथेन का उत्पादन होता है।
- कोयले के निकालने से,
- पशुऒं के बडें झुडों से अर्थात पाचन गैसों से,
- चावल के खेत में मौजुद बैक्टिरिया से,(Paddies)
- धरती में कचरे के अपघटन से (Landfill)
मेथेन वातावरण में कार्बन डाईआकंसाइड की तरह काम करती है, अवरर्क्त ऊर्जा को अवशोषित करती है और पृथ्वी को गर्म रखती है। IPCC के अनुसार २००५ में वातावरण में मेथेन का स्तर १,७७४ हिस्से था प्रति अरब पर (PPM) हालंकि मेथेन की मात्रा कार्बन डाईआकंसाइड की तरह ज़्यादा नही है वातावरण में लेकिन मेथेन CO2 के मुकाबले २० गुना ज़्यादा गर्मी को सौखती है।
ग्लोबल वार्मिंग का असर हमारी जीवन शैली पर
आप लोगो को क्या लगता है की ग्लोबल वार्मिंग का हमारी जीवन शैली पर अब तक क्या असर पडा है? आप लोग कहेंगे की बहुत असर पडा है गर्मी बढ गयी है, बारिश नही हो रही है, वगैरह वगैरह। मैं आपको एक सच से अवगत कराता हूं की ग्लोबल वार्मिंग का हमारे ऊपर सिर्फ़ एक असर पडा और वो यह है की हमारा खर्च बढ गया है.....कैसें? मैं आपको बताता हूं......
जैसे-जैसे गर्मी बढी जिनके यहां ए.सी. नही उन्होने ए.सी. ले लिया, जिनके आफ़िस या दुकान में कुलर नही था उन्होने कुलर लगा लिया तो बिजली का खर्च बढ गया। जब सडक पर मोटरसाईकिल पर गर्मी बर्दाश्त नही हुई तो जैसे-तैसे पैसे का इन्तेज़ाम करके या सबसे आसान काम करके लोन लेकर कार ले ली और कहा "चलो गर्मी से तो बचे"...गर्मी तो बहुत बढती जा रही है....एक आदमी अकेला भी कहीं जाता है तो कार लेकर जाता है जबकि चाहे तो घर में खडी मोटरसाईकिल लेकर जा सकता है लेकिन नही हम लोग तो दिखावे और विलासिता में अंधे होते जा रहे है..हम ४० किलोमीटर प्रति लीटर चलने वाली और सडक पर कम जगह घेरने वाली, आसानी से हर जगह जाने वाली गाडी छोडकर उस गाडी को चला रहें है जो ८-१० किलोमीटर प्रति लीटर में चलती है, सडक पर ज़्यादा जगह घेरती है, हर जगह आसानी से नही जाती, और हलकी सी टक्कर होने पर बहुत खर्चा कराती है...
अकेले यु.पी. में २००८ के मुकाबले २००९ में तीन गुना ए.सी. खरीदे गये...तो बाकी देश का क्या हाल होगा...
देश के कई प्रदेश पीने के पानी के लिये तरस रहे है लेकिन आज भी उन लोगो की तादाद बहुत ज़्यादा है जो पानी को बर्बाद करते है..लोग शेव और ब्रश करते वक्त नल को खुला छोड देते है...अरे जब इस्तेमाल नही कर रहे हो तो बन्द कर दो लेकिन नही कौन दोबारा खोले...बार-बार खोलो और बार-बार बन्द करो इतना काम कौन करे....पानी हमारे पास बहुत....उन लोगो से पुछिये जो एक-एक बूंद पानी के लिये अपना खुन तक बहा रहे है लेकिन हम अपने बाथटब में मज़े से लेटकर पानी से खेल रहे है....
इस कोड को अपने ब्लोग के साइड बार में लगायें और लोगो को ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरुत करें |
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इस विषय पर बहुत विस्तृत जानकारी प्रदान की है। आभार।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अरे काशिफ़ बहुत विस्तार से जानकारी दी है तुमने....मुझे नही पता था की तुम इतने जानकार हो
जवाब देंहटाएंअरे यार काशिफ़ मुझे नही पता था की तुम इतने ज़्यादा जानकार हो....
जवाब देंहटाएंहम तो तुम्हे ऐवंई समझते थे लेकिन अब जाकर एहसास हुआ की हम गलत थे
hame prathvi par van ka vikas karna chahiye
जवाब देंहटाएंBahut achhi jankari iske bare me
जवाब देंहटाएंThanks very much.
Bahut achhi jankari iske bare me
जवाब देंहटाएंThanks very much.
Nice
जवाब देंहटाएंnice thing about global warming
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लेख, धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंfundabook.com पर प्रकाशित लेख इस लिख में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को रोकने के लिए 10 आसान उपाय दिए गये है. यह उपाय बहुत ही साधारण से हैं जिन्हें अपनी दैनिक आदतों में शामिल करके हम भी पर्यावरण संरक्षण में अपना बहुमूल्य योगदान दे सकते हैं. ये हैं वे 10 आसान उपाय: https://goo.gl/OqKVE9
जवाब देंहटाएंThank you sir jo apne mujhe itni achhi baten global warming ke bare me batayaa so so thanks.
जवाब देंहटाएंग्लोबल वार्मिंग की जानकारी शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंDownload kaise hoga bataye
जवाब देंहटाएंAccha samjhane ki koshKoshki aap ne
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंReally very nice information is given.....
जवाब देंहटाएंThanks a lot Sir
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जवाब देंहटाएंyeh website bahut hi aachi h m is par news roj padta hu padkar muje bahut hi aacha lagta h m bhi block likhta hu
जवाब देंहटाएंDaily News Online
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जवाब देंहटाएंnice article keep sharing with us
जवाब देंहटाएंglobal warming kya hota hai