रविवार, 31 अगस्त 2008

भगवान का शाब्दिक अर्थ यह है !!

भगवान का शाब्दिक अर्थ है :- पति यानी के शौहर

भगवान दो शब्दों से बना है (भग+वान) भग से तात्पर्य स्त्री का जनन अंग, और वान से तात्पर्य उसको रखने वाला मतलब उसका पति ठीक उसी तरह जैसे बलवान (बल+वान) का अर्थ बल को रखने वाला है ।

मैंने अपनी काम विकृत अश्लील बुद्धि यहाँ नही चलायी है, मैंने वही लिखा है जो मुझे पता लगा और मेरी नज़र में सही है।
हाँ यह बात सही है की यह मेरी भी शंका थी लेकिन यह शंका उस शख्स के सवाल के बाद ही पैदा हुई थी। और जब से मुझे इस बारे में पता लगा है मैंने ईश्वर के हर अवतार को भगवान कहना बंद कर दिया है कोई और यकीन करे या नही लेकिन मैं करता हूँ।

मैं झूठ बोलने में यकीन नही रखता हूँ मैंने कोई कहानी नही सुनाई है मैं उस शख्स का ईमेल एड्रेस आपको दे सकता हूँ उससे आप ख़ुद बात कर सकते है!

जय हिंद !

63 टिप्‍पणियां:

  1. बन्धु, आप की बुद्धि पर तरस खाने के अलावा और क्या किया जाए? यह पाँचवीं कक्षा का जवाब लगता है।
    संस्कृत में भगः शब्द है जिस के अर्थ हैं -सूर्य के बारह रूपों में से एक, चन्द्रमा, शिव का रूप, अच्छी किस्मत, प्रसन्नता, सम्पन्नता, समृद्धि, सम्पन्नता, मर्यादा, श्रेष्ठता, प्रसिद्धि, कीर्ति, लावण्य, सौन्दर्य, उत्कर्ष, श्रेष्टता, प्रेम, स्नेह, सद्गुण, प्रेममय व्यवहार, आमोद-प्रमोद, नैतिकता, धर्मभावना, प्रयत्न, चेष्ठा, सांसारिक विषयों में विरति, सामर्थ्य, सर्वशक्तिमता, और मोक्ष, और योनि भी। मगर योनि केवल स्त्री जननांग को ही नहीं, उद्गम स्थल, और जन्मस्थान को भी कहते हैं।
    यह जगत जिस योनि से उपजा है उसे धारण करने वाले को भगवान कहते हैं।
    आप के अर्थ को भी लें तो योनि का स्वामित्व तो स्त्री का ही है। इस कारण से स्त्री ही भगवान हुई न कि उस का पति।

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    1. यह जगत जिस योनि से उपजा है उसे धारण करने वाले को भगवान कहते हैं।
      फिर भगवती के लिए आपका क्या कहना है?

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    2. जैसे जैन कैवल्य ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति को तीर्थंकर या अरिहंत कहते हैं। बौद्ध संबुद्ध कहते हैं वैसे ही हिंदू भगवान कहते हैं। भगवान का अर्थ है जितेंद्रिय। इंद्रियों को जीतने वाला। भगवान का अर्थ ईश्वर नहीं और जितने भी भगवान हैं वे ईश्वर कतई नहीं है। ईश्वर या परमेश्वर संसार की सर्वोच्च सत्ता है।

      भगवान शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से बना है। जिसने पांचों इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है तथा जिसकी पंचतत्वों पर पकड़ है उसे भगवान कहते हैं। भगवान शब्द का स्त्रीलिंग भगवती है। वह व्यक्ति जो पूर्णत: मोक्ष को प्राप्त हो चुका है और जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता है वह भगवान है। परमहंस है।

      भगवान को ईश्‍वरतुल्य माना गया है इसीलिए इस शब्द को ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के रूप में भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है।

      भगवान शब्द का उपयोग विष्णु और शिव के अवतारों के लिए किया जाता है। दूसरा यह कि जो भी आत्मा पांचों इंद्रियो और पंचतत्व के जाल से मुक्त हो गई है वही भगवान कही गई है। इसी तरह जब कोई स्त्री मुक्त होती है तो उसे भगवती कहते हैं। भगवती शब्द का उपयोग माँ दुर्गा के लिए भी किया जाता है। इसे ही भागवत मार्ग कहा गया है।

      भगवान (संस्कृत : भगवत्) सन्धि विच्छेद: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ
      भ = भूमि
      अ = अग्नि
      ग = गगन
      वा = वायु
      न = नीर
      भगवान पंच तत्वों से बना/बनाने वाला है।

      यह भी जानिए....
      भगवान्- ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य- ये गुण अपनी समग्रता में जिस गण में हों उसे 'भग' कहते हैं। उसे अपने में धारण करने से वे भगवान् हैं। यह भी कि उत्पत्ति, प्रलय, प्राणियों के पूर्व व उत्तर जन्म, विद्या और अविद्या को एक साथ जानने वाले को भी भगवान कहते

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    3. जैसे जैन कैवल्य ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति को तीर्थंकर या अरिहंत कहते हैं। बौद्ध संबुद्ध कहते हैं वैसे ही हिंदू भगवान कहते हैं। भगवान का अर्थ है जितेंद्रिय। इंद्रियों को जीतने वाला। भगवान का अर्थ ईश्वर नहीं और जितने भी भगवान हैं वे ईश्वर कतई नहीं है। ईश्वर या परमेश्वर संसार की सर्वोच्च सत्ता है।

      भगवान शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से बना है। जिसने पांचों इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है तथा जिसकी पंचतत्वों पर पकड़ है उसे भगवान कहते हैं। भगवान शब्द का स्त्रीलिंग भगवती है। वह व्यक्ति जो पूर्णत: मोक्ष को प्राप्त हो चुका है और जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता है वह भगवान है। परमहंस है।

      भगवान को ईश्‍वरतुल्य माना गया है इसीलिए इस शब्द को ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के रूप में भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है।

      भगवान शब्द का उपयोग विष्णु और शिव के अवतारों के लिए किया जाता है। दूसरा यह कि जो भी आत्मा पांचों इंद्रियो और पंचतत्व के जाल से मुक्त हो गई है वही भगवान कही गई है। इसी तरह जब कोई स्त्री मुक्त होती है तो उसे भगवती कहते हैं। भगवती शब्द का उपयोग माँ दुर्गा के लिए भी किया जाता है। इसे ही भागवत मार्ग कहा गया है।

      भगवान (संस्कृत : भगवत्) सन्धि विच्छेद: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ
      भ = भूमि
      अ = अग्नि
      ग = गगन
      वा = वायु
      न = नीर
      भगवान पंच तत्वों से बना/बनाने वाला है।

      यह भी जानिए....
      भगवान्- ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य- ये गुण अपनी समग्रता में जिस गण में हों उसे 'भग' कहते हैं। उसे अपने में धारण करने से वे भगवान् हैं। यह भी कि उत्पत्ति, प्रलय, प्राणियों के पूर्व व उत्तर जन्म, विद्या और अविद्या को एक साथ जानने वाले को भी भगवान कहते

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    4. भगवान नाम की कोई चीज इस पूरी धरती पर नही है लोगों के अन्दर फालतू का भय पैदा किया जा रहा ह

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    5. Bhagwan to kan kan me vyapt hai but use dekhne ke liye kuch karna bhi padta hai.
      Actually kuch murkhon ne yane jisse kuch Kiya nhi hota wo yahi kehte hai ki bhagwan hai hi nhi
      Are common Sense ki bat hai yaha kuch bhi pane k liye tyag aur mehnat krni padti hai.
      But log chahte hai kuch kre nhi n bhagwan mil Jaye aise logo ki soch hai😃😃😃😃

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    6. भग को भोगने वाले पुरुष शरीर को ही भगवान कहते हैं

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    7. भग + वान = भगवान
      भग का मालिक पति
      बल वान
      धन वान
      ऐश्वर्य वान

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  2. योनि
    प्रेत योनी मनुष्य योनी

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    1. योनि का मतलब भग । भग का मतलब महिला का जननांग ।

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    2. आत्मा के बारे में जानते हो आप की आत्मा कौन है क्या है किसका प्रतिनिधित्व करती हैं शिवाण्ड में ? आत्मा का प्रतिनिधित्व शिवाण्ड में जिन्हें सूर्य यानी पुरुष ग्रह जिसे हम कहते हैं वो असल में यानी स्त्री शक्ति यानी अग्नि शक्ति यानी आत्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं । स्त्री शक्ति ग्रह में 9 रंगों यानी 9 प्रकार की आत्मायें होती हैं । अब कई ग्रह और उपग्रह हैं । उन उपग्रह और ग्रह के अंदर भी स्त्री शक्ति यानी मैग्मा यानी लावा यानी अग्नि शक्ति भी आत्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं ? यानी महिलाएँ ही आत्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं । अभी मैंने इंस्टाग्राम पर पढ़ा कि पूरे दुनिया मे 5000 भाषाएँ बोली जाती हैं ? इसका मतलब ये हुआ कि 5000 प्रकार की आत्मायें होती हैं ?पुरुष में उसकी माँ की आत्मा होती हैं ? और पिता के माँ की आत्मा होती हैं ? यानी दादी की आत्मा ?

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    3. भूत, प्रेत, जिन्न उसे कहते हैं जो अकारण किसी को तंग करे मारे प्रताड़ित करे ? मनुष्य उसे कहते है जो सभी का ख्याल रखते हों यानी जो कहते हों वही करते हों ?

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    4. आत्मा कल्पित है
      उसे जो मान लेता है वह ज्ञानी ?

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    5. Gwar bhagwan ka matlab hota hai joh 6 aishvarya ko anant matra me bhogte hai aur woh keval shri krishna hai parashar muni ke anushar vishnu puran padhlo bhagwat kahti hai keval krishna hi parambhagwan hai ya rama kyu ki krishna hi trata yuga me rama bante hai sabut garga samhita ramayana bhagwat krishna golok dham me rahte hai aur woh sabse upar hai krishna mahavishnu ke papa hai

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  3. यह मूर्खतापूर्ण विचार और पोस्ट है...आप की बुद्धि पर तरस खाने के अलावा और क्या क्या किया जाए?आप अपनी काम विकृत अश्लील बुद्धि यहाँ नही चला ...........

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  4. कथित हिन्दुस्तानी जी, अपनी विचित्र सोच के मालिक आप होलें, क्योंकि इसे कोई बदल नहीं सकता लेकिन हिन्दुस्तान पर तो रहम करें। लानत है।
    आपकी इस विकृति की स्वीकृति नहीं है, सच्चे हिन्दुस्तानियों में।

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  5. बन्धु,
    अब जब आपके अज्ञान का परदा हट ही गया है तो क्यों न अपनी गलती के लिए क्षमा मांग लें और अपने ईमेल वाले अज्ञानी मित्र का भी पथ प्रदर्शन करें. क्या ख़याल है?

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  6. अरे बाप रे! ये तो आज पता चला. हे भगवान.

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  7. भइया मुझे तो भगवन के होने पर ही संदेह होता है कभी कभी.. अज्ञानी होने की बात स्वीकारती हूँ..और यह भी की मैं नास्तिक हूँ .बाकि मैंने संस्कृत भी मतलब भर पढ़ी है.सो मुझे क्या पता शब्द और शब्दार्थ

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    1. lovely ji bhagwan ke hone par sandeh kyoun, aap agyani nahi ho anyatha apna sandeh prakat nahi karti aur raha nastikta ka sawal to aaj darm ya aastikta se jyada khatra aur kisi cheej se nahi, aur raha sawal sanskrit ka to kisi bhasa ka gyan na hote huwe bhi yah prakrti ya jeev hamse jyada gyani aur vaigyanik hai

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    2. भगवान का मतलब जिस पुरुष का आध्यात्मिक रूप से भूमि, गगन, वायु, नीर पर नियंत्रण हो उसे भगवान कहते हैं । जैसे परम पुरूष भगवान शिव जो मर्यादित,अनुशाषित परम पिता परमेश्वर हैं जिनका भूमि, गगन, वायु, नीर पर नियंत्रण हैं वे ही अदृश्य रूप में भगवान हैं और वो हिमालय के अपने घर में योगनिद्रा में लीन हैं ।

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  8. हिन्दुस्तानी जी, आपका कोई नाम तो होगा. अपने नाम से पोस्ट करें तो अच्छा होगा. स्वयं को हिन्दुस्तानी कह कर और भगवान की ऐसी परिभाषा करके दूसरे हिन्दुस्तानियों को भी घसीट रहे हैं आप अपने साथ. मुझे नहीं लगता कोई हिन्दुस्तानी जुड़ना चाहेगा आपके साथ इस प्रलाप में.

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  9. दुनिया में अलग-अलग तरह से सोचने वालों की कमी नहीं हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की जो चीजे स्थापित हैं ,उनको भी छेडा जाए / दर -असल इस क्षेत्र में आपसे मैं और अधिक अध्ययन की अपेक्षा रखता हूँ/ रही बात अपनी चीजों की सही मानाने की तो यह तो आपका अधिकार हो सकता है , लेकिन कुछ शाश्वत तथ्यों पर कलम चलने से पहले बेहतर है की गंभीर अध्ययन किया जाए /

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  10. मैंने जानबूझ कर इस पोस्ट पर कोई कमेन्ट नहीं दिया (वैसे भी जो कहना था पिछली पोस्ट में कह चुका था). द्विवेदीजी, वडनेरकरजी, बोधिसत्वजी, त्रिपाठी जी,त्रिवेदीजी, गुप्ताजी एवं स्मार्ट इंडियन के जवाबों से आपको कुछ प्रेरणा मिली होगी.
    आशा है की आप भारतीय दर्शन के बारे में जानने को अधिक उत्सुक होंगे.

    अगर आप अधिक जानना चाहें तो स्वामी विवेकानंद, श्रीअरबिंदो, राधाकृष्णन या ओशो रजनीश की पुस्तकों से अध्ययन आरम्भ कर सकते हैं.

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  11. जड़ चेतन गुन दोषमय विश्व कीन्ह करतार
    संत हंस गुन गहहि पय परिहरि बारि बिकार

    आपने एक ही शब्द लेकर भगवान की व्याख्या कर दी.जैसे कनक शब्द के दो अर्थ है सोना और धतूरा
    आप की ये पोस्ट निश्चित ही निराधार है.

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  12. भगवान= बनाने वला
    भग= योनि + वान = लिंग = भगवान
    इस से निर्माण हुआ शरीर का
    शरीर के निर्माता ही भगवान हैं शरीर
    निर्माता माता पिता ही असली भगवान हैं ।

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    उत्तर
    1. भगवान
      भग का अर्थ + दुनिया
      वान का अर्थ + ड्राइवर
      मतलब पूरी दुनिया को चलाने वाला

      हटाएं
  13. संदेह उत्तम है ।यहाँ तक भी सब लोग नहीं पहुँच पाते ।रास्ता सही है छोडें नहीं .......समाधान खोजते रहे ।यह स्वयं जानने का विषय है।

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  14. भगवान् शब्द का शाब्दिक अर्थ “
    धम्म भाषा पली में ‘भगवान’ शब्द का अर्थ इश्वर नहीं बल्कि जिसने तृष्णाओं को भंग कर दिया हो वह भगवान् है
    बुद्ध धम्म की सबसे बडी विशेषता उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण है , बुद्ध धम्म परलोक वाद , ईशवरवाद और आत्मा की सत्ता मे यकीन नही करता । विशव मे फ़ैले अनगिन्त धर्मों मे से बुद्ध धम्म अपनी अलग छवि रखता है और यह छवि बुद्ध के वैज्ञानिक दृष्टिकोण में है । लेकिन फ़िर भी यह एक ताज्जुब सा लगता है कि बुद्ध धम्म के अनुयायी गौतम बुद्ध को भगवान् की उपाधि देते हैं । यह उपाधि बुद्ध की उन शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है जिसमें उन्होनं कहा है :
    न हेत्थ देवो ब्रह्मा वा , संसारस्सत्थिकारको ।
    सुद्ध्धम्मा पवतन्ति , हेतुसम्भार्पच्चया ॥
    (विसुद्धि २१६८९,पच्चयपरिग्गहकथा )
    संसार का निर्माण करने वाला न कोई देव है न ब्रम्हा । हेतु-प्रत्यय यानि कारणॊं पर आधारित मात्र शुद्ध धर्म प्रवतरित हो रहे हैं ।
    तुम्हेहि किच्चमातप्पं , अक्खातारो तथागता ॥
    धम्मपद २७६, मग्गवग
    मैं तो मार्ग आख्यात करता हूँ, तुम्हारी मुक्ति के लिये तपना तो तुम्हें ही पडेगा ।
    ईशवरीय सत्ता के अभाव में मानव जीवन कैसे अपनी जीवन यात्रा आरम्भ करे । बुद्ध ने इस पर कहा कि तुम स्वालम्बी बनॊ । (अत्तदीपा भवथ अत्तसरणा ) । तुम ही अपने स्वामी हो ( अत्ता हि अत्तनो नाते ) । किसी भी पर्वत , वन , आराम , वृख्श , चैत्य आदि को देवता मानकर उसकी शरण मे मत जाओ क्योंकि इनसे दु:ख मुक्ति संभव नही है ।
    भगवान् शब्द का शाब्दिक अर्थ
    आम भाषा में भगवान शब्द का अर्थ है ईशवर या परमात्मा , सर्वशक्तिमान , सृष्टि का रचयिता , पालनहारक और इसका संहार करने वाला जिसका नाम जपने से , ध्यान लगाने से वह प्रसन्न हो जाता है और भक्तो के पापों को क्षमा करके उन्हें भवसागर से पार निकाल लेता है ।
    लेकिन फ़िर बुद्ध अनुयायियों द्वारा बुद्ध को भगवान् शब्द की उपाधि क्यूं । इसके लिये थोडा और गहराई में जाना पडेगा । पालि भाषा मॆ कई शब्द संस्कृत भाषा के अनुरुप ही हैं लेकिन कही-२ उनके शाब्दिक अर्थ अलग-२ हैं ।
    पालि भाषा मे भगवान् का अर्थ
    पालि का भगवान् अथवा भगवतं दो शब्दों से बना है – भग + वान् । पालि में भग मायने होता है – भंग करना , तोडना , भाग करना उपलब्धि को बांटना आदि और वान् का अर्थ है धारण्कर्ता , तृष्णा आदि । यानि जिसने तृष्णाओं को भंग कर
    दिया हो वह भगवान् ।

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    उत्तर
    1. बुद्ध और बौध्द और मुसलमान ये लोग नास्तिक हैं जो भगवान शिव को नहीं माने वे लोग नास्तिक हैं । नास्तिक मतलब जानवर। हिन्दू धर्म में पारिवारिक नियम है इसलिए आस्तिक है। जो धर्म में कोई पारिवारिक नियम नहीं है वे नास्तिक यानी जानवर हैं।

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. बिलकुल सही कहा आपने, मैं आपकी सारी बातो से सहमत हूँ, भगवान को ब्राह्मणो द्वारा बनाया गया एकमात्र अंधविश्वास हैं और कुछ नही

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    1. अंधविश्वास क्या होता है जिस वस्तु का ज्ञान न होने से उसको कुछ भी कहना

      हटाएं
  17. भगवान शब्द का अर्थ
    https://www.facebook.com/ARTOFRADHASKHI/
    भगवान शब्द की परिभाषा क्या है ? इसे जानने के लिए हमें उस शब्द पर विचार करना है । उसमें प्रकृति और प्रत्यय रूप २ शब्द हैं–भग + वान् .

    वान के अर्थ हुये वाला. तथा भग का अर्थ विष्णु पुराण ,६/५/७४ में बताया गया हैं:

    “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।”


    अर्थात सम्पूर्ण ऐश्वर्य , वीर्य ( जगत् को धारण करने की शक्तिविशेष ) , यश ,श्री ,समस्त ज्ञान , और परिपूर्ण वैराग्य के समुच्चय को भग कहते हैं। इस प्रकार भगवन शब्द से तात्पर्य हुआ उक्त छह गुणवाला, दुसरे शब्दों में ये छहों गुण जिसमे नित्य रहते हैं, उन्हें भगवान कहते हैं।
    भगोस्ति अस्मिन् इति भगवान्, यहाँ भग शब्द से मतुप् प्रत्यय नित्य सम्बन्ध बतलाने के लिए हुआ है । अर्थात् पूर्वोक्त छहों गुण जिनमे हमेशा रहते हैं, उन्हें भगवान् कहा जाता है | मतुप् प्रत्यय नित्य योग (सम्बन्ध) बतलाने के लिए होता है – यह तथ्य वैयाकरण भलीभांति जानते है—

    यदि भगवान शब्द को अक्षरश: सन्धि विच्छेद करे तो: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ
    भ धोतक हैं भूमि तत्व का, अ से अग्नि तत्व सिद्द होता है. ग से गगन का भाव मानना चाहिये. वायू तत्व का उद्घोषक है वा (व्+आ) तथा न से नीर तत्व की सिद्दी माननी चाहिये. ऐसे पंचभूत सिद्द होते है. अर्थात यह पंच महाभोतिक शक्तिया ही भगवान है. (जो चेतना (शिव) से संयुक्त होने पर दृश्मान होती हैं.)

    भगवान शब्द की अन्यत्र भी व्यांख्याये प्राप्त होती है जो सन्दर्भार्थ उल्लेखनीय हैं:

    “भूमनिन्दाप्रशन्सासु नित्ययोगेतिशायने |संसर्गेस्ति विवक्षायां भवन्ति मतुबादयः ||”
    -सिद्धान्तकौमुदी , पा.सू .५/२/९४ पर वार्तिक,

    और यही भगवान् उपनिषदों में ब्रह्म शब्द से अभिहित किये गए हैं और यही सभी कारणों के कारण होते है। किन्तु इनका कारण कोई नही। ये सम्पूर्ण जगत या अनंतानंत ब्रह्माण्ड के कारण परब्रह्म कहे जाते है । इन्ही के लिये वस्तुतः भगवान् शब्द का प्रयोग होता है—

    “शुद्धे महाविभूत्याख्ये परे ब्रह्मणि शब्द्यते । मैत्रेय भगवच्छब्दः सर्वकारणकारणे ।।” – विष्णुपुराण ६/५/७२
    यह भगवान् जैसा महान शब्द केवल परब्रह्म परमात्मा के लिए ही प्रयुक्त होता है ,अन्य के लिए नही

    “एवमेष महाशब्दो मैत्रेय भगवानिति । परमब्रह्मभूतस्य वासुदेवस्य नान्यगः ।।”
    –विष्णु पुराण,६/५/७६ ,
    इन परब्रह्म में ही यह भगवान् शब्द अपनी परिभाषा के अनुसार उनकी सर्वश्रेष्ठता और छहों गुणों को व्यक्त करता हुआ अभिधा शक्त्या प्रयुक्त होता है,लक्षणया नहीं । और अन्यत्र जैसे–भगवान् पाणिनि , भगवान् भाष्यकार आदि ।

    इसी तथ्य का उद्घाटन विष्णु पुराण में किया गया है—
    “तत्र पूज्यपदार्थोक्तिपरिभाषासमन्वितः । शब्दोयं नोपचारेण त्वन्यत्र ह्युपचारतः ।।”–६/५/७७,

    ओर ये भगवान् अनेक गुण वाले हैं –ऐसा वर्णन भगवती श्रुति भी डिमडिम घोष से कर रही हैं–
    “परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलाक्रिया च”—श्वेताश्वतरोपनिषद , ६/८,

    इन्हें जहाँ निर्गुण कहा गया है –निर्गुणं , निरञ्जनम् आदि,
    उसका तात्पर्य इतना ही है कि भगवान् में प्रकृति के कोई गुण नहीं हैं । अन्यथा सगुण श्रुतियों का विरोध होगा ।

    अत एव छान्दोग्योपनिषद् में भगवान् के सत्यसंकल्पादि गुण बतलाये गए–
    “एष आत्मापहतपाप्मा –सत्यकामः सत्यसङ्कल्पः” |–८/१/५,

    यः सर्वज्ञः सर्ववित्—मुण्डकोपनिषद् १/१/९ ,
    जो सर्वज्ञ –सभी वस्तुओं का ज्ञाता, तथा सर्वविद् – सर्ववस्तुनिष्ठसर्वप्रकारकज्ञानवान –सभी वस्तुओं के आतंरिक रहस्यों का वेत्ता है । इसलिए वे प्रकृति –माया के गुणों से रहित होने के कारण निर्गुण और स्वाभाविक ज्ञान ,बल , क्रिया ,वात्सल्य ,कृपा ,करुणा आदि अनंत गुणों के आश्रय होने से सगुण भी हैं ।

    ऐसे भगवान् को ही परमात्मा परब्रह्म ,श्रीराम ,कृष्ण, नारायण,शि ,दुर्गा, सरस्वती आदि भिन्न भिन्न नामों से पुकारा जाता है । इसीलिये वेद वाक्य है कि ” एक सत्य तत्त्व भगवान् को विद्वान अनेक प्रकार से कहते हैं–
    “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति .”

    ऐसे भगवान् की भक्ति करने वाले को भक्त कहा जाता है । जैसे भक्त भगवान के दर्शन के लिए लालायित रहता है और उनका दर्शन करने जाता है । वैसे ही भगवान् भी भक्त के दर्शन हेतु जाते हैं | भगवान ध्रुव जी के दर्शन की इच्छा से मधुवन गए थे –
    “मधोर्वनं भृत्यदिदृक्षया गतः “–भागवत पुराण ,४/९/१

    जैसे भक्त भगवान की भक्ति करता है वैसे ही भगवान् भी भक्तों की भक्ति करते हैं । इसीलिये उन्हे भक्तों की भक्ति करने वाला कहा गया है—
    “भगवान् भक्तभक्तिमान्”–भागवत पुराण–१० / ८६/५९

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    1. पुरुष होते हुए भी स्त्रीत्व को धारण करने वाला, अथवा स्वामी। द्वैत को अद्वैत मे समाता। सपूर्णता का द्योतक शब्द क्यूँ नहीं हो सकता भगवान?

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  18. Hello sweet soul . Bhagwan ish dhara per aaya hua Hai . Aur 1936 SE wo aapna karya kar raha Hai.unka karya Hai ish purani kalyugi sristi Koo nayi satyugi sristi banana. Mitro agar aap bhagwan SE milna chaste Hai too phir mail me or call me on bk23nikhil@gmail.com , 7891120968

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  19. Bhagwan shabd ka arth to adhyatm se yahi h bt jis bhagwan jo sab search kar rahe h vo anand h bas vo anand jo unlimited limit ka ho anant tym ke liye

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  20. मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि ब्याख्या उसकी की जा सकती है जिसकी सीमा हो, किन्तु जिसकी सीमा ही नही है जो अनन्त है उसकी ब्याख्या कैसे की जा सकती है।

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    उत्तर
    1. सीमा नई हे फिर भी भगवान नाम दे दिया ओर प्रभु ये उत्तर मेने भगवान शब्द का उत्तर को जताया था

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  21. भग का अर्थ दुनिया
    वान का अर्थ ड्राइवर
    पूरी दुनियां को चलाने वाला डा्ईवर अर्थात भगवान

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  22. भगवान= बनाने वला
    भग= योनि + वान = लिंग = भगवान
    इस से निर्माण हुआ शरीर का
    शरीर के निर्माता ही भगवान हैं शरीर
    निर्माता माता पिता ही असली भगवान हैं ।

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  23. भग शब्द सृष्टि को परिभाषित करता है ऑयर वान उसे स्वामित्व को दर्शाता है। जैसे कोचवान, बलवान, दयावान आदि आदि वैसे ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी को ही भगवान कहते हैं।

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  24. भग शब्द सृष्टि को परिभाषित करता है और वान उसके स्वामित्व को दर्शाता है अर्थात सृष्टि का स्वामी जैसे कोचवान, बलवान, दयावान आदि आदि वैसे ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी को ही भगवान कहते हैं।

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  25. भगवान दो शव्दों का मिल कर वना है भग= योनि और वान= लिंग .सारी सृष्टि की उत्पत्ति इनसे हुई है इसलिए भगवान कहते हैं

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  26. तुम जैसे दुर्वुद्धि बकचोदानन्द सरस्वति जी के रहे हि ऐसे शब्दों की व्युत्पति तथा अर्थ होसकता है....
    तैलाद्रक्षेत जलाद्रक्षेत रक्षेत शिथिल बन्धनात् "मुर्ख हस्ते न दातव्यं "एव वदति पुस्तकमु

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    1. भाई लोगो प्रकृति ही जीवन है और प्रकृति मृत्यु है हम सब प्रकृति का एक हिस्सा है
      भगवान उनके लिए ठीक है जिन्हे अपने अछे या
      बूरे कार्य ओर उसके नतीजे का ठीकरा दुसरो पर
      फोड़ने की आदत है

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  27. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  28. भगवान एक काल्पनिक शब्द है।
    जैसे भगवान ही काल्पनिक है वैसे कल्पनावो पर आधारित है
    भारत के सभी भगवान।
    गौतम बुद्ध और महावीर दोनो अति उत्तम मनुष्य है
    इनके कर्म अनुकरणीय है।

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  29. भगवान को आज तक किसीने देखने का प्रमाण नहीं है केवल काल्पनिक मान्यता है अगर भगवान का अस्तित्व होता तो दुनियामे बुराईया नहीं होती जो भी अच्छा बुरा होता है वो इन्सान के कर्म से ही होता है इसलिये काल्पनिक भगवान को मानना शुद्ध मूर्खता है.

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  30. Jeev ka sarir Panch tatvo Se Milkar banaa hai aur yah Panch tatva Mein mil Jaega ISI ko hi Bhagwan Kahate Hain

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  31. जानकारी देने के लिए धन्यवाद,आज के बाद भगवान शब्द इस्तेमाल नहीं करूंगा

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  32. Bhagwan shabd Ka arth hai bhagyawan Yani lucky jo Apne jivan mein achhe Kaam karke Gaya ho or samaj ko koi sikh dekar jata h jisko aaj bhi puja ja Raha hai Yani wo lucky the

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  33. जिस तरह शब्द अनर्थ दिए हो उसी तरह अनर्थ अल्लाह का भी निकाला जा सकता है, अ+ल्ल+आह;= अल्लाह
    अ = आओ
    ल्ल = ले लो
    आह = लेते समय की आवाज
    अर्थ हुआ कि आओ मै आनंद से आह करूंगी मेरी ले लो, या आओ मेरी बीबी की ले लो और आनंद से आह करो।
    अब देखो जैसे तुमने काम विकृत बुद्धि नहीं चलाई वैसे मैंने भी शब्द अनुसार अर्थ निकाला है

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  34. वाह क्या पोस्ट है , 12 वर्षों से इस पर बात चल रही है।

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  35. हिंदू धर्म वालो के अलावा किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से या फिर विदेशी व्यक्ति से भगवान की व्याख्या कराई जाए या भगवान शब्द का सन्धि विच्छेद कराया जाय तो अंदाजा लगाइये वो क्या लिख सकता है ? भग = स्त्री जननांग वान = वाहन यानी कि उपभोग होने वाला अर्थात उपभोग कौन करता है पुरुष । स्त्री और पुरुष ने ही तो बच्चे पैदा करने जगत यानी संसार मे अपना बर्चस्व बना रखा है ।
    इसके अलावा जानवरो , पंछियों ,कीड़े मकोड़े आदि के नर और मादा ने ही अपने-2 बच्चे पैदा करके इस जगत या संसार मे अपना-2 बर्चस्व कायम किया है इस कारण भगवान का मतलब नर और मादा से ही है।

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    1. काशिफ आरिफ जी भगवान का सही अर्थ ये है भग का मतलब योनि जननांग वान का अर्थ स्वान यानी कुत्ता ? अद्वैत,ब्रह्म उर्फ रावण ने श्री को यानी लछमी को यानी सरस्वती को अपने प्रेम जाल में फाँस कर भगवान शिव के शरीर को धारण कर लिया छल से ? ये शिवलिंग अद्वैत ब्रह्मलिंग, रावनलिंग है ? ये छद्म भगवान अद्वैत, ब्रह्मा, रावण गुप्त रूप है ? भगवान का वैसे प्राकृतिक रूप है भ-भूमि, ग-गगन यानी आकाश, व-वायु, न-नीर यानी जल ? श्री अग्नि का प्रतीक है ? ब्रह्म वायु का और भगवान शिव जल का प्रतिनिधित्व करते हैं ?

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  36. काशिफ आरिफ जी अगर आप सात्विक चिंतन करें तो पाएंगे कि योनि जननांग लिंग का उपभोग करती है । मुँह, गुदा, योनि ये सभी उपभोग ही करते हैं ? पुरुष झूठ बोलते हैं कि मैंने उपभोग किया ? जबकि सच्चाई यही है ?

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  37. भगवान् मर्यादित शब्द नहीं है God is great मजाक मे ना ले

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काशिफ आरिफ

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