पेश-ए-खिदमत है रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा के सम्पादक अज़ीज़ बर्नी जी का लेख......
रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा केवल एक समाचारपत्र नहीं, बल्कि इस युग का इतिहास लिखने जा रहा है। हमने तो यह उसी समय तय कर लिया था, जब इस मिशन का आरंभ किया था, लेकिन प्रसन्नता तथा संतोष की बात यह है कि आज हमारे पाठक भी इस सच्चाई को महसूस करने लगे है और उनकी दुआयें हर क्षण हमारे साथ रहती हैं, हम जानते और मानते हैं कि यह उन्ही की दुआओं, प्रोत्साहन की ताकत है कि हम लगातार इस दिशा में आगे बढ़ते जा रहे हैं और निस्तर तथ्य सामने आते चले जा रहे हैं। साथ ही एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही जा सकती है कि पूर्ण रूप से न सही, परन्तु एक हद तक तो हम उस निराशाजनक दौर से निकल आयें हैं, जब सरकारों से यह आशा ही नहीं की जा सकती थी कि उनकी जांच का रूख मुसलमानों से हटकर किसी और दिशा में भी आगे बढ़ सकता है। अगर आरंभ में ही यह कदम उठा लिये जाते तो देश को जिन आतंकवादी हमलों का सामना करना पड़ा, शायद उनसे बच जाते। बहरहाल आज के इस संक्षिप्त लेख में मैं अपने पाठकों तथा भारत सरकार के सामने थोड़े शब्दों में वे घटनायें सामने रखना चाहता हूं , जिन से बार-बार हमारे देश को जूझना पड़ा। अभी चर्चा केवल उनकी जिनकी जांच का निष्कर्ष सामने आ गया है या आता जा रहा है। हो सकता है शेष घटनाओं की भी नये सिरे से छान बीन हो तो ऐसा ही कुछ सामने आये। यह कुछ मिसाले इसलिए कि हमारी सरकारी और खुफिया एजेंसियां अंदाजा कर सकें कि हमने उन बम धमाकों के बाद किन लोगों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया था और जब सच सामने आया तो किनके चेहरे सामने आये।
मालेगांव धमाके
(8 सितम्बर 2006)
37 हताहत
आरम्भ में जो व्यक्ति गिरफ़्तार हुए, वे सल्मान फ़ारसी, फ़ारुक़ अब्दुल्ला मख़दूमी, रईस अहमद, नूरुलहुदा, शम्सुलहुदा, शब्बीर बीड़ी वाले।
बाद की जांचः 2008 के मालेगांव बम धमाकों में हिन्दू आतंकवादियों के सामने आने के बाद अन्य मामलों में भी शक की सूई भी हिन्दू आतंकवादियों पर ही गई।
समझौता एक्सप्रेस बम धमाका
18 फ़रवरी 2007
68 हताहत, अधिकतर पाकिस्तानी नागरिक
आरम्भिक जांच में लश्कर तथा जैश -ए -मुहम्मद पर आरोप लगाया गया और इस सिलसिले में पाकिस्तानी नागरिक अज़मत अली को गिरफ़्तार किया गया।
बाद की जांच में सामने आया कि इन घटनाओं के पीछे हिन्दू आतंकवादी हो सकते हैं। इन धमाकों में जो पद्धति प्रयोग की गई है वह मक्का मस्जिद के धमाकों से मिलती हुई है। इस मामले में पुलिस को आर.एस.एस के प्रचारक संदीप डांगे तथा रामजी के नाम सामने आये।
मक्का मस्जिद धमाका
18 मई 2007
14 व्यक्तियों की मृत्यु
आरम्भ में स्थानीय पुलिस ने 80 मुस्लिम युवकों को गिरफ़्तार किया और उनसे पूछताछ की गई, जिनमें से 25 व्यक्तियों को गिरफ़्तार कर लिया गया, कोई सबूत न मिलने पर इनमें से इब्राहीम जुनैद, शुऐब जागीरदार, इमरान खान तथा मौहम्मद अब्दुल हकीम इत्यादि को सम्मानपूर्वक बरी कर दिया गया।
बाद की जांच के बाद जो परिणाम सामने आया वह इस प्रकार है। 2010 में सीबीआई ने घोषणा की कि वह इस मामले में 2 अभियुक्तों के बारे में सही सूचना देने वालों को 10 लाख रु0 का इनाम देगी। फिर इस मामले में संदीप डांगे, राम चन्द्र कालसिंगा तथा लोकेश शर्मा को गिरफ़्तार किया गया।
अजमेर शरीफ़ धमाका
11 अक्तूबर 2007
3 हताहत
जैसा कि अधिकांश बम धमाकों के बाद होता रहा है। आरम्भ में हूजी, लश्कर पर धमाकों का आरोप लगाया गया तथा जिन लोगों को गिरफ़्तार किया गया वह भी मुसलमान ही थे, उनमें अब्दुल हफ़ीज़, शमीम, खशीउर्रहमान, इमरान अली शामिल थे।
806 पृष्ठों पर आधारित आरोप पत्र में जो राजस्थान एटीएस ने एडीश्नल चीफ़ जूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में दाखिल की है इसमें 5 अभियुक्तों के नाम डाले गए हैं। अभिनव भारत के देवेन्द्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चन्द्रशेखर हैं। यह पुलिस की हिरासत में हैं, जबकि संदीप डांगे तथा रामजी कालासांगा फ़रार बताये जाते हैं।
थाणे बम धमाका
4 जून 2008
हिन्दू जन जागृति समिति तथा सनातन संस्था इस धमाके के पीछे बताई जाती हैं और रमेश हनुमंत गडकरी और मंगेश दिनकर निकम गिरफ़्तार किये गए थे। इन धमाकों का उद्देश्य फ़िल्म ‘जोधा अकबर’ के प्रदर्शन के विरुद्ध विरोध जताना था।
कानपुर तथा नांदेड़ बम धमाके
अगस्त 2008
कानपुर में बजरंग दल के 2 सदस्यों राजीव मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह बम बनाते समय धमाका होने से मारे गए थे। अप्रैल 2006 में एन राजकोंडवार और एच पानसे नांदेड़ में बम बनाते समय मारे गए थे, वे दोनों भी बजरंग दल के थे।
मालेगांव-2
29 सितम्बर 2008
7 हताहत
आरम्भ में कहा गया था कि इस धमाके में इंडियन मुजाहिदीन शामिल है परन्तु बाद में अभिनव भारत तथा राष्ट्रीय जागरण मंच के लिप्त होने की बात सामने आई। उसमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित और स्वामी अम्बिकानंद देवतीर्थ (दयानंद पाण्डे) गिरफ़्तार हुए। यही वह बम धमाके थे जिनकी जांच शहीद हेमंत करकरे कर रहे थे और जिससे आतंकवादियों का वह चेहरा सामने आया जिसके बारे में पहले सोचा ही नहीं जाता था। लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ती गई परतें खुलती र्गइं। अगर 26/11 के आतंकवादी हमले में हेमन्त करकरे शहीद न होते तो शायद आज आतंकवाद का यह सम्पूर्ण नेटवर्क हमारे सामने होता। फिर भी उनके जाने के बाद भी यह सिलसिला रूका नहीं है। अजमेर बम धमाके की जांच के परिणाम हमारे सामने है।
गोवा धमाका
16 अक्तूबर 2009
इस धमाके में जो 2 व्यक्ति मारे गए, वे सनातन संस्था के कार्यकर्ता थे, मरने वाले मालगोंडा पाटिल तथा योगेश नायक उस समय मारे गए थे जब वह विस्फ़ोटक पदार्थ लेकर स्कूटर से जा रहे थे और उसमें अचानक धमाका हो गया।
जिस समय नांदेड़, कानपुर तथा गोवा में बम बनाते या ले जाते हुए यह लोग हताहत हुए, अगर उसी समय हमारी खुफिया एजेंसियों तथा एटीएस ने मुसतैदी से काम लिया होता तो सम्पूर्ण नेटवर्क का पर्दाफाश हो सकता था या कम से कम किस मानसिकता के लोगों का कारनामा था और किस स्तर के लोग इन षड्यंत्रों में लिप्त हैं, यह सामने आ सकता था। विषय विस्तृत है, आज के लेख में भी इसे पूरा किया जाना संभव नहीं है, इसलिए यह सिलसिला अभी और कुछ समय तक जारी रह सकता है, फिर भी मैं आज के लेख को समाप्त करने से पूर्व दरगाह अजमेर शरीफ में हुए बम धमाके के तुरंत बाद लिखा एक संक्षिप्त सम्पादकीय एक बार फिर अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करने जा रहा हूं। मैं इस बात के लिए भारत सरकार का अभारी भी हूं कि जिन बातों की ओर मैं ने अपने इस लेख (12.10.2007, पृष्ठ-1) में इशारा किया था, उस पर ध्यान दिया गया और आज परिणाम हमारे सामने है। बात केवल कुछ लोगों के पकड़े जाने या एक डायरी में कुछ नाम लिखे होने की नहीं है, बल्कि असल बात यह है कि आतंकवाद का यह सिलसिला थम क्यों नहीं रहा था? शायद इसलिए कि हमने इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं था, जिस दिशा में आज न केवल सोचा जा रहा है, बल्कि कार्यन्वयन करने का प्रयास भी किया जा रहा है।
निसंदेह 26 नवम्बर 2008 को हुआ आतंकवादी हमला अत्यंत विडम्बनापूर्ण तथा शर्मनाक था, लेकिन उसके बाद से अगर छोटे छोटे मामलों की चर्चा न कि जाये तो कहा जा सकता है कि लगभग पिछले दो वर्षों में देश किसी बड़े आतंकवादी हमले का शिकार नहीं हुआ। क्या इसका एक कारण यह भी है कि अब आतंकवाद में लिप्त वह चेहरे सामने आने लगे हैं जिनकी ओर हम तो लगातार इशारा करते रहे, परन्तु किसी ने इन संकेतों को समझने का प्रयास ही नहीं किया। बहरहाल मुलाहेज़ा फरमायें मेरा वह लेख जो अजमेर बम धमाका के तुरंत बाद लिखा गया और विचार करें आज के बदलते हुए परिदृश्य पर, शायद कि महसूस होने लगे कि हम निराशाजनक दौर से बाहर आते जा रहे हैं।
अजमेर बम धमाका
9/11 पर आज बात नहीं, आज चर्चा अजमेर में ख्वाजा मोईनूद्दीन चिश्ती की दरगाह में हुए बम धमाके की, जिसमें 3 व्यक्ति हताहत और कई घायल हुए। यह इतना बड़ा समाचार है कि इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हम अपने पाठकों को यह भी याद दिला देना चाहते हैं कि आज ही के समाचारपत्रों में गुजरात तथा हिमाचल में चुनावों की तारीखों की घोषणा की गई है। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और गुजरात में भारतीय जनता पार्टी अपने खूनी खेल का परिणाम पिछले चुनाव में देख चुकी है। गुजरात के राजनीतिक संकट से निकलने के लिए उसे आवश्यकता है केशु भाई पटेल के त्यागपत्र से ध्यान हटाने की और इसके लिए आसान तरीका यही हो सकता है कि जो स्थान हिन्दु तथा मुसलमान दोनों की एकता के प्रतीक के रूप में देखे जाते हों, जहां हिन्दु तथा मुसलमान दोनों समान आस्था के साथ जाते हों। वहां ठीक रोज़ा अफतार के समय बम ब्लास्ट का होना और उसकी तीव्रता जिसमें तीन हताहत तथा कई व्यक्तियों के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना अभी तक (लेख लिखे जाने तक) प्राप्त हो चुकी है और घटना की गंभीरता को समझे बिना इस घटना को विभिन्न दृष्टिकोणों से पेश करने का प्रयास भी शुरू हो गया है।
यह भी कहा जाने लगा है कि अफ़्तार के समय की घोषणा के लिए जो गोला छोड़ा जाता है, यह उसका प्रभाव भी हो सकता है। फिर मीडिया द्वारा इसका खंडन करते हुए यह भी कहा जाता है कि इस घोषणा के लिए किये जाने वाले गोला से ऐसा नहीं हो सकता, बल्कि यह एक अतिवादी कार्रवाई भी हो सकती है। पिछले दिनों हैदराबाद की मक्का मस्जिद, गोकुल चाट भंडार तथा लुम्बिनी पार्क में हुए धमाकों की तरह यह भी आतंकवादियों का काम हो सकता है। ताज़ा तरीन सूचना के अनुसार राज्य के गृह मंत्री गुलाब चन्द कटारिया को पूर्व सूचना दे दी गई थी कि दरगाह ख्वाजा मोईनूद्दिन चिश्ती पर किसी समय भी अप्रिय घटना घट सकती है।
केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल द्वारा यह सूचना मिलने के बाद राज्य सरकार को सजग हो जाना चाहिए था और दरगाह की सुरक्षा की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी। इसके अलावा दरगाह कमेटी ने भी राज्य सरकार से मांग की थी कि रमज़ान में दरगाह में सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की जाये। हम भारतीय जनता पार्टी की सरकार से तो ऐसी आशा नहीं कर सकते क्योंकि उनका दागदार अतीत हमारे सामने है, जब कल्याण सिंह की वादा खिलाफी ने उत्तर प्रदेश में बाबरी मस्जिद की शहादत के हालात पैदा कर दिये थे। हम इस नाजुक मौके पर केंद्र सरकार के गृह मंत्री तथा विशेष रूप से कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी साहेबा के सलाहकार अहमद पटेल साहब से यह निवेदन करेंगे कि वह घटना की संवदेनशीलता को समझते हुए इसकी जांच करायें और अगर संभव हो सके तो घटनास्थाल पर स्वंय पहुंचकर उन परिस्थिितियों की समीक्षा करें, इसलिए कि केंद्र सरकार में निसंदेह वह मंत्री न हों, परन्तु मुसलमान आज भी आशा भरी निगाहों से उन्हीं की ओर देखता है। अगर कांग्रेस से कोई शिकायत होती है तो शिकायत भी उन्हीं से करता और अगर कोई अपेक्षा होती है तो दस्तक भी उन्हीं के दरवाजे पर देता है।
साभार :- अज़ीज़ बर्नी जी
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hinduon ko hinduon ke desh me kuchh hinduon ke dwara hi fansaya ja raha hai. durbhagya hai.
जवाब देंहटाएंदुनिया के पहले भारतीय नागरिक जी,
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही है....कुछ ज़्यादा ही सही कह रहे हैं....
हिदुंओ का नाम आया तो फ़ंसाया जा रहा है इसके बदले किसी मुसलमान का नाम होता तो कहते कि इनका तो काम ही यही है
"सारे मुसलमान आंतकवादी है...वगैरह वगैरह""
वैसे आपसे किसने कहा की ये हिन्दुओं का देश है????
सप्रेम
दुनिया का दुसरा भारतीय नागरिक
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देश हिन्दू हो या मुसलमान, इन्साफ होना चहिये.
जवाब देंहटाएंMLA भाई...
जवाब देंहटाएं8 टिप्पणियों के लिये शुक्रिया...वैसे इनकी ज़रुरत नही थी...
फ़िर भी बहुत-बहुत शुक्रिया..
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मासुम भाई...
जवाब देंहटाएंभारत ना हिन्दु देश है और ना मुसलमान....और इंसाफ़ तो हर देश में हर इंसान का हक है...
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बहुत अच्छी पोस्ट काशिफ़ जी...
जवाब देंहटाएंअज़ीज़ बर्नी जी ने बहुत सही लिखा है...
बहुत अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया भारत विशाल जी,
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sahi kahaa yeh desh hinduon kaa nahi hain. aur ho bhi nahi saktaa yeh main kah rahaa hun ....
जवाब देंहटाएंTUJE TO KYA KAHU PATA NAHI
जवाब देंहटाएंPAR TERI BATE BAHUT ACHHI LAGI
सुंदर पोस्ट ..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंआतंक फेलाने वाला ही आतंकवादी होता है चाहे वह कोई भी हो मगर दुर्भाग्य मुसलमानों को ही आतंकवादी कहा और समझा जाता है अपना तो कानां भी नहीं नजर आता मगर दूसरा अगर सुर्मा भी लगा ले तो वह अँधा नजर आता है यह दोगलापन नहीं ही तो क्या है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा है ठाकुर जी "आतंक फेलाने वाला ही आतंकवादी होता है चाहे वह कोई भी हो मगर दुर्भाग्य मुसलमानों को ही आतंकवादी कहा और समझा जाता है"
जवाब देंहटाएंतो श्रीमान आप सिद्ध करना चाहते हैं की-
जवाब देंहटाएं-मुंबई २६/११ हिन्दुओं ने किया?
-अमेरिका ९/११ हिन्दुओं ने किया?
-जिस कश्मीर में ६०% हिन्दू रहते थे,उनकी संख्या १% हिन्दुओं ने कर दिया?
-बनारस,अक्षरधाम,और कई मंदिरों पर हिन्दू आतंकवादियों न ने हमला किया?
-तक्षशिला विश्वविद्यालय को todkar हिन्दुओं ने अजमेर की दरगाह banayi.
-काशी,मथुरा और अयोध्या के तीन प्रमुख हिन्दू तीर्थों को तोड़कर हिन्दुओं ने मस्जिद बनायीं.
-संसद भवन पर हमला करवाने वाला अफज़ल गुरु हिन्दू है?
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंराहुल पंडित जी मेरी दृष्टि में तो ये सारे कुकृत्य आक्रमणकारी अक्राताओं और अटन्क्वादिओं ने लिए हैं !!अब उनके हिंदू या मुसलमान होने की खबर आपको ही होगी ..
जवाब देंहटाएंNah .. mantap
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