शुक्रवार को मैं अपने एक व्यपारी को बरेली की ट्रेन मे बिठाने के लिए आगरा फोर्ट स्टेशन गया, ट्रेन आधा घंटा लेट थी तो हम लोग वहीं बैठ गए हम आपस मे बातचीत कर रहे थे....वहां कुछ गाँव वाले भी जिन्हें रास्ते मे कहीं उतरना था साडे सात बज चुके थे उन्होंने अपना झोला खोला और वहीं ज़मीन पर बैठ कर खाना खाने लगे वो चार लोग थे एक के पास सूखे आलू की सब्जी थी, एक पास पता नही क्या था मुझे दिखा नही तभी ऊपर बैठे बन्दर की निगाह उन पर पड़ गई वो नीचे उतर आया उसको देख कर उन लोगो मे से एक आदमी ने "जय हनुमान" कह कर एक रोटी झोले से निकाल कर बन्दर के सामने डाल दी, बन्दर ने उस रोटी को उठा कर सुंघा, और फिर छोड़ कर चला गया, तो मेरे साथ मौजूद लोगो ने और मैंने एक साथ कहा की "जिस रोटी को इंसान खा रहा है उसको जानवर ने खाने से मना कर दिया" उन लोगो ने एक बार फिर कोशिश की, दूसरी रोटी निकाल कर उसके सामने डाली लेकिन उसने तो क्या किसी दुसरे बन्दर ने भी उन रोटियों को हाथ नही लगाया.....
हम लोग बड़े फख्र से कहते है की हमारा भारत तरक्की कर रहा है, हम लोग अमीर होते जा रहे हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है । "जो लोग पहले से अमीर है उनके खजाने बढते जा रहे है और जो गरीब है वो और गरीब होता जा रहा है,"
हमारा देश तरक्की कर रहा है लेकिन सिर्फ़ उच्च और मध्यम वर्ग की आय बढ़ रही है, और जो निम्न वर्ग का आदमी हैं वो तो सिर्फ़ दो वक्त की दाल रोटी, कपड़े की लड़ाई मे ही मरे जा रहा है.........इस क्रान्ति ने अमीर और गरीब के बीच की खाई तो इतना बढ़ा दिया है की उसको भरने मे हमारी पुश्ते लग जायेंगी..... ऊपर मैंने अपने आंखों से देखे हमारे हिन्दुस्तान के हालत बताये की यहाँ किसी को झूठा खाना खाने के लिए कुत्तो से लड़ना पड़ता है, और जिसको रोटी मयस्सर है वो रोटी जानवर भी खाने से मना कर देता है ।
"हिन्दुस्तानियौं को यह तरक्की बहुत मुबारक हो "
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