धर्म, जात - पात को एक तरफ़ रख कर हिन्दुस्तान को एक सूत्र के पिरोने की कोशिश....
शुक्रवार, 8 मई 2009
Loksangharsha: अकुलाहट
अपने मन की अकुलाहट को
कैसे लयबद्ध करूं
पीड़ा से उपजी कविता को
कैसे व्यक्त करूं ,
सीने में कब्र खुदी हो तो
कैसे मैं सब्र करूं
दिल में उठते अरमानो को
कैसे दफ़न करूं ,
अन्तर में खोये शब्दों की
कैसे मैं खोज करूं
आँखों में उमड़ा पीड़ा को
कैसे राह करूं,
मन में उठती ज्वालाओं का
कैसे सत्कार करूं
धू-धू जलते अरमानो का
कैसे श्रृंगार करूं,
अपने मन की अकुलाहट को
कैसे लयबद्ध करूं
पीड़ा से उपजी कविता को
कैसे व्यक्त करूं,
-अनूप गोयल
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काशिफ आरिफ