कभी कामना कामना को लजाये॥
चलो तृप्ति के द्वार डोली सजाएं॥
मुझे आइना जो दिखाने लगे वो-
कई सूरतो में दिखी लालसायें॥
तटों को बहाने चली धार मानी
मिटी रेत के गांव की भावनाएँ॥
उडे आंधियो के सहारे -सहारे -
मिटाती रही जिंदगी वासनाएं॥
उसी राह को खोज ले पस्त ''राही''
जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके टिप्पणी करने से उत्साह बढता है
प्रतिक्रिया, आलोचना, सुझाव,बधाई, सब सादर आमंत्रित है.......
काशिफ आरिफ