चीटिं का नाम सुनते ही एक काले से छोटे कीडे का अक्स हमारी आखों के सामने बन जाता है जो हमारे हाथ और प्लेट से गिरे हुए खाने के कण को सर पर उठाये इधर - उधर भागता दिख जाता है। इसकी पह्चान सबसे मेहनती कीडे के रूप मे होती है जो कभी भी हार नही मानता है, अगर आप इसके रास्ते मे कोई चीज़ रख दे तो ये अपना रास्ता बदल कर दुसरे रास्ते से निकल जाता है। हर वक्त ये आपकॊ काम करता मिलेगा। ये एक पुरे झुंड मे रह्ते है जिसकी एक रानी होती है और सब चीटियां उसके आदेश के अनुसार काम करती है। सब चिटियों को उन्का काम बाटं दिया जाता है और वो सब उसी लिहाज़ से अपना काम करती है। ये आपकॊ कभी भी परेशान नही करेगी तब तक जब तक इसकॊ आपसे खतरा मह्सुस नही होता और खतरा महसुस होते ही ये आपकॊ काट लेगीं उसके काट्ने के बाद काफ़ी जलन होती है।
पिछ्ले एक महिने से मेरे घर और मेरे पडोस मे सब लोग एक अजीब सी परेशानी पड गये है। हमारे घरॊं मे चीटियों ने हमला बोल दिया है पुरे घर मे चीटियां ही चीटियां है, जहा आप निगाह घुमायेंगे वहां आपकॊं चीटियां नज़र आ जायेगीं कहीं पर भी आपकॊ वो बैठने नही देगीं। बहुत सोचने के बाद मैनें एक निष्कर्ष ये निकाला है की हम इन्सानों से हर जानवर की तरह इन चिटियों का घर भी इन से छिन लिया है, और अब ये अपना घर तलाश रही है।
पहले चुने मिट्टी के घर बनते थे, फिर दौर आया चम्बंल और सिमेन्ट का, यहा तक तो ठीक था चीटियां दीवार के किनारे से सुराख कर के अपना आशियाना बना लेती थी लेकिन आज कल हर जगह, हर घर मे मार्बल और टाईल्स का ईस्तेमाल हो रहा है जिस्से जो एक थोडा बहुत जो उनके लिये आसरा बना था अब वो भी खतम हो गया है। इनकॊ अब जगह नही मिल रही है कि ये कहां अपना घर बसायें और अपने परिवार को पालें। इनको खाना तो बहुत मिल जाता है क्यौंकी आज के दौर का इन्सान खाता कम है और फेंकता ज़्यादा है क्यौंकी ये इंसान की बहुत पुरानी फ़ितरत है की वो कभी भी अपने आप को मिली नेमत का सही इस्तेमाल नही करता है । अरे मैं अपने विषय से भट्क रहा था, हां तो हम चिटियों के बारे मे बात कर रहे थे, इनकॊ खाना तो मिल जाता है लेकिन इनको घर नही मिल रहा है जो चीटियां किसी मैदान या बाग मे रह्ती है उनकॊ तो घर की परेशानी नही है और रही बात खाने की तो बहुत से ऐसे भले मानस है जॊ सुबह टहलते वक्त इन्हे खाना डालते हैं।
अब कही ऐसा न हो की घरेलु चिडिया, गिद्द और दूसरे जानवरॊ की तरह इन्हे भी देखने के लिये हमें शहर के बाहर गांव और जंगल मे जाना पडे। कब तक हम ऐसे आंख बन्द करके प्रक्रति को नुक्सान पहुचांते रहेगें। अगर इसी तरह हम लोग प्रक्रति को नुकसान रहेंगे तो वो दिन दूर नही कि इस दुनिया मे सिर्फ़ तीन चीज़ें बाकी रहेंगी :- इन्सान, मशीन और ये कंक्रिट का जंगल।
काफी अलग हटके बात की है
जवाब देंहटाएंsahi likha hai. vichar karna chahiye.
जवाब देंहटाएंचीटियों के सबसे बड़े शत्रु आदमी नहीं दीमक हैं। दिन ब दिन दीमक सनी फाइलों की संख्या सरकारी महकमों में बढ़ती जा रही है। जाहिर है चीटियों के शत्रु भी बढ़ गए हैं।
जवाब देंहटाएंगरीब लोगोँ का जीवन हमेशा चीँटीयोँ जैसा होता है। बेचारे खाने व रहने का ही सँघर्ष करते हैँ ।
जवाब देंहटाएंगरीब लोगोँ का जीवन हमेशा चीँटीयोँ जैसा होता है। बेचारे खाने व रहने का ही सँघर्ष करते हैँ ।
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