३० सितम्बर को हाईकोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाया रामजन्म भुमि/ बाबरी मस्ज़िद विवाद पर अपना फ़ैसला सुनाया । बाबरी मस्ज़िद की ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटा गया है, दो हिस्से हिन्दुओं को मिले है और एक हिस्सा मुस्लमानों को मिला है। हिन्दुओं के हिस्से में मुख्य गुंबद का वह हिस्सा भी शामिल है जहां २२-२३ दिसम्बर 1949 में चोरी से, छुपकर मुर्तिंया रखी गयी थी और कहा गया था की श्रीराम(?) अवतरित हुये है(?????) राम चबुतरा(?), सीता की रसोई(?), वगैरह वगैरह भी हिन्दुओं को मिला है । फ़ैसले से साफ़ ज़ाहिर है कि इस फ़ैसले में कानुन का कहीं पालन नही हुआ है, सिर्फ़ अस्सी करोड हिन्दुओं की आस्था का ख्याल रख कर फ़ैसला दिया गया है।
जैसा कि राष्टीय सहारा के संपादक अज़ीज़ बर्नी जी लिखते है "हां, 30 सितम्बर 2010 को बाबरी मस्जिद मामले के संबंध में दिया गया इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय क़ानून के अनुसार लिया गया निर्णय नहीं है। हां, यह आस्था की बुनियाद पर लिया गया निर्णय है। हां, इस निर्णय में राजनीति की गंध आती है। यह सच है कि न्यायालय के सभी निर्णय सबूतों और शहादतों की बुनियाद पर ही होने चाहियें, जो कि इस निर्णय में नहीं हुआ। भारतीय जनता की एक बड़ी संख्या
जिसमें केवल मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं का भी मानना है कि यह न्याय पर आधारित नहीं है और अब यह संभावना भी बड़ी हद तक है कि उच्चतम न्यायालय के दरवाज़े पर दस्तक़ दी जाएगी।"
इस फ़ैसले से यह मतलब निकलता है कि "बाबरी मस्ज़िद विध्वंस" सही था अटल बिहारी वाजपेयी, देवराहा बाबा, पी.वी. नरसिम्हा राव ने जो कुछ किया वो सही था तो अब हिन्दु जो बचा-खुची मस्ज़िद या ये कहे मस्ज़िद के मलबे को हटाकर ज़मीन को समतल करके वहां मंदिर बना सके। हाईकोर्ट का फ़ैसला कोई निर्णय नही है ये एक समझौता है जो एक बन्द कमरे में तैयार करा गया है। इन जजों ने आस्था, मान्यता और मिथ्य को सच, कानुन और इंसाफ़ के ऊपर तरजीह दी हैं। वो शायद ये भुल गये की एक देश सच, कानुन और इंसाफ़ से चलता है ना कि आस्था, मान्यता और मिथ्य से। निर्णय कोई खेल या प्रतियोगिता नही है जो 2-1 से जीती जाये।
बाबरी मस्ज़िद केस की २३ गायब फ़ायलों का कोई अता-पता नहीं है.
जस्टिस शर्मा जी ने अपनी राम भक्ति का पुरा-पुरा परिचय दिया है अपने आखिरी फ़ैसले में...वो अपने आपको रामभक्तों की लिस्ट में सबसे ऊपर देखना चाहते थे जिसमें वो पुरी तरह कामयाब हो गये है अब हर जगह उनका गुणगान हो रहा है पढिये ये लेख। इन्होने अपने कथित सबसे सही फ़ैसले(?) में कहा है कि "मंदिर को तोडकर मस्ज़िद बनायी गयी और मस्ज़िद में उन्होने मंदिर के खंम्बे इस्तेमाल किये जिसमें देवी-देवताओं की मुर्तियां बनी हुई थी(?????) जबकि उसी ए.एस.आई की रिपोर्ट को आधार बनाकर दुसरे दो जजों ने कहा कि वो कथित मंदिर के खंडहरों पर बनाई गई है।" ए.एस.आई की रिपोर्ट मैनें पढी है उसमें कहीं भी यकीन के साथ नही कहा गया है की मस्ज़िद पर मंदिर था हर सबुत के विष्लेण के बाद यही लिखा कि "कि ऐसा प्रतीत होता है" "हो सकता है" "ऐसा कह सकते है" वगैरह वगैरह।
शर्मा जी ने आगे कहा कि "रामलला के हिस्से में आई गर्भगृह की जमीन के पीछे रामलला को सजीव व्यक्ति मानकर मुकदमे का निस्तारण किया। अदालत ने माना है कि जहां पर सदियों से पूजा-अर्चना होती चली आयी हो वह मूर्ति प्राण प्रतिष्ठित [सजीव] हो जाती है। और वह मूर्ति एक सजीव व्यक्ति की तरह होती है। इसलिए जब हजारों वर्ष से रामलला की पूजा अर्चना होती चली आयी है तो मध्य गुंबद में श्री राम बाल रूप में सजीव हैं और उनकी ओर से निकट मित्र द्वारा हक का दावा किया जा सकता है।" लो जी भगवान को उनका कथित मंदिर(?) लौटाने के लिये उन्हे इंसान मान लिया गया और एक हिस्सा
उन्हे दे दिया गया। उन्होने कहा कि जिस मूर्ति की सदियों से पुजा होती है वो सजीव हो जाती है तो इस लिहाज़ से महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु वगैरह की मूर्तियां भी सजीव हो जायेंगी तब क्या होगा???? और उन्होने कहा कि हज़ारों वर्ष से उस मूर्ति की पुजा हो रही है लेकिन मस्ज़िद में मूर्ति तो २२-२३ दिसम्बर को छुपकर चोरी से रखी गयी थी तो वहां कहां से पूजा हो गयी????
भगवान श्रीराम(?) के जन्मस्थान(?) की लोकेशन हमारे देश के हिन्दुओं और हाईकोर्ट के जजों को शायद भगवान श्री राम(?) ने ही बताई है(?????) कि मेरा जन्म इस मस्ज़िद के बडे गुम्बद के बीच में हुआ था(????)
इस फ़ैसले ने साबित कर दिया कि मुसलमान इस देश में दुसरे दर्जे के इंसान है। हम भारतीय ढोल पीटकर कहते है कि हमारा लोकतंत्र सबसे महान है और दुनिया में अव्वल है.........लेकिन कहां से है ये समझ नही आ रहा है???
Mohalla Live पर अरविंद शेष जी लिखते है
"अदालत के फैसले ने इस बात की नजीर रखी है कि कल को हमारे घर में चुपके से आकर अगर कोई मूर्ति रख दे तो उसके बाद पैदा हुई लड़ाई का नतीजा यही होगा कि अदालत उस घर को मंदिर घोषित कर देगी।"
"लेकिन इस चोरी को सही ठहराने के अलावा अदालत ने क्या यह कहना चाहा है कि मथुरा और काशी की संघी मांग भी इसी अंजाम तक पहुंचेगी। और क्या अब इस देश की सभी प्राचीन इमारतों की जांच करायी जाएगी कि यहां पहले क्या था और अब क्या होना चाहिए। आप क्या सोचते हैं कि बाबरी मसजिद में मनमाफिक हिस्सा मिलने के बाद संघी जमात यों ही चुप बैठ जाएगी।सबसे विचित्र तो यह है कि अदालत का यह फैसला तकनीकी पहलुओं पर आस्था की जीत के रूप में जाना जाएगा। यह कहना कि विवादित स्थल ही रामजन्मभूमि है, एक ऐसा मजाक है, जिसे सुनना दहशत से भर देता है। लेकिन इसी में छिपी एक बात पर गौर करना चाहिए कि किसी व्यक्ति की इस जिद को किसी व्यक्ति ने ही सही ठहराया, जिसे किसी बात को सही या गलत ठहराने का अधिकार मिला हुआ है। सवाल है कि क्या अब अदालत के फैसले आस्थाओं की बुनियाद पर हुआ करेंगे… और क्या उन आस्थाओं पर फैसला देते समय भी यह देखा जाएगा कि किसकी आस्था ज्यादा ताकतवर है या किस आस्था से फैसला देने वाले के तार जुड़ते हैं…?"
इस लिहाज़ से ताजमहल का केस अदालत में जाना चाहिये क्यौंकि जनाब पी. एन. ओ. के. साहब तो निकल लिये लेकिन जाने से पहले काबा और ताजमहल को शिव मंदिर घोषित कर गये है अब काबा तो हिन्दुओं की पहुंच से बहुत दुर है क्यौं ना मथुरा, काशी से पहले ताजमहल से शुरुआत की जाये???
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बहुत अच्छा पोस्टमार्टम किया है....आपने
जवाब देंहटाएंकाशिफ़ आपकी बात बि्ल्कुल सही है.....हमारे साथ भेदभाव हुआ है और हमें एहसास कराया गया है कि हम अपने ही देश में दुसरे दर्ज़े के नागरिक है.....
जवाब देंहटाएंAttitude| A Way To Success
अब ताजमहल को भी गिरवा कर वहाँ मंदिर बना दें!
जवाब देंहटाएं@Management
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिप्पणी का....मैने तो बस एक कोशिश की है और कुछ नही
@ कहकंशा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपकी टिप्पणी का....जो सच है मैनें वो सबके सामने लाने की कोशिश की है और कुछ नही
@ Impact,
जवाब देंहटाएंक्या परेशानी है इसमें....टाई करके देख लीजिये.........क्या जा रहा है
kashif jee,
जवाब देंहटाएंbhedbhaav nahi hua hai aapke saath, kiya aap jante hain Afganistaan mei babaar kee kabra pey waha ke afgaan log kabhi joote maara karte the kyonki islam ke mutabik babar ne koi nek kaam nahi kia hai.
Aap faizabad ke nahi hai, isliye aapko malum nahi hai ki faizabad ke bande azaadi se pehle babri masjid me namaaz nahi padte the kyonki woh namaz karne layak pak jagah nahi thi.
Is mulk mei musalman kee utni hee value hai jitni hindu, sikh yaa isai kee.
Pakistan mei to musalman kitni behtreen jindagi jee rahe hai yeh sab jaante hain.
Pakistan mei hinduo ke kiya haal hai pata hai aapko.
hindustan mei musalmano ko jitni azaadi aur samman milta hain, pakistan mei to uska 1% bhi nahi milta hai.
Bekar kee soch mat paaliye, rahi baat Tajmahal kee, kuch log hai jo shanti se rehne nahi chahte woh is tarah kee baat karte hain.
PHAISALA CORT KA HAI AAP KO MIRCHI LAGI HAI TO HINDU KYA KAREN KASHIPH BHAI. KES AAGE LE JAO NA. PHIR VERDICT YAHI AAYA TO KYA ALAG DESH KI DEMAND RAKHOGE YA PAKISHAN JAO GE.
जवाब देंहटाएंPHAISALA CORT KA HAI AAP KO MIRCHI LAGI HAI TO HINDU KYA KAREN KASHIPH BHAI. KES AAGE LE JAO NA. PHIR VERDICT YAHI AAYA TO KYA ALAG DESH KI DEMAND RAKHOGE YA PAKISHAN JAO GE.
जवाब देंहटाएंआप भूल रहे हैं श्रीमान,फैसला आस्था पर नहीं..पुरातत्व सर्वेक्षण के रिपोर्ट पर फैसला दिया गया जिसमे कहा गया था की मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनायीं गई थी जिसमे मंदिर के कुछ अंश भी प्रयोग किये गए थे.
जवाब देंहटाएंसंख्या गलत बताई है.८० करोण नहीं,१०२ करोण ,खुद सोचिये यहाँ हिन्दुओं के बराबर मुसलमानों की संख्या होती तो क्या मै आपको कमेन्ट कर पाता?भारत की धर्म निरपेक्ष छवि के लिए ११% मुसलमान नहीं,८७% हिन्दू और सिक्ख जिम्मेदार हैं.नहीं तो जैसे पाकिस्तान में हिन्दुओं कीसंख्या १४% से १% परसेंट रह गयी,यहाँ भी...
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