बुधवार, 20 अगस्त 2008

"भगवान्" का शाब्दिक अर्थ क्या है?

आप लोग पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर चौंक गए होंगे की हिन्दुस्तानी को क्या हो गया है यह कैसा सवाल कर रहा है? तो आप लोग ज़रा अपने दिमाग को काबू में रखे और बराए मेहेरबानी इस पोस्ट को पुरा पढ़े...





आज से कुछ दिनों पहले में फैजाबाद जाने के लिए आगरा से मरुधर एक्सप्रेस में चढा था....अपने स्लीपर कोच में पहुचने के बाद मुझे पता चला की मेरा टिकेट अपग्रेड हो गया है.....भला हो लालू जी का जिनकी वजह से मुझ जैसे मद्ध्यम वर्ग के इनसां को एसी में सफर का मौका मिला था.....मैं अपने कोच में पहुच गया और लेटकर सो गया...





सुबह आँख खुली तो ट्रेन लेट थी.....हमेशा की तरह तो नीचे आकर बैठ गया वहां पर कुछ लोग आपस में बातचीत कर रहे थे और बातचीत का विषय था आज का दौर और इंसान......मैं बैठा हुआ उन लोगो की बातचीत सुनता रहा तो उनलोगों में एक चौबीस - पच्चीस साल का नौजवान था, तीन अधेड़ उम्र के लोग और मैं बैठा था.....





बात होते -२ पाप और पुण्य पर आगई तो उस नौजवान ने बोला की हमारे जिस्म में इतनी बीमारियाँ पैदा हो रही है रोज़ एक नई बीमारी की ख़बर आ रही है...उन सब बीमारियों में से सबसे ज़्यादा हमारे खून में जन्म ले रहीं है.......उसकी सबसे बड़ी वजह की हम लोग अपनर धर्म और धर्म ग्रंथो से दूर हो गए है और झूठ - बेईमानी की रोटी खा रहे है, जब हमारे जिस्म में बेईमानी और झूठ की रोटी जा रही है तो उससे बना खून भी तो ख़राब होगा.....मैं उसकी बात से पुरी तरह से सहमत था......





उसकी यह बात सुनते ही पास वाले पार्टीशन से एक अंकल जी निकल कर आ गए और उन्होंने आते ही उस लड़के की बात को काटा की ऐसा सब कहते है लेकिन कोई उस पर अमल नही कर पाता है.....यह सब बेकार की बात है इससे कुछ नही होता है......तो उसे लड़के ने पहले गीता का एक शलोक सुनाया उसके बाद कुरान की एक आयत सुनाई, फिर दोनों का मतलब बताया इस तरह बात का रुख धर्म की तरफ़ हो गया अब सिर्फ़ उन दो लोगो में बातचीत हो रही बाकी लोग सिर्फ़ सुन रहे थे काफ़ी देर तक दोनों में बहस हो रही थी अंकल जी कुछ ज़्यादा ही जज़्बात में बोल रहे थे उनकी बात में दम नही लेकिन वो लड़का जो भी बोल रहा था पहले किसी न किसी धर्म - ग्रन्थ का हवाला देकर बोल रहा था इतनी कम उम्र में उसके पास बहुत ज़्यादा जानकारी थी जिसको सुनकर में आश्चर्य में पढ़ गया था, मैं बस बैठा उसकी बात सुन रहा था अब वहां पर काफ़ी लोग जमा हो गए थे, अंकल जी के काफ़ी पढ़े लिखे थे वो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे लेकिन जिस भाषा का इस्तेमाल वो कर रहे थे वो बहुत साम्प्रदायिक थी, जब भी वो लड़का कुरान की किसी आयत का उदाहरण देता तो वो उसे नकार देते थे, और गीता, रामायण, या और किसी हिंदू धर्म - ग्रन्थ का हवाला देता तो वो उसे कुबूल कर लेते थे यह सब देख मुझे कुछ अच्छा नही लगा की इतना बड़ा शिक्षक जिसकी उम्र लगभग ६० - ६५ के आसपास होगी वो ऐसी बात कर रहा है, जब काफ़ी देर हो गई उनको इस्लाम की बुराई करते हुए तो उस लड़के ने सिर्फ़ एक सवाल पुछा की "भगवान् किसे कहते है?" तो वहां मौजूद लोगो ने अपनी समझ के हिसाब से जवाब दिया...किसी ने कहा दुनिया को चलाने वाला, किसी ने कुछ कहा....तो उसने कहा की उसका शाब्दिक अर्थ बताये वहां मौजूद कोई भी शख्स उसके सवाल का जवाब नही दे सका....


इतने में उसका स्टेशन आ गया तो उसने वहां मौजूद हर शख्स को अपना मेल एड्रेस किया और कहा की आप लोग अपनी तरह से इस सवाल का जवाब पता कीजिये और मुझे बताये फिर मैं आप लोगो को बताऊँगा की "भगवान्" का शाब्दिक अर्थ क्या है?"

मुझे तो पता नही है इसलिए मैंने सोचा अपने पाठको से पूछ लूँ तो कृपया करके इस पोस्ट को पढने के बाद अपने विचार ज़रूर बताये धन्यवाद

3 टिप्‍पणियां:

  1. भगवान शब्द का अर्थ थोड़ा अश्लील है भाई

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  2. भगवान का शाब्दिक अर्थ है (भग + वान्) अर्थात भग से युक्त. या कह लीजिये जीवन देने की शक्ति से युक्त (जीवनदाता). जनन अंगों को भी भग कहा जाता है एवं माता-पिता, अन्न व प्रकृति को भी भगवान माना जाता है. ईश्वर को जीवन रचने की शक्ति से युक्त होने के कारण भगवान कहा गया. इसका एक गहरा दार्शनिक अर्थ है, अनुरोध है की अपनी काम विकृत अश्लील बुद्धि यहाँ न चलायें.

    पूछना ही है तो कहानी का सहारा क्यों? खुले आम कहिये की यह आपकी ही शंका है.

    वैसे भग का शब्दकोशीय अर्थ जनन अंग ही है, पर दार्शनिक अर्थ बहुत विस्तृत और कई आयामों में है.

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  3. भगवान पंचतत्व से बना है भ से भूमि ग से गगन व् से वायु आ से अग्नि और न से नीर यही अर्थ है मेरे भाई इसीलिए हम कहते है कि मृत्यु के पश्चात हम पंचतत्व में विलीन हो जाते है

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काशिफ आरिफ

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