सर्वप्रथम आप जैसे ज्ञानी लोगो की टिप्पणी पाकर मैं धन्य हो गया,
मेरे मन में शंका थी इसलिए मैंने यह पोस्ट लिखी थी क्यूंकि जितना मुझे पता लगा मैंने लिखा बाकी जो बचा वो आप लोगो ने बता दिया, आप लोग मुझसे बहुत बड़े हैं, और आप लोग बहुत ज्ञानी है मैं तो अज्ञानी जो कुछ ज्ञान पाना चाहता है,
अगर इस पोस्ट से आप लोगो में से किसी की भावनाओ को ठेस पहुची हो तो मैं आप लोगो से क्षमा मांगता हूँ ।
लेकिन जैसा की दिनेशराय द्विवेदी जी ने कहा है "यह जगत जिस योनि से उपजा है उसे धारण करने वाले को भगवान कहते हैं। आप के अर्थ को भी लें तो योनि का स्वामित्व तो स्त्री का ही है। इस कारण से स्त्री ही भगवान हुई न कि उस का पती ।"
तो आप लोग कृपया करके मेरी एक शंका और दूर करे "ईश्वर और भगवान एक शक्ति के दो अलग - अलग नाम है या फिर दोनों के अलग - अलग अर्थ है?
मेरा यह प्रश्न शायद आप लोगो को बचकाना लगे लेकिन अगर आप लोग इसका उत्तर दे देंगे तो मैं धन्य हो जाऊंगा और मुझ जैसे अज्ञानी को कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाएगा ।
धन्यवाद
जय हिंद ।
Bade to aap abhi hai mujhe.. woh bhi oure 2½ saal... :-)
जवाब देंहटाएंऐसा सार्थक प्रश्न पूछने वाला अज्ञानी हो ही नहीं सकता...
जवाब देंहटाएंनीरज
हिन्दुस्तानी भाई! सब से पहले तो आप बधाई स्वीकारें कि आप एक अच्छे इन्सान हैं। एक अच्छा इंसान ज्ञानी से बेहतर होता है। ज्ञानी तो अपने अहंकार के मद में चूर हो कर गलतियाँ कर सकता है। अधर्म पर भी चल सकता है। हमारे पास रावण जैसे ज्ञानी का उदाहरण है। लेकिन एक अच्छा और विनम् इन्सान सदैव सीखता है और जनकल्याण की बात सोचता है।
जवाब देंहटाएंकुरआ़न के उद्धरणों को सुन कर नाक भौंह सिकोड़ने वाला व्यक्ति निश्चय ही इन्सानियत से गिरा हुआ ही हो सकता है। हो सकता है कि मैं खुद कुरआ़न या गीता या बाईबिल की किसी बात से इत्तफाक न रखता होऊँ। लेकिन जिसे दुनियाँ के करोड़ों लोग एक पवित्र पुस्तक मानते हैं, उस में कुछ तो ऐसा होगा ही जिस के कारण उन्होंने उसे अंगीकार किया। एक व्यक्ति के विश्वास का भी आदर करना अच्छे इंन्सान का गुण है। हाँ हमारा मतभेद होने पर हम आदर और विनम्रता पूर्वक अपनी बात लोगों के सामने रखें। यह विनम्रता ही अंततः विजयी होती है।
कन्फ्यूशियस ने मरने के पहले अपने शिष्यों को बुला कर पूछा था कि, मेरे मुहँ में कितने दाँत हैं? उत्तर मिला, एक भी नहीं। उस ने फिर पूछा और जीभ के क्या हाल हैं? तो उत्तर मिला, वह सही सलामत है। उस ने कहा जीभ जन्म से मेरे साथ थी और मरते दम तक साथ निभाएगी। लेकिन छह-सात की उम्र में आए दांत पहले ही साथ छोड़ गए। तो व्यक्ति का जीवन दांत की तरह कठोर नहीं हो कि जो सामने आया उसे ही काट दिया। वह जीभ जैसा हो, विनम्र। उसे दांतों ने अनेक बार काटा होगा। लेकिन उस ने एक बार भी प्रतिवाद नहीं किया। लगभग रोज ही दांतों को कष्ट होने पर उन्हें सहला कर आराम देती रही। दांत नष्ट हो गए, जीभ चिरयौवना है।
भैया, आप की जैसी विनम्रता सब हिन्दुस्तानी अपनाने लगें तो यह हिन्दुस्तान स्वर्ग हो जाए।
आप के आज के प्रश्न का उत्तर पूरी पोस्ट मांगता है। कोशिश करूंगा पूरे विश्लेषण के साथ 'अनवरत' पर प्रस्तुत करूँ। आप का बहुत बहुत धन्यवाद।
मेरे लिए ईश्वर और भगवान एक ही परम शक्ति के दो नाम हैं. मैं उसे परमात्मा भी कहता हूँ. मैं उसे राम,क्रष्ण, शिव, गणेश, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती न जाने कितने नामों से जानता हूँ. कोई उसे अल्लाह कहता है, कोई उसे कहता है बुद्ध, कोई महावीर, कोई वाहे गुरु, जिस की जैसी श्रद्धा है, जैसा विश्वास है वह उसी रूप में जानता है और पुकारता है.
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