रविवार, 12 अप्रैल 2009

कैटवॉक करती भारत की जनता

कुछ दिनों से देख रहा हु राजनीति में नए नए प्रयोगों किये जा रहे है सभी का रंग ढंग बदला है कारण एक मात्र सत्ता की चाहत , सभी चाहते है सत्ता सुंदरी का रसपान करना यहाँ मै एक बात जरुर कहना चाहुगा जो मेरी नहीं बल्कि " मोहल्ले " से ली गई है उन्होंने बहुत अच्छी बात लिखी थी "सम्मान भीख में नहीं मिलता और इज्जत बेचारों की बीवी का नाम नहीं हो सकता। पत्रकारों को पहले खुद अपने सम्मान के लिए आवाज उठानी होगी। उन्हें खुद कहना होगा कि हम न तो रैंप पर चलेंगे, न विज्ञापन के लिए कलम बेचेंगे। अगर दम है तो बात करो, दम से बात करो। वरना जोकर लगोगे और जमाना ऐसे ही रैंप पर घुमाएगा।" इन वाक्यो में बहुत दम है पर इसे वृहत रूप में देखे तो ये देश पर भी लागु होती है चंद लोगो को रैंप पर कैटवॉक क्या कराया सारे बरस पड़े उन पर , इसमें बुधजिवी से लेकर बाकि भी शामिल थे..... पर उनका क्या जो ६० साल से हमें और सारे देश को कैटवॉक कराते चले आरहे है हा मै राजनीति की ही बात कर रहा हुं पुरे ६० साल से भी ज्यादा हो गए जनता और देश को कैटवॉक कराते कभी कपडे के तो कभी बिना कपडे के तब हम क्यों कुछ नहीं कर पाए मुझे याद है एक बात और किसी ने लिखा था गर्व से कहो हम चूतिये है

 ये भी सच है


 

 

 

 

अब अभी नहीं समझे चलिए और बताता हु


 

 

 

 

इन सभी महानुभाओ को तो आप पहचानते ही होगे जी हां ये वहीहै भारत के भाग्यविधता माफ़ कीजिये भावी भारत के भाग्य विधता जिन्होंने हर ५ साल में वही बाते करने , दुहराने , सपने दिखाने का बीडा उठाया है और हासील सिफर , इस बार फिर वैसा ही या उससे कुछ ज्यादा हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अब हम २१ वि सदी में जो है सवाभाविक है सब कुछ बदलेगा तो भारतीय राजनीति क्यों नहीं इन सब के बावजूद सब खुद को बुद्धिमान और और दुसरे को ....... साबित करने में लगे है राजनितिक गठजोड़ और सत्ता सरकार के लिए लुका छिपी का खेल किसी से छुपा नहीं जग जाहिर है इतने पर भी हिंदुस्तान की जनता का मन नहीं भरा और वो फिर से एक संसद कांड और न जाने कितने गठजोड़ घोटालो को आमंत्रित करने फिर से वोट डालने वाले है ये मै इस लिए कह रहा हु क्यों की आज तक तो सब ऐसे ही चलता आया है तो अब क्यों नहीं और क्या बदलेगा मै किसी पार्टी राजनीति का पक्षधर नही हु मै जो कह रहा हु वो तथ्यों के आधार पर ही ना कि वास्तविकता से परे साहित्यकार की तरह महज कल्पना मात्र. जो वर्तमान और उनकी परेशनियों को भूल कल्पनाओ में जीता है

चलिए इनसे पूछते है इन्हें छठ्वां वेतन मान मिला की नहीं ? सामान्य केंद्रिय कर्मचारी ६०००० और ४०००० वेतन पा रहा है इसके पास क्या है ?


 

 

 

 

 

 

ये है ६० साल में हमारा राजनीत परिपेक्ष. युवा की बात करे तो उनकी अपनी परिभाषा है उन्हें देश से कोई मतलब नहीं उन्हें मतलब है युवा नेता से जिसके भाषण की शुरुवात केंद्र ने पैसे भेजा और उसका उपयोग नहीं किया यही है ५ मिनिट का भाषण इसके आगे सब ख़त्म उसके बाद प्रश्न उत्तर काल शुरू हो जाता है हमारे युवा शायद दुसरे मनमोहन सिंग की फिराक में है या यु कहे इन्हें वर्तमान प्रधानमंत्री बहुत पसंद है वैसे इसमें इन युवाओ का भी दोष नहीं क्यों की वे अभी तक हायर एजुकेशन , बड़ी नौकरी [वो भी विदेश में ] ,सुन्दर लड़की और पब संस्क्रति से ही नहीं उबर पाए है।

मुझे याद है वर्ष २००० में मेरा सामना गैस कनेक्शन के सिलसिले में दुकान दार से हुआ जिसने मुझे सलाह दी की आप गैस कनेक्शन ट्रांसफर करा के क्या करेगे आप अभी नया ले लीजिये जिस गैस कनेक्शन को मैंने सांसद और विधायक कोटे से प्राप्त किया था वो ऐसे ही चला गया . अब क्या करता ये थे भाजपा के ५ साल के कारनामे ६० ६५ साल में आज तक कभी गैस कनेक्शन और गैस इतने सुलभ कभी नहीं देखे जितने वर्ष २००० में थे ।

ठीक वैस ही व्यवसाय का रूप ले चुकी राजनीति को वश में करने के लिए २००० में ही विधेयक पास हुआ दलबदल कानून और मंत्रीमंडल विस्तार कानून जी हा ९० मंत्री थे साहब युपी  में , किसी कवि ने इसका अच्छा उदाहरण देते हुए कहा था कि युपी में थूकना भी है तो देखा कर थूकना पड़ता है की कही मंत्री जी पर ना गिर जाये इसके लिए भी हमें ५० साल लग गए .

गाव में सड़क तो दूर दूर तक दिखाई नहीं देती थी जिसके लिए हर ५ साल में कांग्रेसी वादा करते आये और ५० साल गुजर दिए वह भी इसी कार्यकाल में पूरा हुआ

एक महत्वकान्क्षी योजना और थी भारत के पास जमीन तो बहुत है पर पानी नहीं उसके लिए नदियों को जोड़ने की योजना प्रारम्भ की थी पर वर्तमान सरकार के आते ही सब बंद इन्हें अपने ही फार्म हॉउस में पानी पहुचने से फुर्सत मिले तो ये आपके लिए सोचे अभी तक ६ पंचवर्षीय योजनाये इस देश में पूरी हो चुकी है और सातवी आने वाली है शायद अब बताइए की आप और देश का कितना विकास हुआ है ये सब मै राजनीति से प्रेरित हो कर नहीं बल्कि भारतीयता से प्रेरित हो कर कह रहा हु

                                                                भारतीयों पर पोटा और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्यवाही और आतंकवादी को रिहा ये है मेरे भारत की महानता अब्ब्जल और कसाब इसका प्र्त्यक्ष उदाहर्ण है ६० साल फिर भी कोई लेखा जोखा नहीं चारो ओर से घुसपैठ और आतंकी गतिविधिया जोरो पर है पर हमारे नेता तो राजनीति में मशगुल है कोई ठोस कार्यवाही नहीं बस कर्ज लो और स्विस बैक में बैलेन्स बढ्वो अगर आप पुरे देश में आंतकवादी गतिविधियों में बंद किये गए कैदियो की सख्या और उन पर होने वाले खर्च का आकडा देखे तो चौकनेवाले तथ्य सामने आयेगे बावजूद इसके मेरा भारत महान और मेरे देश वासी ऊससे ज्यादा महान,  महानता में तो हमने बहुत रिकार्ड बनाये है क्या २०० साल की गुलामी ने हमारे ऊपर इतना गहरा असर किया है की आज हम फिर से गुलामी में जीना चाहते है पहले अंग्रेजो की और इन ५० साल वाली सरकार की क्या हो गया है इसलिए दोस्त इसे दोबारा पढो

"सम्मान भीख में नहीं मिलता और इज्जत बेचारों की बीवी का नाम नहीं हो सकता। भारतीयों को पहले खुद अपने सम्मान के लिए आवाज उठानी होगी। उन्हें खुद कहना होगा कि हम न तो शोषित होगे , ना कपडे उतारेगे । अगर दम है तो बात करो, दम से बात करो। वरना जोकर लगोगे और नेता ऐसे ही रैंप पर घुमाते रहेगे ।"

 

एक भारतीय के आवाज

आगे पढे .....

 

 

 

 

 

 

 

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काशिफ आरिफ

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