''कठिन राहो से गुजरे बिना
मिल जाए , फूलो की घाटियाँ यह
मुमकिन नही।
बढ़ चलो ,हम राह पे , सोच मंजिल
निकट।
दृढ संकल्प से भरे , लक्ष्य मुमकिन नही ॥ ''
पर्वत श्रृंखलाओ के मध्य ,
पग धरे सोच कर ।
असफलताओ को धकेल कर
हम आगे बढे, मंजिल अपनी यह
अन्तिम नही।
दिनेश अवस्थी
इलाहाबाद बैंक
उन्नाव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके टिप्पणी करने से उत्साह बढता है
प्रतिक्रिया, आलोचना, सुझाव,बधाई, सब सादर आमंत्रित है.......
काशिफ आरिफ