शुक्रवार, 19 जून 2009

जीने के लिए भी वक्त नही.......

आज अपना पुराना ब्लॉग देख रहा था। जो मैंने आज से ३ साल पहले बनाया था Rediffblogs पर जब ब्लॉगर ठीक से काम नही कर रहा था। उस ब्लोग को एक साल पहले से इस्तेमाल करना बन्द कर दिया था तो आज वहां पर एक कविता मिली जो पता नही किसने लिखी थी, और मैने कहां पढी थी, लेकिन अच्छी लगी थी तो उसे मैने अपने ब्लोग मे लिख दिया था तो सोचा उसे आप लोगो को भी पढा दूं।


हर खुशी है लोगों के दामन मे,
पर एक हँसी के लिए वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिंदगी के लिए ही वक्त नही.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नही.

सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही.

आंखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नही.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही.

पैसों की दौड़ मे ऐसे दौडे,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.

तू ही बता ऐ जिंदगी,
इस जिंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नही.......




3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी रचना है। उस अज्ञात कवि को बधाई।

    पास नहीं है वक्त मेरे यही वक्त की बात।
    वक्त खुशी ले आयेगा कोशिश है दिन रात।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  2. बढिया रचना प्रेषित की है।कवि को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्‍छी भाव भूमि की रचना है। अच्‍छा किया आपने इसे यहां देकर। शुक्रिया।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    जवाब देंहटाएं

आपके टिप्पणी करने से उत्साह बढता है

प्रतिक्रिया, आलोचना, सुझाव,बधाई, सब सादर आमंत्रित है.......

काशिफ आरिफ

Related Posts with Thumbnails