आज अपना पुराना ब्लॉग देख रहा था। जो मैंने आज से ३ साल पहले बनाया था Rediffblogs पर जब ब्लॉगर ठीक से काम नही कर रहा था। उस ब्लोग को एक साल पहले से इस्तेमाल करना बन्द कर दिया था तो आज वहां पर एक कविता मिली जो पता नही किसने लिखी थी, और मैने कहां पढी थी, लेकिन अच्छी लगी थी तो उसे मैने अपने ब्लोग मे लिख दिया था तो सोचा उसे आप लोगो को भी पढा दूं।
हर खुशी है लोगों के दामन मे,
पर एक हँसी के लिए वक्त नही.
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
जिंदगी के लिए ही वक्त नही.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक्त नही.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नही.
सारे नाम मोबाइल में हैं,
पर दोस्ती के लिए वक्त नही.
गैरों की क्या बात करें,
जब अपनों के लिए ही वक्त नही.
आंखों मे है नींद बड़ी,
पर सोने का वक्त नही.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक्त नही.
पैसों की दौड़ मे ऐसे दौडे,
की थकने का भी वक्त नही.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही.
तू ही बता ऐ जिंदगी,
इस जिंदगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक्त नही.......
अच्छी रचना है। उस अज्ञात कवि को बधाई।
जवाब देंहटाएंपास नहीं है वक्त मेरे यही वक्त की बात।
वक्त खुशी ले आयेगा कोशिश है दिन रात।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बढिया रचना प्रेषित की है।कवि को बधाई।
जवाब देंहटाएंअच्छी भाव भूमि की रचना है। अच्छा किया आपने इसे यहां देकर। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }