आगरा में पिछ्ले कुछ दिनों से "आगरा नगर निगम" की देखरेख में आगरा की "लाइफ़ लाइन" महात्मा गांधी मार्ग की मरम्मत का काम चल रहा है। शुरुआत सडक के बीच मे बने "डिवाइडर" से की गयी है, इस पर लगे टुटें टाइल्स को बदलकर नये लगायें जा रहे है और फिर उस पर रंग किया जायेगा। उसके बाद कई जगह सडक को चौडा भी किया जायेगा। हमारी मेयर अंजुला जी, ने ये आदेश दिया जो कि बहुत अच्छा कदम है लेकिन मेरी उनसे एक शिकायत है कि वो इन सब के बीच में एक बहुत महत्वपुंर्ण बात भुल गयी है वो ये कि वो जिस "डिवाइडर" कि मरम्मत करा रही है उस डिवाइडर पर लगे पेडों को भी उनकी तवज्जों की ज़रुरत हैं।
डिवाइडर पर कुछ सुखे पेड
ये सडक हमारे शहर की जान है और अगर आप उस पुरी सडंक पर नज़र दौडायेंगे तो डिवाइडर मे लगे पेडों में से आपको सिर्फ़ १० से १५ पेडं मिलेंगे जो हरे है बाकी पेडों मे से कुछ पुरी तरह सुख चुके है और बाकी सुखने वाले है। इन पेडों के हालात बहुत खराब है किसी पेड के तने के पास इतनी जगह नही है की वहां थोडा बहुत पानी जमा हो सकें, किसी के पास कुडा जमा है, किसी के पास मिट्टी जमा है, वैसे भी हमारे ठेकेदार सारा कुडा -करकट और कंकर डिवाइडर में भरवाते ह। क्या डिवाइडर बनाने और बनवाने वालो ये पता नही है की पेडों के तने के पास क्यारी बनायी जाती है ताकि उसमें थोडा बहुत पानी इकट्ठा हो सकें? बारिश का पानी कहां जायेगा? अरे ये बात तो एक छोटे बच्चे को भी पता होती है लेकिन हमारे नगर निगम के ठेकेदारों को पता नही है और ना ही अधिकारियों को पता है।
पेड के तने में जमा हुआ कुडा और मिट्टी
हमारे आगरा में सडक के किनारे और बीच में लगे पेडों सबका यही हाल है किसी पेड के पास क्यारी नहीं बनायी गयी है। कई जगह तो इतनी जगह भी नही छोडी है कि थोडा बहुत पानी उसके अंदर जा सके यदि आप मुख्य सडक से हटकर पचंकुइयां चौराहे से होते हुए कोठी मीना बाज़ार की तरह जायेंगे तो वहां पर बने डिवाइडर में पेडों के आसपास काफ़ी जगह छोडी गयी है, मिट्टी में कंकड भी बहुत कम है, रोज़ दिन में एक दो बार नगर निगम का टैंकर पानी डालता है और अभी दो दिन पहले उन सब क्यारीयों की सफ़ाई की गयी है, जो पेड सुख चुके थे उन्हे बदलकर नये पेड लगा दिये गयें है। अगर आप हरीपर्वत चौराहे से दिल्ली गेट की तरफ़ जायेंगे तो वहां भी क्यारीयां बनी हुई है और मुख्य सडक के मुकाबले यहां पर पेड के तनों के पास सफ़ाई है और यहां पेड हरे है और काफ़ी अच्छी तरह बडें हो रहे है।
एक छ्ह फ़ुट का पेड जो सुख चुका है
किसी आम आदमी के पास इतना वक्त नही है की वो अपने घर के पास या दुकान के सामने लगे पेड में दिन में थोडा बहुत पानी डाल दें, हमारी आखों के सामने पेड सुख जाता है और हम देखते रह्ते है और आखिर में सारा इल्ज़ाम नगर निगम पर डाल कर हम बरी हो जाते है। क्या हमारी कोई ज़िम्मेदारी नही बनती? कभी सोचा है कि इसमें हमारा ही फ़ायदा है अगर तुम्हारी दुकान, घर या आफ़िस के आस-पास अगर दो-चार हरे-भरे पेड होगें तो तुम्हे छावं मिलेगी, ठन्डी हवा मिलेगी, पेड फ़लदार हुआ तो फ़ल मिलेगा, फ़ुलदार हुआ तो रोज़ सुबह ताज़े फुलों की खुश्बु सुघंने को मिलेगी, लेकिन नही हम लोगो ने तो कसम खा रखी है चाहे जो हो जाये हम कुदरत के साथ नहीं चलेंगे।
अब तो सुधर जाओं जुलाई की १५ तारीख हो चुकी है और आगरा में अभी एक दिन भी बारिश नही हुई है सिर्फ़ एक-दो बार थोडी सी बूंदे गिरीं है और आज खबर आयी है की अरब सागर से आने वाला मानसुन अब नही आयेगा क्यौंकी वहां दबाव खत्म हो चुका है अब सिर्फ़ खाडी से उम्मीद है अब देखते है वो भी आता है या नही...अगर खाडी से नही आया तो फिर कहीं से नहीं आयेगा....
फिर पानी कहां से लाओगें???
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके टिप्पणी करने से उत्साह बढता है
प्रतिक्रिया, आलोचना, सुझाव,बधाई, सब सादर आमंत्रित है.......
काशिफ आरिफ