लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट में भाजपा और संघ के लोगों को दोषी माना है बाबरी विध्वंस का लेकिन क्यौंकि ये रिपोर्ट कांग्रेस शासन में आयी है तो इस लिहाज़ से इसका असर उस पर पडना लाज़मी था और पडा भी. जस्टिस लिब्राहन ने अपनी लगभग एक हज़ार पेज की रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव जी को निर्दोष माना है जोकि गलत है क्यौंकि पी.वी. नरसिम्हा राव जी को सब कुछ पता था और वो इस साजिश में दिली तौर पर शामिल थे।
उन दिनों केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और पी.वी. नरसिम्हा राव जी प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री जी और केन्द्र सरकार बाबरी को बचाने के लिये कितना गंभीर था इसके बारे में फ़ैज़ाबाद के वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह जी बता रहें है उनके अनुसार, "उन्होने इस संबंध में 27 नवंबर 1992 को ही प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह को बता दिया था कि बाबरी मस्जिद गिराने की पूरी योजना तैयार हो गई है। तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने जब पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार से इस्तीफ़ा दिया था, तो तीसरा मुद्दा इसे भी बनाया था कि मैंने फ़ैक्स ग्रह मंत्री को भेज दिया था, लेकिन सुरक्षा के लिये सरकार ने कोई कदम नही उठाया।"
जब कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो दूसरे दिन अपनी मंत्रीपरिषद के साथ "रामलला हम आए हैं, मंदिर यहीं बनाएगें" की शपथ ली थी। इसी व्यक्ति ने विवादित ढांचे को बचाए रखने के बारे में राष्टीय एकता परिषद को वचन और सर्वोच्च न्यायालय में शपथ पत्र दिया था। इन दोंनों शपथों में से एक को टुटना ही था। कल्याण सिंह ने पहली शपथ पूरी की। कारसेवकों ने अल्पसंख्यक धर्मस्थलों को निशाना बनाया, लेकिन इस संबंध में एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नही चलाया गया, न ही किसी को गिरफ़्तार किया गया। इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आखिर प्रशासन की क्या मंशा थी। जब कारसेवकों ने बाबरी को गिराना शुरु किया, तब किसी पुलिस वाले के पास बंदुक नहीं थी।
बाबरी मस्जिद की रक्षा के प्रति केंद्र सरकार कितनी प्रतिबद्द थी, इसका पता दिन के 12 बजे ही चल गया था, जब केन्द्रीय सुरक्षा बलों को साकेत महाविध्यालय के पास से आगे जाने के बजाय वापस कर दिया गया था। कल्याण सिंह का इस्तीफ़ा पौने तीन बजे ही तैयार हो गया था। जब शीतला सिंह जी ने प्रधानमंत्री को फ़ोन किया कि वह इस्तीफ़ा स्वीकार कर राष्टपति शासन लगाकर चाहें तो बाबरी के दो गुम्बदों को बचा सकते है, तो साढें बारह बजे तक निरंतर संपर्क में रहने वाले प्रधानमंत्री के सचिव ने बताया कि वह फ़ोन पर नहीं हैं, प्रयत्न करता हूं। तब फ़िर फ़ोन पर मंत्रिमंडलीय सहयोगी और प्रधानमंत्री के राजनीतिक सलाहकार जितेंद्र प्रसाद ने कहा कि मैं पांच मिनट में बताता हूं लेकिन वह फ़ोन पर चार मिनट में ही लौटकर आए और कल्याण सिंह के प्रति नाराज़गी ज़ताई। उन्होने कहा, मैं इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं करुंगा, उन्हें बर्खास्त करुंगा। मैनें उसी समय कहा कि मंत्री जी, मैं इसके निहितार्थ जानता हूं आप बर्खास्तगी के लिए तीन घंटे का समय चाहते है, ताकि विध्वंस पूरा हो जाये लेकिन वह "नहीं" कहकर चुप हो गये।
उत्तर प्रदेश में राष्टपति शासन छ्ह दिसंबर को रात 8:20 बजे लगा, जब बाबरी मस्जिद पूरी तरह शहीद हो चुकी थी, उसको ढहाने का काम पूरा हो चुका था। लेकिन अस्थाई मंदिर का निर्माण सात दिंसबर को दिन भर में राष्टपति शासन के दौरान ही हुआ। उस दिन मुसलमानों के गरों और मस्जिदों को निशाना बनाया गया। राष्टपति शासन के दौरान उत्पात मचाने वाले और आगज़नी करने वाले किसी भी एक व्यक्ति को गिरफ़्तार नहीं किया गया। आज भी उस घटना के खिलाफ़ कोई मुकदमा दर्ज नही हैं। कारसेवकों की अयोध्या से रवानगी के लिये स्पेशल गाडियों और बसों की व्यवस्था तो राष्टपति शासन के दौरान ही कराई गई।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल सत्यनारायन रेड्डी ने अपनी एक सप्ताह पहले की रिपोर्ट में साफ लिखा था कि अयोध्या में पूरी शांति है। नरसिंह राव की सरकार उसी रिपोर्ट को ब्रह्म वाक्य मानकर शांत बैठी थी। प्रदेश सरकार ने अर्ध सैनिक बल मांगे थे, लेकिन वे बैरकों में विश्राम कर रहे थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य अर्जुन सिंह दो दिन पहले अयोध्या तक गए थे। वहां की हालत को उन्होंने देखा था। उन्होंने प्रधानमंत्री को क्या कहा, यह अभी तक गोपनीय है। इस दुर्घटना के थोड़े दिन पहले उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बदले गए। निष्पक्ष महानिदेशक, जो गंभीरतापूर्वक सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का वहां पालन कर रहे थे उन्हे हटाने से भी भारत सरकार चौकन्ना नहीं हुई।
खेद है कि लिब्रहान आयोग ने एक हजार पृष्ठ की रपट में तत्कालीन केंद्र सरकार की गतिविधियों की कोई समीक्षा नहीं की है। विवादित ढांचे का पहला गुंबद गिरने के साथ ही प्रदेश सरकार बाहर हो गई। केंद्रीय सरकार को तत्काल पहल करनी थी। घंटों के परिश्रम से घटनास्थल का मलबा साफ होता रहा। उसके अवशेष खत्म किए जाते रहे, फिर से उसी स्थान पर मूर्ति रखकर कपड़े की छाजन से मंदिर बनता रहा, लेकिन केंद्र सरकार के प्रतिनिधि व रक्षा बल मूकदर्शक बने रहे। खेद है कि लिब्रहान आयोग ने केंद्र सरकार के गैरजवाबदेह, संदेहयुक्त रवैये की कोई चर्चा नहीं की है।
भाजपा को नाराजगी है कि अटल बिहारी वाजपेयी का नाम नाहक घसीटा गया है। क्या वाजपेयी रामजन्म भूमि आंदोलन के शुरुआती दौर में ताला खोलो आंदोलन के समय सत्याग्रह में जेल नहीं गए थे? क्या आडवाणी की रथयात्रा का प्रारंभ उन्होंने खुद झंडी दिखाकर नहीं किया था? प्रारंभ में तो भाजपा कहती थी कि यह विहिप का आंदोलन है, मेरा इसे नैतिक समर्थन है। बाद में उन्हे इस आंदोलन से अपार जन समर्थन की उम्मीद जगी तो अपनी राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पूरी सहभागिता की घोषणा कर दी। क्या वाजपेयी उस बैठक में शामिल नहीं थे? रथयात्रा के समय बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापसी का पत्र लेकर राष्ट्रपति के यहां वाजपेयी नहीं गए थे? रथयात्रा रोकने की चर्चा पर क्या वाजपेयी ने बयान नहीं दिया कि यदि रथ रोका गया तो हम सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे? क्या विवादित ढांचे के ध्वंस के लिए जिम्मेदार नेताओं की रिहाई के लिए उन्होंने अनशन नहीं किया? फिर किस आधार पर उन्हे पाक साफ कहा जा सकता है। लिब्रहान ने उनकी सभी गतिविधियों की सम्यक समीक्षा तो नहीं की है, किंतु उनके संबंध में आयोग की सरसरी टीका को झूठा भी नहीं कहा जा सकता। वास्तविक स्थिति की समीक्षा पर कमीशन का ध्यान कम ही गया है।
इस घटना के लिए संघ परिवार ही मुख्य जिम्मेदार है और भाजपा, विहिप, बजरंगदल के नेता उसकी कठपुतली मात्र, यह बात तो कोई भी समझता है। संघ परिवार से निपटने के लिए संसद और सरकार को क्या करना चाहिए, इसका कोई दिशा-निर्देश नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण तो है कि भारत सरकार भी आयोग के घरौंदे से बाहर जाकर इस सबसे बड़ी घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित करने के बारे में शांत है। उसकी एक्शन टेकेन रिपोर्ट आयोग की मूल संस्तुतियों को कहीं आगे नहीं बढ़ाती। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मनमोहन सिंह सरकार के अधिकांश वरिष्ठ मंत्री राव के भी सिपहसालार थे। जैसे उन सारी दु:खद घटनाओं पर तब मूकदर्शक थे आज भी वैसे ही हैं। लिब्रहान ने एक गंभीर सवाल को उठाया है कि शासन कर्तव्य पालन अफसरशाही के माध्यम से करता है और भारत का सरकारी अमला सांप्रदायिक आधार पर विभक्त है। जाति, धर्म, स्थान का बैरियर इतना जबर्दस्त है कि अपने कर्तव्यपालन में पूरी त्रुटि दिखाई देती है।
बाबरी को शहीद करने में कांग्रेस का भी बराबर का हाथ था क्यौंकि सबसे पहले नेहरु जी ने बाबरी के विवादित परिसर के दरवाज़े का ताला खोला था। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हमेशा परदे के पीछे से खेल खेला है बाबरी विध्वंस के बाद भाजपा की सरकार बनी, उन्हे नज़दीक में फ़ायदा हुआ लेकिन हमेशा के लिये मुसलमानों के वोट उनसे छिन गये जबकि कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों की हिमायती बनकर अलग-अलग राज्यों में से मुसलमानों के वोट बैकं पर कब्ज़ा किया। बाबरी को गिराना दोनों चाहते थे लेकिन बस भाजपा और संघ ने ये सब खुलेआम किया और कांग्रेस ने परदे के पीछे से।
तब से लेकर अब तक मुस्लमान और उसका वोट एक फ़ुट्बाल बन गया है जो इन नेताओं के द्वारा एक गोल से दुसरे गोल की तरफ़ ठोकर मारकर ले जाया जाने लगा है। जो अच्छा वक्ता है, जो अच्छा खिलाडी है वो मुस्लमानों की भावनाओं को भडकाकर, उनका इस्तेमाल करकर अपना उल्लु सीधा कर रहा है.....
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बाबरी को गिराना दोनों चाहते थे लेकिन बस भाजपा और संघ ने ये सब खुलेआम किया और कांग्रेस ने परदे के पीछे से…। पूरी तरह सहमत
जवाब देंहटाएंऔर फ़िर भी मुसलमान भाजपा से अधिक दूरी बनाये हुए हैं… वे समझते हैं कि कांग्रेस उनका भला करेगी… लेकिन अभी सच्चर समिति के बहाने मुर्गी को दाना डाला जा रहा है, जैसे ही उत्तरप्रदेश की सत्ता रूपी मुर्गी हाथ आयेगी… कांग्रेस हमेशा की तरह मुसलमानों को भूल जायेगी… यदि 60 साल के विभिन्न कांग्रेस शासनकालों के दौरान हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों का हिसाब देखा जाये तो नरेन्द्र मोदी भी शर्मा जायेंगे…, लेकिन यह बात मुस्लिमों के बीच पहुँचायेगा कौन?
उन्हें तो कभी मुलायम, कभी मायावती, कभी राहुल बाबा तो कभी अज़हरुद्दीन-अबू आज़मी जैसा कोई भी बरगला सकता है।
suresh ji sehmat
जवाब देंहटाएंdo
जवाब देंहटाएंdo
जवाब देंहटाएंबाबरी को शहीद करने में कांग्रेस का भी बराबर का हाथ था
जवाब देंहटाएंaapne hamari awaz bhot ache tareeqe se rakhi,allah apko iska badla dega.
जवाब देंहटाएंढ़ाचे को किसने गिराया, विवाद हो सकता है. मगर मन्दीर बाबर ने गिराया था यह निर्विवाद है.
जवाब देंहटाएंसन्जय जी से सहमत
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने...ये सब लोग दोषी है
जवाब देंहटाएंये नेता पता नही अपने आपको क्या समझते है जिसको देखों हमारी भावनाओं से खेलता रहता है...
जवाब देंहटाएंबाबरी मस्ज़िद का ज़ख्म क्या कम है जो बेवजह ही ढहा दी गई
100% सहमत..! राव का इस नाजायज़ काम को नैतिक तौर पर सर्मथन था...वो खुद से चाहते थे की बाबरी मस्जिद को तोडा जाये....
जवाब देंहटाएंसहमत....बहुत सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंवाह मज़ा आ गया....क्या तथ्य निकाल के लायें है...बहुत रिसर्च वाला लेख
जवाब देंहटाएंसुरेश जी, मुझे पता था की इस लेख पर आपकी टिप्पणी मिलेगी और समर्थन भी....
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही है लेकिन भाजपा के खिलाफ़ मुस्लमान क्यौं वो पता है लेकिन एक बार फ़िर से बता देता हूं...
फ़ैज़ाबाद में हिन्दुओं के अनुसार राम मंदिर था और वो भगवान राम का जन्म स्थान है....लेकिन मन्दिर वहां था या नही इसका कोई ठोस सबुत नही था और ना हैं लेकिन फ़िर भी हिन्दुओं को बाबर हमेशा आतंकी लगा और बाबरी तोडने के बाद लोगों बाबरी की ईंटों का बाबर की हड्डियां कहा.....कोई हिन्दु उसे कभी माफ़ नही कर सकता क्यौंकि उन लोगों ने आपके अनुसार मन्दिर तोडें है........
जब भारत के हिन्दु उस काम के लिये जिसका कोई सबुत नही है बाबर या और किसी मुगल को माफ़ नही कर रहे है...
तो आप मुस्लमानों से कैसे उम्मीद कर सकते है कि उन लोगों को माफ़ कर दे जिन्होने पुरी दुनिया के सामने उनका धर्मस्थल, उनकी मस्ज़िद, जिसे अल्लाह का घर कहा गया है कुरआन में....उसे तोडा है और वो हर साल उसे शौर्य दिवस के रुप में मनाते है.......
रामपाल जी,
जवाब देंहटाएंकिसी और की बात पर सहमती देने से पहले थोडा सोच लिया किजिये
सियाना जी और १० जी...
जवाब देंहटाएंकम से कम कुछ तो लिखते भाई पोस्ट के विषय में.....
खालिद जी,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी का शुक्रिया
बिलाल भाई,
जवाब देंहटाएंमैं ये सब बदले के लिये नही कर रहा हूं बस कुरआन में अल्लाह ने "नाइंसाफ़ी के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का जो हुक्म दिया है उस पर अमल करने कोशिश कर रहा हूं....और इस कोशिश को कामयाब करने के लिये आप जैसे दोस्तों के साथ की ज़रुरत है...
ऐसे ही आते रहे और हौसला बढाते रहें
संजय जी,
जवाब देंहटाएंढांचा नही मस्ज़िद कहिये....आप उलटा बोल गये...मस्ज़िद को किसने गिराया ये जगज़ाहिर है और ये मैं अगले लेख में आपको बता दुंगा....
लेकिन बाबर ने मन्दिर गिराया ये विवादित है क्यौंकि जिस मन्दिर के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा हुआ हो....उसके गिराने की बात तो बाद में आती है...
1853 मे पहला दंगा हुआ था...उसके बाद से अबतक तो कोई साबित नही कर सका की वहां मन्दिर था....अगर आप कर सकते है तो कर दिजिये....
धीरु जी, किसी की बात से सहमति जताने से पहले अपने दिमाग का भी इस्तेमाल की जाता है....
जवाब देंहटाएंढांचा नही मस्ज़िद कहिये....आप उलटा बोल गये...मस्ज़िद को किसने गिराया ये जगज़ाहिर है और ये मैं अगले लेख में आपको बता दुंगा....
लेकिन बाबर ने मन्दिर गिराया ये विवादित है क्यौंकि जिस मन्दिर के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिंह लगा हुआ हो....उसके गिराने की बात तो बाद में आती है...
1853 मे पहला दंगा हुआ था...उसके बाद से अबतक तो कोई साबित नही कर सका की वहां मन्दिर था....अगर आप कर सकते है तो कर दिजिये....
कहंकंशा आपकी बात से सहमत..बाबरी विध्वंस का ज़ख्म बहुत बडा है और इसको बर्दाश्त करना बहुत मुश्किल है..........
जवाब देंहटाएंअगर वह मस्जिद थी तो वहां नमाज़ क्यो नही पढी जाती थी
जवाब देंहटाएंयह सब हनुमानजी की घोर लापरवाही के कारण हो रहा है, उनको रामजी ने हमेशा जिन्दा रहने का वरदान दिया था अर्थात आप चिरंजवी थे, फिर भी आपने बाबर के सेनापति मीर बाक़ी को जब वह मन्दिर तोड रहा था, न रोका न गदा का शिकार बनाया, उन्होंने ऐसा क्यूँ क्या? जब हनुमानजी चिरंजीव हैं और पहाड भी उठाने में समर्थ हैं तो अब VHP की तैयार कराई शीलाऐं किसी रात में रखकर राम मन्दिर बना दें, मन्दिर बन जायेगा तो सारा झगडा ही खत्म होजाएगा, आओ हम सब हनुमान जी जो जीवित हैं से प्रार्थना करें कि वह अब लापरवाही न बरतें
जवाब देंहटाएंधीरु सिंह जी,
जवाब देंहटाएंनमाज़ तो वहां पढी जाती थी लेकिन 1853 में हुये दंगे के बाद से केस सुप्रीम कोर्ट में था इसलिये वहां कभी कभी नमाज़ होती थी जो आखिर में बिल्कुल बन्द हो गयी थी...........
waah kashif kya zabardast jawab diya hai SURESH CHIPLUNKAR ka muunh band kar diya...
जवाब देंहटाएंlaut kar jawab dene nahi aaya hai
waah kashif kya zabardast jawab diya hai SURESH CHIPLUNKAR ka muunh band kar diya...
जवाब देंहटाएंlaut kar jawab dene nahi aaya hai