(वैधानिक चेतावनी – इन दोनों उदाहरणों में पात्र व घटनायें वास्तविक हैं, इनका जीवित व्यक्तियों से सम्बन्ध है, हिन्दी ब्लॉग जगत से तो बिलकुल है…)
दुसरों को गरियाओं और मशहुर हो जाओं..!!! आज के दौर का सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला तरीका....या ये कहें की हर दौर का मशहुर होने का सबसे आसान तरीका.....
विवादित बयान से पहले किसी को वरूण गांधी का नाम मालुम था??
विवादित टिप्पणी से पहले कोई रीता बहुगुंणा को जानता था????...... इस बात पर एक शायर की कही एक लाईन याद आ रही है...
"बदनाम हुऎ तो क्या नाम ना हुआ"
वर्ल्ड रेसलिंग ऎंटर्टेनमेंट का चेयरमैन "विन्स मैकमोहन" एक बात हमेशा कहता है "Controversies Makes Money" अर्थात "विवादों से पैसा बनता है"। इसी तर्ज पर हिन्दी ब्लाग जगत के "कुछ नये और पुराने (अनजान) ब्लोगर" टिप्पणीयां करके विवाद पैदा कर रहे हैं।
उदाहरण क्रमांक :- १
मैने पिछ्ले लेख में एक शख्स का ज़िक्र किया था जिसे हिन्दी ब्लोगिंग में आये हुये "जुम्मा-जुम्मा आठ दिन हुये है" और उसने आते ही एक धर्म के उपासकों, धर्मग्रन्थ और धर्म को गाली देना शुरू कर दिया। ये काम उसने सलीम खान के स्वच्छ सन्देश : हिन्दोस्तान की आवाज़ ब्लोग पर टिप्पणी देकर शुरू किया...उसकी देखा-देखी और लोग भी शुरु हो गये....वो क्या है न हम हिन्दुस्तानी भेड-चाल में विश्वास रखते है ना......खुद तो कुछ करते नही है और एक के चलते ही सब उसके पीछे चल पडते हैं.....चाहे वो कानुन का पालन करना हो या कानुन को तोडना......
गरियाने का फ़ायदा :-
उस शख्स को गरियाने का फ़ायदा मिला की उसके ब्लोग जिस पर सिर्फ़ दो लेख है जो तीन और चार अगस्त २००९ को लिखे गये थे जबकि उस शख्स की आई-डी अक्टुबर २००८ की है। जो लेख ४ अगस्त को लिखा गया था....८ अगस्त सुबह ११ बजे तक उसे सिर्फ़ १८ बार पढा/खोला गया था और मेरे लेख के प्रकाशित होने बाद से अब तक ३ दिन में उसकी गिनती ११९ तक पहुच गयी है। प्रकाशित होने के बाद चार दिन में १८ बार और ३ दिन में १०१ बार पढा/खोला गया..... इसे कह्ते है "गरियाने का फ़ायदा"।
मेरे इस लेख पर सुरेश चिपलुनकर जी ने टिप्पणी की थी मैने उनकी टिप्पणी का जवाब उन्हे मेल कर दिया....तो उन्होने उस टिप्पणी के जवाब पर "वैधानिक चेतावनी" के साथ एक लेख मार दिया जिसकी उनसे उम्मीद थी लेकिन इस तरह के लेख की नही थी। वो एक बहुत बडे पत्रकार है, मैं उनकी इज़्ज़त करता हूं वो अपने लेखों के लिये बहुत मेहनत करते है और उनमें एक पत्रकार से सारे गुण/अवगुण मौजुद है---उन्हे अच्छे से पता है की किस लेख का क्या मतलब निकाला जा सकता है और ये बात उनके लेख में मौजुद टिप्पणीयों से ज़ाहिर हैं। उस लेख में उन्होने अपनी "तुच्छ और गन्दी मानसिकता" का उदाहरण पेश किया है। " "गू" के बारे जो सवाल उन्होने एक किस्से के तौर पर पुछा है उसका जवाब तो पुरी दुनिया में मौजुद किसी धर्म-ग्रन्थ में नही है----तो इस तरह का बेमानी सवाल पुछ्ने का कोई मतलब नही है और अब पुछ ही लिया है तो हम जैसे मुर्खों को उसका जवाब भी बता दें......
उदाहरण क्रमांक :- २
सुरेश जी का लेख कल दोपहर एक बजे के लगभग प्रकाशित हुआ था तो उस लेख एक त्रर्चा नामक मोहतरमा ने जो टिप्पणीयां की उन टिप्पणीयों ने इस विवाद को और हवा दे दी उसके बाद जिसको देखो वो गाली देता हुआ ही आ रहा....वो कौवों के लिये कहा जाता है------की एक कांय-कायं करता है तो पुरी जमात कांय-कांय शुरू कर देती है।
गरियाने का फ़ायदा
इन मोहतरमा ने अपना ब्लोग "खूबसूरत" अप्रैल २००८ मे बनाया था और १४ अप्रैल २००८ को पहली और आखिरी लेख डाला था (लेख नही तस्वीरे डाली थी............ओफ़्फ़ो, गलती हो गई वो ज़रा ज़बान रपट गयी---क्या करें लेख कहने की आदत पढ गयी है ना) जिस पर उन्हे १५ टिप्पणी १४ अप्रैल २००८ को मिली थी और एक टिप्पणी २६ अप्रैल २००८ को मिली थी।
सुरेश जी के लेख पर इन मोहतरमा ने ६ टिप्पणी की थी..........और सुरेश जी के लेख के छ्पने १८ घंटे के अन्दर इन मोहतरमा के ब्लोग पर ५ टिप्पणी आ चुकी है........आगुन्तकों की संख्या इसलिये नही बता सकता क्यौंकी वहां को कोई विज़िट काउंटर नही लगा है।
फिर भी आप अंदाज़ा कर सकते है की ५ टिप्पणी मिली है तो कितने लोगो ने ब्लोग को देखा होगा.....हुआ ना गरियाने का फ़ायदा...
कभी आपको छ्हः टिप्पणियों बदले में पांच टिप्पणी मिली है क्या...
अगर लेख पसंद आया हो तो इस ब्लोग का अनुसरण कीजिये!!!!!!!!!!!!!
"हमारा हिन्दुस्तान"... के नये लेख अपने ई-मेल बाक्स में मुफ़्त मंगाए...!!!!
आपको भी बहुत टिप्पणियाँ मिलेंगी, गरियाने का कुछ तो फ़ायदा होना ही चाहिये। सब फ़ालतू की बातों पर बहस कर रहे हैं अरे... कुछ नया करिये जिससे हिन्दी ब्लॉगजगत को फ़ायदा हो, आपस में लड़कर कौन आगे बड़ा है और कहने वाले तो कहते ही रहेंगे, बैलगाड़ी के नीचे कुत्ते वाली कहानी और मुर्गे की बांग से ही सूर्यौदय होता है यह कहानियां तो पढ़ी ही होंगी उनसे ही कुछ शिक्षा लीजिये।
जवाब देंहटाएंगरियाना बंद कीजिये कुछ अच्छा लिखिये, यहां तो "हिन्दू मुसलमान" बंद कीजिये, नहीं तो थोड़े दिन बाद कुछ लोग भारत सरकार पर दबाब डाल सकते हैं कि मुसलमान ब्लॉगर के हित की रक्षा के लिये कुछ रिजर्वेशन कीजिये कि हरेक सौ पाठक में से २ पाठकों को हमारे ब्लॉग पर आना जरुरी है।
@ विवेक रस्तोगी जी
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ नाम या मज़हब देखकर टिप्पणी ना किया कीजिये----हर धर्म में हर तरह के लोग मौजुद है...
मिसाल मुंम्बई हमले को ही ले--
मुंम्बई पर हमला करने वाले मुस्लमान थे ये जगज़ाहिर है.......
और उनको दफ़नाने के लिये कब्रस्तान में ज़मीन देने से इन्कार करने वाले भी मुसलमान थे!
आपने मेरा ब्लोग कभी पढा है जो आप इस तरह की टिप्पणी कर रहे है.....मैने कभी भी कोई लेख ऐसा नही लिखा जिसने हिन्दु-मुस्लिम झगडे को बढाया हो.....
मैने हमेशा सब धर्मो को साथ लेकर चलने की बात कही है....
मैं एक देशभक्त हूं...और देश सेवा के लिये ५ साल एन.सी.सी. की ट्रेनिंग ली और फिर एन.डी.ए. का इम्तिहान पास कर लिया लेकिन अफ़सोस १५ साल की उम्र मे लगी एक चोट की वजह से मेडिकल टेस्ट में फ़ेल हो गया......
तो आज के बाद कभी भी टिप्पणी करने से पहले इंसान को जान लें...
मेरा ये लेख पढें
रही बात गाली देने और झगडा करने की तो शुरूआत उन लोगो ने की थी और वो भी भद्दी भाषा में....
मैं आपसे पुछ्ता हूं अगर कोई आपके ईश्वर को गाली दे...आपके धर्म-गर्न्थ को बकवास कहे...तो आप क्या करेंगे???
ऐसी ही कुछ टिप्पणीयों का संग्रह लेखों के लिन्क के साथ मेरे पिछ्ले लेख में मौजुद है
पिछ्ला लेख यहां पढें
मैने हर विषय पर लिखा....आप चाहें तो मेरा ब्लोग देख सकते है
काशिफ़ जी आप मेरी टिप्पणी का अर्थ ही नहीं समझे, जो इस तरह की बातें करते हैं मैं उनकी बातें कर रहा हूँ, आपके बारे में मैंने ऐसा कुछ नहीं लिखा है जिससे आपका दिल दुखे जो भी बात लिखी है साफ़ मन से लिखी है किसी भेदभाव या पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर नहीं। अगर चोट लगी हो तो क्षमा कीजियेगा असल बात तो तब है जिनको चोट लगना चाहिये उनका दिल दुखे।
जवाब देंहटाएंटिप्पणियाँ तो आपको और सलीम मियाँ को भी खूब मिली हैं… ऐसा क्यों? क्या सलीम मियाँ इतना उम्दा लिखते हैं कि लोगबाग दौड़े चले आते हैं टिप्पणी करने को? "तुच्छ और गन्दी मानसिकता" और "कौवे" लिखने के बाद भी यदि आपको टिप्पणी ना मिले तो मुझे आश्चर्य होगा… :)
जवाब देंहटाएं@ काशिफ आरिफ
जवाब देंहटाएंलगता है पूरे ब्लॉग जगत के जूते खाकर तुम्हारा दिमाग चल चुका है |
खैर मुझे तो लगता है कि आगरे से पागल खाना तो शिफ्ट हो गया है पर कुछ पागल शहर में ही रह गए | :P :D
रही बात जुम्मे - जुम्मे आठ दिन से ब्लोगिंग करने कि तो सुनो ' मियां जी अपनी लुंगी से बाहर मत निकलो '
मैं पहले ही हिंदी ब्लोगिंग में रह चुका हूँ और मेरे दोनों ब्लॉग काफी सफल भी रहे थे |
जरा इन दोनों ब्लोगों पर नज़र ( वही तुम्हारी कौवे वाली ) डाल कर देखो कि कैसी सार्थक चर्चायें की गयी हैं , ना कि धार्मिक और कुतर्की बकवासों का पुलिंदा थोपा गया है |
१ . भारत की युवादृष्टि
२ .अजब अनोखी दुनिया के चित्र
@ पाठकगण
आप सभी के सहयोग के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद |
@ ऋचा जी
आप अपने उपक्रम में लगी रहिये वो कहावत तो आपने सुनी ही होगी
' हाथी चले बाज़ार '
' कुत्ते भौंके हज़ार ' ||
@ गरुणध्वज जी
आपका संगीतकार कुश जी के निर्देशन में इन भैसों के तबेले में मधुर बीन बजाने का बहुत - बहुत शुक्रिया |
@ सुरेश चिपलूनकर जी
आपके वैधानिक चेतावनी जरी करने के बाद भी ये गधे ( गधा प्रजाति फिलहाल क्षमा करे ) पूरी बयान - बजी से खुद को जोड़कर क्यों देख रहे हैं ?
इस लेख का भी सारांश :
जवाब देंहटाएंअगर लेख पसंद आया हो तो इस ब्लोग का अनुसरण कीजिये!!!!!!!!!!!!!
हम लोग पागलों के पीछे क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंकुत्ते की दुम (सलीम और उम्र ) कभी सीधी होती नहीं, चाहे कितना भियो प्रयास कर लो | बीसियों बार समझाया पर कोई असर नहीं ||||
@ सुरेश जी,
जवाब देंहटाएंमैं जानता हूं की मुझे भी टिप्पणीयां मिली है लेकिन मैने किसी को गाली नही दी है...उल्टा मैने ये सब जो हो रहा है उसकी आलोचना की है....सब ब्लोग्गर आपस में लड रहे हैं...एक दुसरे के धर्म को गालियां दे रहे है...मैने इसकी आलोचना की है....
स्वच्छ सन्देश पर अगला लेख: भारत में मुसलमानों का इतिहास
जवाब देंहटाएंकाशिफ साहब, मैं इन सबको लखनऊ में ढूंडता रहा और यह सब यहां इलाज करवा रहे हैं, इनका आगरे का डाक्टर ही अच्छा इलाज कर सकता था, मेरे से तो यह बिदक के भाग लेते हैं अब आगरा के खास अस्पताल में आगये हैं तो आगरा के मशहूर अस्पताल से ठीक कराये बिना इन्हें भागने मत दिजियेगा,
जवाब देंहटाएंप्रिय कासिफ
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर बहुत कुछ पढने को मिला|यह सब छोटी बुद्धि के लोगों की मानसिकता है|किसी की भी आस्था से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए|दुसरे लोगों की आस्था से खिलवाड़ करने वाले मेरी नज़र मैं विचलित दिमाग के होते हैं|आप स्वस्थ दिमाग के हैं तो इनकी बात पर ध्यान देने का क्या मतलब| सतीश प्रधान