सोमवार, 27 अप्रैल 2009

हमें शिकायत करने का हक़ नही है...!!! भाग - २

लोगो ने पिछली पोस्ट पढ़ी थी अब मैं आपको शिकायत न करने की कुछ और वजह बताता हूँ.....

रिश्वत देने मे और सिफारिश करने मे हम सबसे आगे होते हैं लेकिन जब अपना काम नही होता है तो कहते हैं की बहुत भर्ष्टाचार बढ़ गया है जिसको देखो रिश्वत मांग रहा है....बच्चे के पैदा होने से पहले उसका लिंग पता करने के लिए रिश्वत कुछ कहो तो कहते हैं की आगे तैयारी करने मे आसानी होती है, उसकी पैदा होने के बाद उसके जन्म प्रमाण - पत्र मे उसकी उम्र बदलवाने के लिए हम रिश्वत देते हैं, जब स्कूल में उसका दाखिला कराना होता है तो किसी अच्छे स्कूल में दाखिला कराने के लिए हम रिश्वत देते हैं चाहे हमारा बच्चा उस स्कूल की पढाई झेलने के लायक हो या नहीं हमें उससे कोई मतलब नहीं हैं, किसी खेल की टीम उसको खिलाने के लिए हम रिश्वत और सिफारिश सब कर लेते हैं, और हमारा बेटा खेल लेता हैं वो भी उस लड़के वो निकाल कर जो हमारे बच्चे से बहुत बेहतर खिलाडी है, चाहे जो करना पड़े खेलेगा हमारा बेटा,

बच्चे ने साल बार पढाई नहीं में अब इम्तिहान में कैसे पास होगा लेकिन कोई बात नहीं तेअचेर को रिश्वत देकर किसी और से पेपर दिलवा देंगे, अगर यह नहीं हुआ तो क्लास में चीटिंग का इन्तेजाम करा देंगे, अगर यह भी नहीं हुआ तो कॉपी में नंबर बडवा देंगे, वर्ना हम कॉपी ही बदलवा देंगे, सब कुछ कर्नेगे लेकिन अपने बच्चे को पास करवा कर छोडेंगे.

बेटा पास हो गया, अब वो बड़ा हो गया है उसको गाडी भी चाहिए लेकिन लाईसेन्स कैसे बनेगा उसकी तो अभी उम्र नहीं हुई है, कोई बात नहीं है हम दलाल से बनवा लेंगे थोड़े पैसे ही तो लगेंगे, गाडी से वो जम कर कानून तोडेगा दो चार लोगो को तोडेगा तो क्या हुआ गलती तो सबसे होती है, हम थानेदार को थोड़े पैसे देकर अपने बेटे को छुड़ा लेंगे क्या हुआ अभी छोटा ही तो है उसकी उम्र ही क्या हैं, नादान है,

अब उसकी नौकरी कैसे लगेगी, पढाई तो उसने की नहीं है लेकिन कोई बात नहीं है हमारे पास पैसा बहुत है, कुछ भी कर कर उसकी नौकरी हम लगवा देंगे, थोड़े पैसे क्लर्क को देंगे, थोडी मिठाई जूनियर मेनेजर को देंगे, थोडी मिठाई और एक नेता का सिफारिश लैटर मेनेजर को देंगे और हो गया काम, मिल गयी हमारे बेटे को एक बढिया सी नौकरी,

शादी के लिए लड़की तो हम ढूंढ लेंगे लेकिन हमें बहुत सारा दहेज़ चाहिए क्या करे साब अपने बेटे पर बहुत पैसा खर्च किया है, अभी तो उसको वसूलने का वक़्त आया हैं, अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे, महूरत की फ़िक्र न कीजिये हम पंडित से अपनी मर्ज़ी का महूर्त निकलवा लेंगे लेकिन बस आप पैसे और बड़ी गाडी का इन्तेजाम कर लीजिये और जिस चीज़ की भी ज़रुरत होगी वो हम बीच बीच में मांगते रहेंगे उसकी फ़िक्र आप मत करिए......

इतने कानून और नियम तोड़ने के बाद हमें शिकायत करने का कोई हक नहीं है, हम सरकार को खराब व्यवस्था के लिए गालिया तो देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं की उस व्यवस्था का हम हिस्सा हमारे जैसे लोगो की वजह से वो व्यवस्था चल रही है, ऑटो वाला तीन लोगो की सीट पर पांच लोगो को बिठाता है तो वो दो लोग हमारे जैसे ही शख्स होते हैं, हम उसको पूरे पैसे देते हैं और अपनी जान को हथेली पर रख कर सफ़र करते हैं क्योँ ऐसा क्योँ होता हैं, कोई सरकारी अफसर गलत काम कर रहा होता है तो हम उसको रोकने और उसकी शिकायत करने के बजाये यह कह कर अपना दामन बचा लेते हैं की ऊपर से नीचे तक सब बेईमान हैं, ऐसे कैसे चलेगा, ऐसे कैसे कुछ बदलाव आएगा, सब भगवान् के भरोसे छोड़ दिया है की भगवान् ही सब करेंगे, अरे वो भी तब करेगा जब हम लोग कोशिश करेंगे, वो उसकी मदद करता है जो अपनी मदद करता है॥

इस व्यवस्था को हम लोगो ने ही बिगाडा हैं और इसको सिर्फ हम ही सुधार सकते है, हम दूसरो पर ऊँगली उठाते है लेकिन यह भूल जाते हैं की एक ऊँगली उसकी तरफ इशारा करती है तो तीन उंगलियाँ हमारी तरफ इशारा करती हैं इसका मतलब हैं की हमें तीन बार अपने आप को देखना चाहिए बाद में दुसरे को, जो काम करने पर हम लोगो को टोकते हैं वाही हालत जब हमारे ऊपर पढ़ते हैं तो हम भी वही करते हैं जो उन्होंने किया था तो उनमे और हमारे अन्दर क्या फर्क हुआ....

ज़रा बैठ कर सोचियेगा की आप लोग क्या - क्या कर रहे हैं और क्या - क्या कर सकते है.....अपने इस प्यारे से देश और यहाँ के लोगो के लिए, सिर्फ अपने बारे में मत सोचिये सब के बारे में सोचिये, तो शायद आप लोग सही फैसला ले सकते है....कोई फैसला लेते वक़्त हम उसमे सिर्फ अपना फ़ायदा देखते है लेकिन आगे से यह देखने की कोशिश कीजिये की आपके फायेदे में किसी का नुक्सान तो नहीं हो रहा है......अगर सब लोग यह सोचने लगे तो हिन्दुस्तान की तस्वीर बदल जायेगी.....

ज़रा सा ज़रूर सोचना.......

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

"हमारा हिन्दुस्तान"... की पहली सालगिरह है आज

२२ अप्रैल २००८ को "हमारा हिन्दुस्तान"... पर जब मैंने पहली पोस्ट लिखी थी तो मुझे इस बात का अंदाजा नही था की यह सफर इतना लंबा चलेगा । इस ३६५ दिन के सफर मे मैं कुछ दिन के लिए अपने ब्लॉग से दूर रहा तो कुछ विवाद भी खड़े हुए लेकिन अब सब कुछ ठीक है । कुछ लोगो से प्यार, कुछ सलाह, कुछ सहानुभूति, काफ़ी कुछ मिला, कुल मिला कर काफ़ी अच्छा रहा यह सफर । मैं उन सब दोस्तों को तहे दिल से शुक्रिया कहता हूँ जिन्होंने मेरा साथ दिया, या जो मेरे ख़िलाफ़ रहे क्यूंकि इस जिंदगी मे सिर्फ़ दोस्तों की ज़रूरत नही होती कुछ आलोचक भी चाहिए होते क्यूंकि अगर आलोचक नही होंगे तो टोकेगा कौन ।

आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद मैं वादा करता हूँ की "हमारा हिन्दुस्तान"... मे आपको ऐसे ही लेख मिलते रहेंगे जिसमे सिर्फ़ सच होगा बस आप लोगो के असीम प्रेम की दरकार है।

रविवार, 12 अप्रैल 2009

कैटवॉक करती भारत की जनता

कुछ दिनों से देख रहा हु राजनीति में नए नए प्रयोगों किये जा रहे है सभी का रंग ढंग बदला है कारण एक मात्र सत्ता की चाहत , सभी चाहते है सत्ता सुंदरी का रसपान करना यहाँ मै एक बात जरुर कहना चाहुगा जो मेरी नहीं बल्कि " मोहल्ले " से ली गई है उन्होंने बहुत अच्छी बात लिखी थी "सम्मान भीख में नहीं मिलता और इज्जत बेचारों की बीवी का नाम नहीं हो सकता। पत्रकारों को पहले खुद अपने सम्मान के लिए आवाज उठानी होगी। उन्हें खुद कहना होगा कि हम न तो रैंप पर चलेंगे, न विज्ञापन के लिए कलम बेचेंगे। अगर दम है तो बात करो, दम से बात करो। वरना जोकर लगोगे और जमाना ऐसे ही रैंप पर घुमाएगा।" इन वाक्यो में बहुत दम है पर इसे वृहत रूप में देखे तो ये देश पर भी लागु होती है चंद लोगो को रैंप पर कैटवॉक क्या कराया सारे बरस पड़े उन पर , इसमें बुधजिवी से लेकर बाकि भी शामिल थे..... पर उनका क्या जो ६० साल से हमें और सारे देश को कैटवॉक कराते चले आरहे है हा मै राजनीति की ही बात कर रहा हुं पुरे ६० साल से भी ज्यादा हो गए जनता और देश को कैटवॉक कराते कभी कपडे के तो कभी बिना कपडे के तब हम क्यों कुछ नहीं कर पाए मुझे याद है एक बात और किसी ने लिखा था गर्व से कहो हम चूतिये है

 ये भी सच है


 

 

 

 

अब अभी नहीं समझे चलिए और बताता हु


 

 

 

 

इन सभी महानुभाओ को तो आप पहचानते ही होगे जी हां ये वहीहै भारत के भाग्यविधता माफ़ कीजिये भावी भारत के भाग्य विधता जिन्होंने हर ५ साल में वही बाते करने , दुहराने , सपने दिखाने का बीडा उठाया है और हासील सिफर , इस बार फिर वैसा ही या उससे कुछ ज्यादा हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी अब हम २१ वि सदी में जो है सवाभाविक है सब कुछ बदलेगा तो भारतीय राजनीति क्यों नहीं इन सब के बावजूद सब खुद को बुद्धिमान और और दुसरे को ....... साबित करने में लगे है राजनितिक गठजोड़ और सत्ता सरकार के लिए लुका छिपी का खेल किसी से छुपा नहीं जग जाहिर है इतने पर भी हिंदुस्तान की जनता का मन नहीं भरा और वो फिर से एक संसद कांड और न जाने कितने गठजोड़ घोटालो को आमंत्रित करने फिर से वोट डालने वाले है ये मै इस लिए कह रहा हु क्यों की आज तक तो सब ऐसे ही चलता आया है तो अब क्यों नहीं और क्या बदलेगा मै किसी पार्टी राजनीति का पक्षधर नही हु मै जो कह रहा हु वो तथ्यों के आधार पर ही ना कि वास्तविकता से परे साहित्यकार की तरह महज कल्पना मात्र. जो वर्तमान और उनकी परेशनियों को भूल कल्पनाओ में जीता है

चलिए इनसे पूछते है इन्हें छठ्वां वेतन मान मिला की नहीं ? सामान्य केंद्रिय कर्मचारी ६०००० और ४०००० वेतन पा रहा है इसके पास क्या है ?


 

 

 

 

 

 

ये है ६० साल में हमारा राजनीत परिपेक्ष. युवा की बात करे तो उनकी अपनी परिभाषा है उन्हें देश से कोई मतलब नहीं उन्हें मतलब है युवा नेता से जिसके भाषण की शुरुवात केंद्र ने पैसे भेजा और उसका उपयोग नहीं किया यही है ५ मिनिट का भाषण इसके आगे सब ख़त्म उसके बाद प्रश्न उत्तर काल शुरू हो जाता है हमारे युवा शायद दुसरे मनमोहन सिंग की फिराक में है या यु कहे इन्हें वर्तमान प्रधानमंत्री बहुत पसंद है वैसे इसमें इन युवाओ का भी दोष नहीं क्यों की वे अभी तक हायर एजुकेशन , बड़ी नौकरी [वो भी विदेश में ] ,सुन्दर लड़की और पब संस्क्रति से ही नहीं उबर पाए है।

मुझे याद है वर्ष २००० में मेरा सामना गैस कनेक्शन के सिलसिले में दुकान दार से हुआ जिसने मुझे सलाह दी की आप गैस कनेक्शन ट्रांसफर करा के क्या करेगे आप अभी नया ले लीजिये जिस गैस कनेक्शन को मैंने सांसद और विधायक कोटे से प्राप्त किया था वो ऐसे ही चला गया . अब क्या करता ये थे भाजपा के ५ साल के कारनामे ६० ६५ साल में आज तक कभी गैस कनेक्शन और गैस इतने सुलभ कभी नहीं देखे जितने वर्ष २००० में थे ।

ठीक वैस ही व्यवसाय का रूप ले चुकी राजनीति को वश में करने के लिए २००० में ही विधेयक पास हुआ दलबदल कानून और मंत्रीमंडल विस्तार कानून जी हा ९० मंत्री थे साहब युपी  में , किसी कवि ने इसका अच्छा उदाहरण देते हुए कहा था कि युपी में थूकना भी है तो देखा कर थूकना पड़ता है की कही मंत्री जी पर ना गिर जाये इसके लिए भी हमें ५० साल लग गए .

गाव में सड़क तो दूर दूर तक दिखाई नहीं देती थी जिसके लिए हर ५ साल में कांग्रेसी वादा करते आये और ५० साल गुजर दिए वह भी इसी कार्यकाल में पूरा हुआ

एक महत्वकान्क्षी योजना और थी भारत के पास जमीन तो बहुत है पर पानी नहीं उसके लिए नदियों को जोड़ने की योजना प्रारम्भ की थी पर वर्तमान सरकार के आते ही सब बंद इन्हें अपने ही फार्म हॉउस में पानी पहुचने से फुर्सत मिले तो ये आपके लिए सोचे अभी तक ६ पंचवर्षीय योजनाये इस देश में पूरी हो चुकी है और सातवी आने वाली है शायद अब बताइए की आप और देश का कितना विकास हुआ है ये सब मै राजनीति से प्रेरित हो कर नहीं बल्कि भारतीयता से प्रेरित हो कर कह रहा हु

                                                                भारतीयों पर पोटा और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्यवाही और आतंकवादी को रिहा ये है मेरे भारत की महानता अब्ब्जल और कसाब इसका प्र्त्यक्ष उदाहर्ण है ६० साल फिर भी कोई लेखा जोखा नहीं चारो ओर से घुसपैठ और आतंकी गतिविधिया जोरो पर है पर हमारे नेता तो राजनीति में मशगुल है कोई ठोस कार्यवाही नहीं बस कर्ज लो और स्विस बैक में बैलेन्स बढ्वो अगर आप पुरे देश में आंतकवादी गतिविधियों में बंद किये गए कैदियो की सख्या और उन पर होने वाले खर्च का आकडा देखे तो चौकनेवाले तथ्य सामने आयेगे बावजूद इसके मेरा भारत महान और मेरे देश वासी ऊससे ज्यादा महान,  महानता में तो हमने बहुत रिकार्ड बनाये है क्या २०० साल की गुलामी ने हमारे ऊपर इतना गहरा असर किया है की आज हम फिर से गुलामी में जीना चाहते है पहले अंग्रेजो की और इन ५० साल वाली सरकार की क्या हो गया है इसलिए दोस्त इसे दोबारा पढो

"सम्मान भीख में नहीं मिलता और इज्जत बेचारों की बीवी का नाम नहीं हो सकता। भारतीयों को पहले खुद अपने सम्मान के लिए आवाज उठानी होगी। उन्हें खुद कहना होगा कि हम न तो शोषित होगे , ना कपडे उतारेगे । अगर दम है तो बात करो, दम से बात करो। वरना जोकर लगोगे और नेता ऐसे ही रैंप पर घुमाते रहेगे ।"

 

एक भारतीय के आवाज

आगे पढे .....

 

 

 

 

 

 

 

शनिवार, 11 अप्रैल 2009

पार्टियों के विजापन के आधार पर सरकार


राजनैतिक महाकुम्भ २० - २० की उलटी गिनती शुरू हो गई है और हर राजनैतिक दल सारी ताकत लगा कर अपने अपने चुनाव प्रचार में लग गया लेकिन इन सबके बीच एक और समुदाय है जिन्होंने चुनाव का बीडा उठा रखा है वो है मीडिया जी हा ये वही मीडिया है जिन्होंने साल भर पहले महगाई , परमाणु करार के मुद्दे पर तत्कालीन सरकारकी बखिया उखेड़ने में कोई कसर नहीं छोडी थी लेकिन आज स्थिति अलग है ..... हर चैनेल सर्वे के आधार पर सरकार बना और गिरा रहा है पर इसमें भी राजनीति है आप ध्यान से देखेगे तो पायेगे की बहुत से चैनेलोमे में राजनैतिक पार्टियों के विजापन भी चल रहे है लेकिन उसमे गौर करने वाली बात यह है कि जिसके विजापन के बाद उसकी कि सरकार चैनल में बनती दिखाई देती है मतलब जैसे की कांग्रेस का विजापन तो सरकार और बढ़त कांग्रेस की बता दी जाती है वैसे ही भाजपा के विजापन के बाद दिखाए जाने वाले सर्वेक्षण में भाजाप् को आगे दिखा दिया जाता है महज ये इतिफाक नहीं बल्कि कई बार ऐसा देखने मिल रहा है तो ये कैसा सर्वे आप ही बताइए .लगता है अब सर्वे पार्टियों के विजापन के आधार पर भी किये जा रहे है

रविवार, 5 अप्रैल 2009

हमें शिकायत करने का हक नहीं है...!!! भाग - १

लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं, आचार संहिता लागु हो गई है...हर पार्टी अपने - अपने प्रत्याशी खड़े कर रही है जिनको टिकट मिल गया है या मिलने वाला है उन्होंने लोगो के पास चक्कर लगाने शुरू कर दिए हैं वोटो के लिए । लेकिन जब भी चुनाव आते हैं हमारे पास शिकायतों के भण्डार निकल आते हैं की यह नहीं किया, वो नही किया, जो किया था तो वो बेकार हो गया, उसका रखरखाव नही किया.......हमें यह सब शिकयेते करने का हक नहीं है क्यूंकि इन सब चीजों के जिम्मेदार हम लोग हैं और कोई नहीं हैं

कभी अपने आप से पुछा हैं की तुम कितने नियमो का पालन करते हो? तुमने अपने अलावा कभी किसी के बारे मे सोचा है? हम हमेशा नियम तोड़त हैं, कानून को तोड़ते हैं और सरकार पर इल्जाम लगाते है की उन्होंने क़ानून की कमर तोड़ दी है जबकि ऐसा कुछ नहीं हैं ।

हम मे से कितने लोग हैं जो सड़क पर चलते वक्त सारे कानूनों का पालन करता है, बगैर हेलमेट, बगैर लाईसेन्स, तीन सवारी बैठा कर चलते हैं जब पुलिस वाला रोकता है तो उसको पचास रूपये दे कर निकल जाते है,लाल बत्ती को क्रॉस करने में हमें बहुत मज़ा आता है,जहाँ चाहे गाड़ी खड़ी कर देते हैं खासकर "नो पार्किंग" के बोर्ड के सामने, कोई कुछ कहता है तो उससे अकड़ते है हमेशा यही कोशिश रहती है सत्ताधारी पार्टी का झंडा हमारी गाड़ी पर लगा हो । अब इतने नियम तोड़ने के बाद हमें यातायात व्यवस्था ख़राब है यह कहने का हक नहीं हैं।


सड़क पर चलते हुए हमें चिप्स, सुपारी, कोल्ड ड्रिंक का शौक हैं लेकिन हम कूडेदान का इस्तेमाल से परहेज़ करते हैं, क्यूंकि वहां बेक्टीरिया होते हैं जिससे हमें बीमारी लग सकती हैं इसीलिए हम जहाँ खड़े बाकी खूबियाँ वहीं कूडे को फ़ेंक देते हैं, और जब गुटखा, पान खायेंगे तो ज़ाहिर सी बात हैं की पीक तो हम थूकेंगे ही यह तो हमारा हक है हमारा देश आजाद है लेकिन पीकदान के इस्तेमाल से हम परहेज़ करते है क्यूंकि दीवारों को रंगने का मज़ा ही कुछ और है.....अपनी निशानियाँ छोड़ने में मज़ा आता है... शौचालय का इस्तेमाल करें में इतना मज़ा नहीं आता है जितना दीवार पर डिजाईन बनाने में आता है और वैसे भी इतना वक़्त किसके पास है की हम शौचालय ढूंढे जहाँ लगी वहीँ कोई कोना पकड़ कर खड़े हो गए और अगर शौचालय का इस्तेमाल करते भी है तो सार्वजानिक शौचालयौं को हम इस तरह इस्तेमाल करते हैं की हमारे बाद उसको कोई इस्तेमाल नहीं करेगा गंदगी करने में सबसे आगे होते है, अब इतना सब करने के बाद हमें साफ़ - सफाई की शिकायत करने का हक नहीं है ।

बसों, ट्रेनों, सार्वजानिक स्थानों पर धुर्मपान करना मना है लेकिन क्या करें यार बड़ी तलब लगती हैं, और दुसरे लोगो को परेशानी होती है तो हो । बूढे, बच्चे, औरते बैठी हों तो हमें क्या उनको धुंए से परेशानी होती है तो हम क्या करें, वो बीमार होते हैं तो हम क्या करें, हमें तो अपना नशा करना है वो हम करेंगे क्यों न करें हम आजाद भारत के आजाद नागरिक हैं .

बाकी खूबियाँ में आपको अगली पोस्ट में बताऊंगा
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