जनसत्ता ने भी कारसेवा की थी तथा कारसेवको के अन्दर ऊर्जा भरने का काम किया था।
भागलपुर दंगे, मेरठ के मलियाना कांड, जयपुर दंगे, दिवराला सती कांड, मंडल विरोधी आंदोलन और मंदिर के आंदोलन के दौरान जनसत्ता की भूमिका पर आज गर्व कर पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। जनसत्ता ही क्यों, इस दौरान मीडिया के काफी बड़े हिस्से की भूमिका बेहद बुरी थी। ये भी बेहद महत्वपूर्ण है कि मीडिया के पक्षपात में शिकार लगभग हमेशा अल्पसंख्यक, महिलाएं, दलित और पिछड़े ही बनते हैं। मिसाल के तौर पर आरक्षण के बारे में कभी भी कोई रिपोर्ट सवर्णों के खिलाफ पक्षपात नहीं करती।
इन घटनाओं और प्रसंगों में मीडिया की भूमिका के बारे में कई शोध और लेख यहां-वहां बिखरे हैं। हाशिमपुरा मलियाना के भीषण खून-खराबे के बाद तो जनसत्ता ने अपने पहले पन्ने पर पीएसी के समर्थन में अभियान चलाया था और तीन लेखों की सीरीज छापी थी। आप भी देखिए जनसत्ता के कुछ नमूने। और ध्यान रखें कि ये सब विचार नहीं, समाचार के पन्नों पर छपी सामग्री है :
जनसत्ता, 8 अक्टूबर, 1990 पेज 10
जबलपुर में रथयात्रा का रिकार्ड तोड़ स्वागत। लोगों में उसके स्वागत के लिए जो उन्माद देखा गया, उससे पिछले सभी रिकॉर्ड टूटते नजर आ रहे हैं। पूरा वातावरण ही राममय था…
जनसत्ता, 12 अक्टूबर, 1990 पेज 10
आडवाणी के रथ का यहां की जनता ने पालक पांवड़े बिछाकर जबर्दस्त स्वागत किया। …दीवाली का आलम था…
जनसत्ता, 13 अक्टूबर, 1990 पेज 10
सरकारी तंत्र प्रचार में लगा है कि अयोध्या की परिक्रमा में बड़ा हादसा होगा। और भगदड़ मचेगी। …सरकारी प्रचार के बावजूद विश्व हिंदू परिषद के लोग पूरी परिक्रम के रास्तों पर सुरक्षा बंदोबस्त में लगे हैं।
जनसत्ता, 20 अक्टूबर, 1990 पेज 2
धार्मिक भावना चरम पर है। पूरा जिला राममय हो गया है। …अगर राम ज्योति के स्वागत, जुलूस, और संत सम्मेलन में संतों, धार्मिक नेताओं और श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए नेताओं को सुनने के लिए आ रही भीड़ को कामयाबी का पैमाना माना जाए तो यह तय हो चुका है कि आम हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए मन बना चुका है… तमाम के मनों में यही लालसा है कि कि मंदिर बने, चाहे इसके लिए कुछ भी कुर्बानी देनी पड़े।
जनसत्ता, 20 अक्टूबर, 1990 पेज 4
सूत्रों के अनुसार आज शुक्रवार को धनबाद के बासेपुर के मुसलमान बहुल मोहल्ले में तनाव है। वे रथयात्रा को रोकने की तैयारी में हैं…
जनसत्ता, 30 अक्टूबर, 1990 पेज 1
अस्थायी जेलें भी भर गयीं, पर कारसेवकों में उत्साह बरकरार
जनसत्ता, 1 नवंबर, 1990 पेज 1
अयोध्या अभी भी कारसेवकों से घिरी हुई है। कार सेवक ‘जय श्रीराम’ की धुनी रमाये हुए हैं… कारसेवक विवादित स्थल की ओर कूच करना चाहते हैं। हर कोई उत्तेजित है। कल की सफलता से आर-पार का फैसला कराने को आमादा हैं। उनका कहना है कि वे कसम खाकर कारसेवा के लिए आये हैं। कार सेवा के बिना नहीं लौटेंगे, भले ही गोली खा जाएं। …कल रात वे खुले में ही बैठे रहे… अर्धसैनिक बलों ने उन्हें दो बार खदेड़ा, पर वे वहीं डटे रहे।
जनसत्ता, 2 नवंबर, 1990 पेज 1
पूर्णिमा के पवित्र स्नान के बाद कल किसी भी वक्त कारसेवक ‘करो या मरो’ के आह्वान के साथ सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करेंगे… साधु संतों ने पुल पर अलग अलग यज्ञ कुंड भी बना लिये हैं। साधुओं के माइक से भाषण हो रहे हैं। रामचरित मानस का पाठ अलग हो रहा है। सुरक्षा बलों पर साधु संतों और कारसेवकों की इच्छा शक्ति का जादू साफ देखा जा सकता है। जब साधु अनशन पर बैठे तो साधुओं ने यह आह्वान किया कि उपस्थित जन समुदाय बैठ कर तीन बार ओंकार ध्वनि निकाले तो उपस्थित पुलिस जनों ने भी बैठकर ओंकार ध्वनि निकाली।
जनसत्ता, 3 नवंबर, 1990 पेज 1
अयोध्या की सड़कें, मंदिर और गलियां आज कारसेवकों के खून से सन गयीं। अर्धसैनिक बलों की अंधाधुंध फायरिंग से अनगिनत लोग मरे और बहुत से घायल हुए। इस संवाददाता ने अपनी आंखों से तीस लाशें सड़क पर छितरी देखी हैं। प्रशासन ने कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां उस वक्त चलवायीं, जब कारसेवक सत्याग्रह के लिए सड़कों पर बैठकर रामधुन गा रहे थे… कुछ अखबार वालों ने यह कहते हुए मदद की और बोले कि आप हमें भी गोली मार दें। हम अपना काम करेंगे… किसी भी कारसेवक को पैर में गोली नहीं मारी गयी। गोलियां सभी के सिर और सीने में लगी हैं। …फैजाबाद के रामअचल गुप्ता की अखंड रामधुन बंद नहीं हो रही थी। जे एस भुल्लर ने उन्हें पीछे से गोली दाग कर मार डाला। श्रीगंगानगर राजस्थान का एक कारसेवक जिसका नाम पता नहीं चल पाया, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर उसके सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी में सात गोली मारी। इस पूरे गोलीकांड का चश्मदीद गवाह यह संवाददाता स्वयं है।
जनसत्ता 29 अक्टूबर 1990 पेज 5
जयपुर में ग्यारह महीने पहले भी भाजपा के विजय जुलूस पर हमले से दंगा भड़का था। …सांप्रदायिक भाईचारे को ख़त्म करने की साज़िश के तहत जयपुर में टाइम बम मिलने और पाकिस्तानी तत्वों का हाथ होने के सबूत हासिल होने के बावजूद इस तरह की हरकतों में जुटे तत्वों पर लगातार चौकसी नहीं रखी गयी।
साभार :- मोहल्ला लाइव
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पिछले पांच दिन से मेरा इन्टरनेट कनेक्शन काम नहीं कर रहा है इसलिए ये लेख भी साइबर कैफे से छापा है..हो सकता है की मैं आप लोगो के कमेंट्स का जवाब नहीं दे पाऊँ.............वैसे तो साइबर कैफे से जवाब देने की कोशिश करूंगा.....
जवाब देंहटाएंyah galat bhee to nahi
जवाब देंहटाएंबेटा जैसी जानकारी तुमने दी है उससे मेरा सवाल है कि जनसत्ता अखबार अब आगरा में आता है या केवल आगरा में आता है बताना, हमारी यह पहली इच्छा है जो पूरी करेगा उसे दूआ देंगे, अन्यथा दवा तो तुम दे ही रहे हो, दूसरी अवध जाने की है उसकी कोई जल्दी नहीं
जवाब देंहटाएंअवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
lajawab jaankari
जवाब देंहटाएंgood work
जवाब देंहटाएंsab jhooti baten hen, aisa ho nahin sakta
जवाब देंहटाएंab lakeer peetne se kiya hoga?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी...! तुमने तो बाबरी विध्वंस में इन्सानों के साथ अखबारों को भी दोषी साबित कर दिया...........
जवाब देंहटाएंलगे रहो....सही जा रहे हो
बहुत उम्दा जानकारी...!
जवाब देंहटाएंऐसे ही लोगों की वजह से हमें इस देश के इतिहास का सबसे बुरा दिन देखने को मिला.......
विभाजन के वक्त सिर्फ़ देश के टुकडे हुये थे लेकिन ६ दिसम्बर ९२ को देश के लोगों की भावनाओं और विश्वास के टुकडे हो गये.......
बहुत उम्दा जानकारी...!
जवाब देंहटाएंऐसे ही लोगों की वजह से हमें इस देश के इतिहास का सबसे बुरा दिन देखने को मिला.......
विभाजन के वक्त सिर्फ़ देश के टुकडे हुये थे लेकिन ६ दिसम्बर ९२ को देश के लोगों की भावनाओं और विश्वास के टुकडे हो गये.......
ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म तुमने तो सोचने पर मजबुर कर दिया और साथ-साथ मीडिया की भुमिका पर उंगली भी ऊठा दी है...........
जवाब देंहटाएंकाफ़ी अच्छी जानकारी.........
जवाब देंहटाएंबाबरी विध्वंस पर काफ़ी गहन शोध कर रहे हैं आप......
काशिफ भाई, क्या आप तो इनके पीछे ही पड़ गये ? हमारे मामू ने ये सारी बातें हमें उसी ज़माने में बताई थी. उस वक़्त तो ऐसा लग रहा था कि हम अपने मुल्क मैं नही बल्कि किसी गैरं मुल्क मैं हैं,इन लोगो ने वो ज़हर बोया था कि उसकी फसल आजतक काट रहें है,मगर अफ़सोस तो ये है कथित 'बुधीजीवी' ना उस वक़्त समझे ना अब समझ पा रहे हैं. देशप्रेम के मायने बदल गये है. वन्द..... गाओ और मुल्क मैं लूट मचाओ, जितने बड़े देशप्रेमी उतना बड़ा पेट.....? आडवाणी,मोदी,मधु कोड़ा, मायावती, राज, शिबू सोरेन और कितने नाम गिनाए ये सब देश प्रेमी है और हम इनको सबूत दे की हम कोन हैं ?
जवाब देंहटाएंचड़ी हुई है जो नदी उतर भी सकती है
जो बाट रही है मोत मर भी सकती है
ज़रा सा लहजे को तब्दील करके देखा था
पता चला ये दुनिया डर भी सकती है
कुछ सालों पहले की बात है. मैं मुहर्रम करने अपने गाँव गया था जो गोरखपुर के पास है. मुहर्रम के दिन दैनिक जागरण ने मेरे गाँव के बारे में छापा की वहां दंगा हो गया है और कुछ ताजिये जला दिए गए हैं. जबकि मैं वहीँ था और पूरी शान्ति के साथ हिन्दू मुस्लिम सभी मिलकर मुहर्रम मना रहे थे. कहीं कोई दंगा नहीं हुआ था.
जवाब देंहटाएंकब्र खोदने से बाज़ आइये बहुत अच्छे अच्छे काम है इस दुनिया में करने को ३६५ दिन मातम मनाने के अलावे !
जवाब देंहटाएंधीरु सिंह जी,
जवाब देंहटाएंइसका मतलब है कि आप इस बात से सहमत है की बाबरी विध्वंस बिल्कुल सही था..फ़िर तो आप इस बात से भी सहमत होंगे कि उसके बाद जो दंगे हुये, काफ़ी मुस्लिम और हिन्दुओं की जाने गयी वो भी सही थी......
फ़िर तो आप 83' के दंगे, गुजरात, कंधमाल, मालेगांव, 26/11 को भी सही मानते होगें क्यौंकि ये सब काम भी तो धर्म की आडं लेकर किये गये थे??????
चचा जान,
जवाब देंहटाएं"जनसत्ता" आगरा में नही आता हैं..........आपकी अवध जाने की इच्छा है और मेरी आपसे मिलने की
इकबाल, वन्दे ईश्वरम आपकी टिप्पणी का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअमित जी,
जवाब देंहटाएंये झुठ नही है...मैनें यहां तारिख और पेज नंबर के साथ लिखा है...अगर आपको झुठ लगता है तो आप जांच कर सकते है.........
जब आपककी जांच पुरी हो जाये तो मुझे बता दीजियेगा मैं आपको यहीं मिलुंगा..........
कहकंशा और समीर जी,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी का शुक्रिया..!
राहुल जी,
जवाब देंहटाएंमीडिया की भुमिका पर मैनें अब उंगली उठाई है लेकिन मीडिया की भुमिका तो हमेशा से सन्देह के घेरे में रही है.....
राज जी,
सच्चाई सामने लाने के लिये शोध वगैरह सब करने पडते है.........
Sahespuriya जी,
जवाब देंहटाएंका करें कोई काम-धाम नही है ना...तो जा के वास्ते हमऊ ने सोचा किसी के पीछे पड जाये थोडा वक्त गुज़र जायेगा.....
और वैसे भी हमऊं हिन्दी ब्लोगिंग में अभी कुछ वक्त पहले ही आना हुआ है इसी वास्ते......
ज़ीशान जी,
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लोग पर पहली बार टिप्पणी कर रहे है... मैं तहेदिल से आपका खैरमक्दम करता हूं....
ये सब साजिश होती है नेताओं की....दंगा भडकाने की और उस आग पर अपनी रोटिंया सेकने की......
घटिया सोच जी,
जवाब देंहटाएंमैं कोई मातम नहीं मना रहा हूं...मैं सबके सामने सच रख रहा हूं......मैं यहां किसी धर्म की वकालत नही कर रहा हूं और ना किसी धर्म या विचारधारा की खिलाफ़त कर रहा हूं....
ये सब जानते है कि जो हुआ गलत हुआ और उससे हमारे भारत के दो सबसे बडे समुदायों के बीच में एक ऐसी खाई बना दी है जिसे भरना बहुत मुश्किल है......
मैं सबके सामने सच लाकर उन लोगों की आखों से परदा हटाना चाहता हूं जो इस काम का हिस्सा तो नहीं थे लेकिन इस पर गर्व करते है......
घटिया सोच जी,
जवाब देंहटाएंमैं कोई मातम नहीं मना रहा हूं...मैं सबके सामने सच रख रहा हूं......मैं यहां किसी धर्म की वकालत नही कर रहा हूं और ना किसी धर्म या विचारधारा की खिलाफ़त कर रहा हूं....
ये सब जानते है कि जो हुआ गलत हुआ और उससे हमारे भारत के दो सबसे बडे समुदायों के बीच में एक ऐसी खाई बना दी है जिसे भरना बहुत मुश्किल है......
मैं सबके सामने सच लाकर उन लोगों की आखों से परदा हटाना चाहता हूं जो इस काम का हिस्सा तो नहीं थे लेकिन इस पर गर्व करते है......
काशिफ भाई, आप की कोशिश बहुत अच्छी है, हमारे मामू को आपस्र मिलने की तमन्ना है, रही बात घटिया सोच वालो की उसकी फ़िक्र आप ना करें, कभी हम या हमारे मामू फॉर्म मैं आए तो बताएगें, अभी तो आप ही काफ़ी है मैदान मैं,
जवाब देंहटाएंआप लगे रहो ......
भाई काशिफ आरिफ सच क्या है और झूठ क्या आप की और हमारी औकात से बहुत दूर की बात है, रही बात आप के सच की मुहीम की आप इस अपने हिस्से की सच से हासिल क्या कर लेंगे बताये ज़रूर !!! आप खुद कह रहे है खाई को पाटना न मुमकिन है , आप के लिए ज़रूर है और रहेगा आप की सोच ही जब इस दरार को बढाने की है !!! आप के जैसे चंद मुसलमान न देश की अखंडता को मिटा सकते है न एकता को ! आप को लगता है की इस देश में अगर हिन्दू मुस्लिम एक नहीं है ,मेरा चैलेन्ज है आप सब से मिलिए मुझसे मै आप को १०० मिसाल खुद दिखाऊंगा, अगर शर्म होगी आप में तो चुल्लू भर में खुद डूब मरेंगे आप ! इस लिए आप से निवेदन है की आप द्वेश और घृणा की भावना से बाहर आये और भाईचारा और सौहार्द के लिए कंधे से कन्धा मिला कर योगदान करे !!!
जवाब देंहटाएंभाई आप मुझे घटिया सोच कहे या उम्दा सोच मुझे फर्क नहीं पड़ता , पर इस बीमार मानसिकता से जल्द से जल्द उबार जाए जो आप को कहता है की देश में दो बड़ी कौमों के बीच कोई दरार है,भाई हर तरफ भाईचारा ही भाईचारा है ,ज़रा आँखे खोल देख भर तो लीजिये !!!
भाई आप से और क्या कहू आप समझदार है,दिखावे पे मत जाए अपनी अकाल लगाए !!!
Umda soch is great
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